भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन विधेयक

भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन तथा पुनर्व्यवस्थापन विधेयक, 2013 से नक्सल प्रभावित जिलों में भी व्यापक प्रभाव पड़ने की सम्भावना है। देश के 88 नक्सल प्रभावित जिले हैं जहाँ जंगल और जमीन से जुड़े मुद्दे प्रभावित कर रहे हैं। सही ढंग से इस कानून के लागू होने से आदिवासियों को भी अधिकाधिक फायदा होगा। यह एक ऐसा विधेयक है जिसमें भू-स्वामी को शोषण से बचाने का पूरा प्रयास किया गया है और उसके अधिकारों को पूरी तरह से सुरक्षित रखा गया है।संसद ने मानसून सत्र के दौरान ‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन विधेयक-2013’ को अपनी मंजूरी देकर सन् 1894 के विधेयक को बदलकर जबरन भूमि अधिग्रहण के अभिशाप से किसानों को मुक्ति दे दी है। विधेयक को पारित कराने में कमोबेश सभी राजनीतिक दलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि वे गरीबों और किसानों के हितों के खि़लाफ नहीं बल्कि उनके हिमायती हैं। इस विधेयक के कानून बन जाने पर न केवल किसानों को सही मुआवजा मिलेगा बल्कि कृषि भूमि की लूट पर भी रोक लगेगी।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1994 में कई कमियाँ थीं। इसमें भू-स्वामी की सहमति के बिना भूमि अधिग्रण करने की कार्रवाई करने, सुनवाई की न्यायोचित व्यवस्था की कमी, विस्थापितों के पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन के प्रावधानों का अभाव, तत्काल अधिग्रहण का दुरुपयोग, भूमि के मुआवजे की कम दरें, मुकदमेबाजी आदि प्रमुख थीं। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश गणपति सिंघवी ने टिप्पणी की थी कि ‘‘भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1994 एक घपला बन गया है।’’ उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि 1894 के कानून का प्रारूप इस प्रकार तैयार किया गया प्रतीत होता है जिसमें ‘‘आम आदमी के हित’’ का जरा भी ध्यान नहीं रखा गया।

सर्वोच्च न्यायालय की एक अन्य खण्डपीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा था :
‘‘अधिनियम में निहित प्रावधान के सम्बन्ध में यह महसूस किया गया है कि ये प्रावधान भू-स्वामियों तथा भूमि में हित रखने वाले लोगों का पर्याप्त रूप से बचाव नहीं करते हैं। अधिनियम में ऐसे व्यक्तियों की पुनर्वास सम्बन्धी व्यवस्था नहीं की गई है जिन्हें उनकी भूमि से हटा दिया गया है तथा ऐसे जबरन भूमि अधिग्रहण से उनकी आजीविका प्रभावित होती है। सारांश में कहा जाए तो अधिनियम पुराना हो गया है तथा शीघ्रातिशीघ्र इसके स्थान पर नयी व्यवस्था किए जाने की आवश्यकता है। ऐसा कानून बनाया जाए जो संवैधानिक प्रावधानों के लिहाज से उचित, व्यावहारिक, विशेष तथा संविधान के 300(क) की आवश्यकताओं के अनुरूप हों। हम आशा करते हैं कि भूमि अधिग्रहण के सम्बन्ध में विस्तृत अधिनियम की प्रक्रिया अनावश्यक रूप से और विलम्ब किए बिना पूरी की जाए।’’

भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन विधेयक, 2013 के बारे में कहा गया है कि यह तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था और उन विविध सामाजिक संरचनाओं के बीच एक समझौता है जिन्हें संवदेनशीलता के साथ समझे जाने की जरूरत है, अब किसी भी भू-स्वामी (किसान) की इच्छा के विरुद्ध उसकी जमीन का जबरन अधिग्रहण करना बीते दिनों की बात हो जाएगी और अनुचित अधिग्रहण पर रोक लग जाएगी। हर राज्य में किसानों के अपने हक के लिए आन्दोलन हो रहे हैं। जिन पर इस कानून के लागू होने से विराम लग जाएगा क्योंकि इसमें लीज की व्यवस्था भी की गई है और लीज पर अधिग्रहण की शर्तें लागू नहीं होंगी। लीज की शर्तें निर्धारित करने का दायित्व राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है।

