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हिमालय विकास की अलग नीति को लेकर लंबे समय से मांग उठती रही है। उत्तराखंड सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष श्री सुरेश भाई की पहल पर इस बाबत लोगों से व्यापक संवाद कर वर्ष 2011-12 में ही हिमालयी लोकनीति का दस्तावेज तैयार कर लिया था। शुक्र है कि अब यह बहस परवान चढने लगी है कि हिमालयी राज्यों के विकास के मानक और मॉडल, मैदानी इलाकों से भिन्न होना चाहिए।
दरअसल, पिछले 30-35 वर्षों में हिमालय की भूगर्भिक संरचना के साथ जिस तरह का अविवेकपूर्ण, आक्रामक विकास योजनाओं का संचालन किया गया है, उसने हिमालय की कमर तोड़ दी है। बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, जलवायु परिवर्तन की घटनाएं मानवजनित विकास के कारण हैं। पर्यटन और पर्यावरण जितने बड़े शब्द है, उसकी गंभीरता को भुला देने वाली घटनाओं ने ही हिमालय में आपदा की स्थिति पैदा की है।