दिल्ली

Term Path Alias

/regions/delhi

भूक्षरण रोकथाम की आवश्यकता
Posted on 09 Jan, 2015 07:57 PM प्रकृति के साथ आवश्यकता से अधिक छेड़छाड़ न करें। अन्यथा हमें बहुत
भूमि सुधार एजेण्डा से गरीबी उन्मूलन
Posted on 09 Jan, 2015 01:18 PM जमीनी स्तर पर स्थिति का आकलन करने पर संविधान में वर्णित जीने के अध
भूमि सुधार
जल प्रबन्धन में जवाबदारी की चुनौती
Posted on 09 Jan, 2015 01:04 PM जिस तरह कैंसर का निदान उसके स्रोत से किया जाता है, उसी तरह प्रदूषण
water management
12वीं पंचवर्षीय योजना में जल क्षेत्र में नयी शुरुआत
Posted on 08 Jan, 2015 05:37 PM 21वीं सदी में प्रवेश के साथ भारत को एक बड़े जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस संकट की वजह से हमारे नागरिकों के पीने के पानी के बुनियादी अधिकार संकट में पड़ गए हैं; इससे लाखों लोगों की आजीविका भी जोखिम में पड़ गई है। अर्थव्यवस्था के तीव्र औद्योगीकरण की माँग और समाज में शहरीकरण की प्रवृत्ति ऐसे समय उत्पन्न हुई है, जब जलापूर्ति बढ़ाने की क्षमता सीमित है, जलस्तर गिर रहे हैं और जल की गुणवत्ता के मुद
भारत की भू-नीति में सुधार
Posted on 08 Jan, 2015 01:07 PM भारत जिस तरह पिछले एक दशक से उच्च वृद्धि दर पाने के लिए आर्थिक मन्दी से बचने में संघर्षरत है उससे यह स्पष्ट होता है कि इससे हमारे आर्थिक भविष्य का एक महत्वपूर्ण आधार भूमि सम्बन्धित समस्याओं से निपटने का रवैया होगा। ऐसा होने के दो बड़े कारण हैं।
Agriculture
नदीजोड़ के मुद्दे पर बिहार मुख्यमन्त्री जीतनराम मांझी का पत्र प्रधानमन्त्री को
Posted on 03 Jan, 2015 11:57 AM 6 नवम्बर 2014
श्रद्धेय प्रधानमंत्री जी
. आप अवगत् हैं कि बिहार राज्य के 81 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। विशेष भौगोलिक स्थिति के कारण, एक तरफ राज्य का उत्तरी भाग देश का सर्वाधिक बाढ़ प्रवण क्षेत्र है और प्रत्येक बर्ष बाढ़ की चपेट में रहता है, तो वहीं दक्षिणी भाग सूखा की मार से त्रस्त रहता है। बिहार में कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 6880 लाख हेक्टेयर है जो भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 73 प्रतिशत तथा देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र (400 लाख हेक्टेयर) का (17.20 प्रतिशत है। उत्तर बिहार के सभी प्रमुख नदियों (बुढ़ी गण्डक का छोड़कर) का उद्गम स्थल नेपाल एवं तिब्बत में स्थित है तथा इन नदियों का तीन चौथई जलग्रहण क्षेत्र नेपाल एवं तिब्बत में ही पड़ता है। बाढ़ के शमन हेतु दीर्घकालीन स्थायी निदान के उपाय में अन्तरराष्ट्रीय पहलू निहित है क्योंकि बाढ़ शमन हेतु जलाशय का निर्माण नेपाल में ही सम्भव है। सूखा प्रवण दक्षिण बिहार क्षेत्र में सिंचाई उपलब्ध कराने एवं बाढ़ प्रवण उत्तर बिहार की जनता को बाढ़ से सुरक्षा प्रदान
पर्यावरण संरक्षण आज की जरूरत
Posted on 02 Jan, 2015 09:30 PM आज हम आधुनिक कृषि व्यवस्था में जिन तरीकों को अपना रहे हैं वे टिकाऊ नहीं है, जैसे कि अन्धाधुन्ध रासायनिक उर्वरकों का उपयोग, कीटनाशकों का उपयोग, जरूरत से ज्यादा मशीनीकरण, बाह्य जननद्रव्यों का उपयोग इत्यादि। वास्तव में ये सारे कारक जहाँ हरित क्रान्ति लाने के लिए जिम्मेदार हैं वहीं ये पर्यावरण पर विपरित प्रभाव डाल रहे हैं। इन सबके अलावा मृदा अपक्षरण, बड़े बैमाने पर वनों की कटाई और घटते जल स्तर ने हमार
सामाजिक वानिकी और पंचायत
Posted on 02 Jan, 2015 05:54 PM वन सम्पदा देश की ऐसी निधि है जो पुनरोपयोगी संसाधन उपलब्ध कराकर देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। हमारे देश में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 20.84 प्रतिशत भू-भाग पर वन हैं, जिसमें 12 प्रतिशत घने वन, 7.96 प्रतिशत खुले वन, 0.15 प्रतिशत मैनग्रोव वन तथा मात्र 0.53 प्रतिशत मानव निर्मित वन हैं। भारत के लगभग 413 जिलों में से 105 में ही 33 प्रतिशत वन क्षेत्र हैं जबकि 52 जिलों में 25 प्रतिशत तथा
लघु एवं सीमान्त कृषक तथा ग्रामीण विकास
Posted on 02 Jan, 2015 04:54 PM पिछले कुछ वर्षों से देश में लगातार किसानों की आत्महत्याएँ बढ़ती जा
मानव विकास की कीमत देता पर्यावरण
Posted on 31 Dec, 2014 03:20 PM दिनों-दिन मानव की ज्यादा बलवती होती विकास की चाह, अंतरिक्ष तक पहुँचते आदमी के कदम, रोजाना ही नये-नये आविष्कारों की भरमार। यह सब सुनने में कितना अच्छा लगता है, कितना सुखद। पर क्या हमने कभी यह भी जानने की कोशिश की है कि, चारो तरफ होती यह प्रगति किस कीमत पर हो रही है?
climate change
×