ग्रामीण विकास मन्त्री जयराम रमेश ने उद्योग जगत पर इस कानून से पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के आरोप को ख़ारिज करते हुए कहा कि जमीन की खरीद पर कोई पाबन्दी नहीं लगाई गई है। इससे अधिकाधिक लोग भूमि खरीदने के लिए प्रोत्साहित होंगे।

जो कानून किसानों, भूमिहीनों, आदिवासियों और दलितों के हित में है वह राष्ट्रीय हित में होता है। इस कानून में उनके हितों को प्राथमिकता दी गई है और अब जबरन भूमि अधिग्रण किसी भी हालत में नहीं किया जा सकेगा।

विधेयक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम चार गुना तथा शहरी क्षेत्रों में दुगुनी मुआवजा राशि का प्रावधान किया गया है। लेकिन अगर राज्य सरकारें चाहें तो वे मुआवजे की दर में बढ़ोत्तरी कर सकती हैं। अभी तक भूमि क्रम करने पर आजीविका गँवाने वालों को कोई लाभ नहीं मिलता था जबकि उनकी संख्या भूमि घटकों से अधिक होती है। इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि आजीविका गँवाने वालों के पुनर्वास एवं उनके पुनर्व्यवस्थापन की जब तक व्यवस्था नहीं की जाएगी उन्हें विस्थापित नहीं किया जा सकेगा।

इस विधेयक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में न्यूनतम चार गुना तथा शहरी क्षेत्रों में दुगुनी मुआवजा राशि का प्रावधान किया गया है। लेकिन अगर राज्य सरकारें चाहें तो वे मुआवजे की दर में बढ़ोत्तरी कर सकती हैं। इसमें आजीविका गँवाने वालों के पुनर्वास एवं उनके पुनर्व्यवस्थापन की जब तक व्यवस्था नहीं की जाएगी उन्हें विस्थापित नहीं किया जा सकेगा।यह ऐसा पहला एकीकृत कानून है जिसमें भूमि अधिग्रहण के कारण आवश्यक पुनर्थाा पन एवं पुनर्व्यवस्थापन हेतु पाँच अध्याय और दो अनुसूचियाँ के अलावा भूमि के बदले भूमि, आवास की व्यवस्था और रोजगार का विकल्प के प्रावधान रखे गए हैं। यही नहीं भूमि घटकों के साथ अतीत में भू-अधिग्रहण के दौरान यदि कहीं भी कुछ अन्याय हुआ हो तो उसका भी निराकरण किया गया है। जहाँ भूमि अधिग्रहण अवार्ड नहीं दिया गया हो वहाँ मुआवजे/पुनर्स्थापन व पुनर्व्यवस्थापन के नये प्रावधान लागू होंगे। ऐसे मामलों में जहाँ पाँच वर्ष पूर्व भूमि अधिग्रहण किया गया था परन्तु मुआवजे का कोई भुगतान नहीं किया गया या भूमि का कब्जा नहीं लिया गया है वहाँ भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया नवीन कानून के अनुसार सारी प्रक्रिया नये सिरे से आरम्भ की जाएगी तथा नये प्रावधानों के अनुसार मुआवजा दिया जाएगा।

जनभागीदारी : भूमि अधिग्रहण की किसी भी प्रक्रिया को शुरू करने से पहले स्थानीय संस्थाओं की भागीदारी का प्रावधान रखा गया है। साथ ही पुनर्वासन और पुनर्स्थापन सम्बन्धी प्रावधानों के क्रियान्वयन की निगरानी हेतु केन्द्र राज्य तथा जिला स्तर पर निगरानी कमेटी गठित की जाएगी।

आदिवासियों तथा अन्य कमजोर समूहों के हितों की सुरक्षा करने की दृष्टि से अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं की सहमति के बिना भूमि अधिग्रहण नहीं हो सकेगा। नये कानून में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 तथा वन अधिकार अधिनियम, 2006 के प्रावधानों का भी पालन हो। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के लिए नये कानून में विशेष व्यवस्थाएँ की गई हैं। यह उम्मीद की जा रही है कि नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में यह कानून महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सफल होगा।

भू-धारकों की सहमति


सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के लिए भूमि अधिग्रहण तथा निजी कम्पनियों के लिए भूमि अधिग्रहण करने से पहले क्रमशः न्यूनतम 70 प्रतिशत और 80 प्रतिशत भू-धारकों की सहमति आवश्यक है। इसके बिना किसी भी तरह का अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा।

विस्थापितों के हितों की सुरक्षा


नये कानून में यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को तब तक विस्थापित नहीं किया जाएगा जब तक उसे उसके सभी प्रकार के मुआवजों का पूरा भुगतान न हो जाए तथा पुनर्व्यवस्थापन स्थल पर वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध न हों। तृतीय अनुसूची में ऐसी आधारभूत संरचनात्मक सुविधाओं को सूचीबद्ध किया गया है जिन्हें विस्थापितों को उपलब्ध कराया जाना आवश्यक है।

कृषि भूमि अधिग्रहण की सीमा


बहुफसली तथा बुवाई योग्य कृषि भूमि के अधिग्रहण की अधिकतम सीमा तय कर दी गई है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा मनमर्जी से अधिकाधिक भूमि का अधिग्रहण रोकने के लिए नये कानून में राज्य सरकारों को कृषि भूमि के अधिग्रहण पर सीमा निश्चित करने के अधिकार दिए गए हैं। जिस उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण होगा उसमें बदलाव नहीं किया जा सकता है।

अप्रयुक्त भूमि की वापसी


नये कानून में उस अधिग्रहण की गई भूमि को वापस करने का प्रावधान किया गया है जिसका प्रयोग नहीं किया गया हो। इसमें प्रयुक्त अधिग्रहित भूमि को सम्बन्धित राज्य के भूमि बैंक या मूल भू-स्वामियों को वापस लौटाने का अधिकार राज्य सरकार को दिया गया है।

आयकर और स्टाम्प शुल्क से छूट


यह पहला कानून है जिसमें भूमि अधिग्रहण से मिले मुआवजे पर भू-स्वामी को आयकर तथा स्टाम्प शुल्क से छूट दी गई है। यदि अधिग्रहण की तिथि से पाँच वर्षों के भीतर अधिग्रहित की गई भूमि तीसरी पार्टी को बढ़ी हुई कीमत पर हस्तान्तरित की जाती है तो बढ़ी हुई कीमत का 40 प्रतिशत हिस्सा मूल भू-स्वामी को मिलेगा।

पुनर्वासन तथा पुनर्व्यवस्थापन सम्बन्धी उपबन्ध


किसानों, भूमिहीनों तथा आजीविका गँवाने वालों के लिए पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन सुनिश्चित करने के लिए उपबन्ध बनाए गए हैं। जिनमें निम्नलिखित प्रावधान रखे गए हैं : 1. पात्रता का सरल मानदण्ड : मुआवजे की पात्रता हेतु अधिग्रहित की गई भूमि पर आजीविका कमाने वालों के लिए आश्रित अवधि विचारोपरान्त तीन वर्ष ही रखी गई है।

2. प्रभावित परिवारों में पट्टीदारों को शामिल करना : नये कानून में ‘प्रभावित’ की परिभाषा को व्यापक बनाया गया। अब इसमें कृषि मजदूर, पट्टेदार किसान, बटाईदार अथवा ऐसे कामगार भी शामिल किए गए हैं जो प्रभावित क्षेत्र में अधिग्रहण से तीन वर्ष पूर्व से कार्य कर रहे हों और जिनकी आजीविका कृषि पर ही निर्भर है।

3. सभी प्रभावितों को आवास : प्रत्येक प्रभावित परिवार को एक आवास का अधिकार होगा। इसमें यह शर्त है कि वे प्रभावित क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण होने के तीन वर्ष या इससे अधिक अवधि से रह रहे हों। यदि उन्हें आवास की आवश्यकता नहीं होगी तो एकमुश्त वित्तीय सहायता दी जाएगी। 4. वार्षिकी या रोजगार का विकल्प : सभी प्रभावित परिवारों का वार्षिकी अथवा रोजगार अथवा एकमुश्त अनुदान का विकल्प है। रोजगार न दिए जाने पर प्रति परिवार को एकमुश्त पाँच लाख रुपए का अनुदान पाने का अधिकार है। विकल्प के रूप में 20 वर्ष तक दो हजार रुपए प्रतिमाह वार्षिकी का भुगतान किया जाएगा। इसे मुद्रास्फीति की दर के अनुसार समायोजित किया जाएगा।

5. भरण-पोषण भत्ता : विस्थापित परिवारों को अवार्ड की तिथि से एक वर्ष तक 3 हजार रुपए मासिक भरण-पोषण भत्ता दिया जाएगा।

6. प्रशिक्षण और कौशल विकास : प्रभावित परिवारों को रोजगार देते समय कौशल विकास हेतु प्रशिक्षण।

7. विविध राशियाँ : सभी प्रभावित परिवारों को बहुमौद्रिक लाभ, जैसे 50 हजार रुपए का परिवहन भत्ता एवं 50 हजार रुपए पुनर्वासन भत्ता मिलेगा।

8. कारीगरों को एकमुश्त वित्तीय सहायता : कारीगरों, छोटे व्यापारियों अथवा अपना कारोबार करने वाले प्रत्येक प्रभावित परिवार को 25 हजार रुपए की एकमुश्त वित्तीय सहायता।

9. सिंचाई परियोजनाओं से सम्बन्धित मामले : सिंचाई अथवा पन-बिजली परियोजना हेतु अधिग्रहित भूमि पर जल-भराव से 6 माह पूर्व पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन की सम्पूर्ण व्यवस्था आवश्यक है।

10. भूमि का कब्जा : भूमि का कब्जा मुआवजा भुगतान, पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन की व्यवस्था करने के बाद ही मिलेगा। प्रभावित परिवारों को तीन महीने के भीतर मुआवजे तथा पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन के मौद्रिक कलाम का अवार्ड की तिथि से 5 माह के भीतर भुगातन करना होगा। पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन की उत्तम व्यवस्था हेतु आधारभूत संख्या कार्य 18 माह के भीतर पूरे किए जाएँगे।

अनुसूचित वर्गों का संरक्षण


नये कानून में अनुसूचित जातियों के हितों के संरक्षण सुनिश्चित किए गए हैं। इन वंचित वर्गों के लिए व्यापक व्यवस्थाएँ करते हुए अलग अध्याय बनाया गया है। यह प्रयास किया जाएगा कि अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण न हो, लेकिन आवश्यक होने पर ग्राम सभा या स्वायत्त परिषद की सहमति लेनी होगी। इन वर्गों की भूमि अधिग्रहण किए जाने पर मुआवजे की एक-तिहाई धनराशि का स्थल पर ही भुगतान करना होगा। प्रभावित अनुसूचित वर्गों के लोगों को यथासम्भव उसी अनुसूचित क्षेत्र में ही पुनर्व्यवस्थापित करने के कार्य को प्राथमिकता दी जाएगी, जिससे उनकी सामुदायिक, सांस्कृतिक एवं भाषाई पहचान बनी रह सके।

पुनर्व्यवस्थापन क्षेत्रों में अनुसूचित वर्गों के लिए सामुदायिक एवं सामाजिक कार्यों के लिए सरकार निःशुल्क जमीन उपलब्ध कराएगी। आज विद्यमान कानूनों और नियमों की अनदेखी से आदिवासियों की भूमिका का हस्तान्तरण हुआ तो उसे रद्द समझा जाएगा। ऐसी भूमि के अधिग्रहण का मुआवजा तथा आरएण्डआर (पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन) लाभ भूमि के मूल मालिक को दिए जाएँगे।

सिंचाई की पन-बिजली परियोजनाओं के प्रभावित आदिवासियों, अन्य परम्परागत वन निवासियों तथा अनुसूचित जाति के परिवारों को प्रभावित क्षेत्र की नदियों, तालाबों व जलाशयों में मछली पकड़ने का अधिकार मिलेगा।

अनुसूचित क्षेत्र (जिले) से बाहर पुनर्व्यवस्थापन करने पर प्रभावित अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) परिवारों को पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन लाभों का 25 प्रतिशत अतिरिक्त भुगतान किया जाएगा। इसके अलावा उन्हें 50 हजार रुपए एकमुश्त धनराशि और दी जाएगी जिससे उन्हें अपने नये पुनर्वास स्थल तक यात्रा करने में आसानी हो। अनुसूचित वर्गों को अधिग्रहित भूमि के बराबर या कम-से-कम ढाई एकड़ भूमि, जो भी कम हो, मिलेगा। अनुसूचित क्षेत्रों में भरण-पोषण राशि के अलावा विस्थापितों को 50 हजार रुपए की अतिरिक्त राशि भी दी जाएगी। यह एक वर्ष के लिए दी जाने वाली 3 हजार रुपए प्रतिमाह की भरण-पोषण राशि के अतिरिक्त होगी।

सामाजिक प्रभाव आकलन


नये कानून में सामाजिक प्रभाव आकलन के अलावा पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका को भी सुनिश्चित किया गया है। पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों से राय लेकर सामाजिक प्रभाव आकलन किया जाएगा। आकलन के बारे में रिपोर्ट तैयार होने पर उसे स्थानीय लोगों को उनकी भाषा में समझाया जाएगा। आकलन करने वाले विशेषज्ञ समूह में पंचायत राज संस्थाओं के दो प्रतिनिधि भी होंगे। प्रभावित क्षेत्र की पंचायत राज संस्थाओं में जन सुनवाई की व्यवस्था तथा पैसा 1996 का अनुपालन, परियोजना स्तर पर पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन (आरएण्डआर) समिति में प्रभावित क्षेत्र की पंचायतों का प्रतिनिधित्व और तीसरी अनुसूची में दी गई आधारभूत अवसंरचना सम्बन्धी सुविधाओं की सूची के अनुसार पंचायत भवन की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।

राज्य सरकार की भूमिका


नये कानून में राज्य सरकार की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाया गया है। इसमें मुआवजे के लिए आधारभूत विधि उपलब्ध कराते हुए स्लाइडिंग स्केल की संरचना की गई है। जिसमें राज्यों को गुणक निर्धारित करने की अनुमति दी गई है। जहाँ अधिग्रहित भूमि पाँच वर्षों तक रहेगी वहाँ उसके बारे में राज्य सरकारों को निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है। ऐसी भूमि भू-स्वामी या भूमि बैंक को दी जा सकती है। निजी खरीद के लिए जमीन की सीमा राज्य सरकार निश्चित कर सकेगी तथा पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन समितियों के कार्यकलाप निर्धारित करने का कार्य भी राज्य सरकारों पर छोड़ा गया है।

नये कानून में सिंचित बहुफसली अथवा कृषि भूमि के अधिग्रहण को हतोत्साहित किया गया है। इसके लिए राज्य सरकारों को अधिकार दिए गए हैं। राज्य सरकारों को अधिकार दिया गया है कि वे आँकलित मुआवजा राशि को बढ़ाने के लिए अन्य कानून बना सकते हैं।

खाद्य सुरक्षा के लिए व्यवस्था


नये कानून में व्यवस्था की गई है कि जहाँ तक हो सके सिंचित बहुफसली तथा कृषि़ योग्य भूमि का अधिग्रहण न किया जाए तथा ऐसी परिस्थिति में बंजर भूमि को खेती योग्य बनाया जाएगा। यदि बंजर भूमि उपलब्ध न हो तो अधिग्रहित भूमि की कीमत के बराबर राशि कृषि क्षेत्र में विनियोग करने के लिए सरकार के पास जमा कराई जाएगी। किसी जिला विशेष या सम्पूर्ण राज्य में बहुफसली सिंचित भूमि के क्षेत्रफल के अधिग्रहण की अधिकतम सीमा का निर्धारण राज्य सरकार करेगी।

बंजर भूमि का एटलस


ग्रामीण विकास मन्त्रालय देश भर के सभी जिलों में उपलब्ध बंजर भूमि का एटलस बनाने का कार्य कर रही है। अभी तक राज्यों को ही अपने राज्य की बंजर भूमि की जानकारी है लेकिन अब जिलावार पूरे देश की बंजर भूमि की समग्र जानकारी उपलब्ध हो जाएगी। एक अनुमान के अनुसार अभी देश में करीब 5 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन है। बंजर भूमि की जानकारी एकत्र हो जाने के बाद भूमि अधिग्रहण में बंजर जमीन को प्राथमिकता दी जा सकेगी।

निवेशकों की चिन्ता का समाधान


नये कानून में निवेशकों की चिन्ता का समाधान करने का भी प्रयास किया गया है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं के मामले में सहमति 80 प्रतिशत से घटाकर 70 प्रतिशत कर दी गई है। इसके लिए आजीविका से सम्बन्धित लोगों की सहमति लेना आवश्यक नहीं होगा। बाजार मूल्य की परिभाषा को सरल करने, भूमि मुआवजा निर्धारण में लचीली व्यवस्था, सिंचित बहुफसली भूमि तथा विशुद्ध बुवाई क्षेत्र की सीमा का निर्धारण, भूमि की निजी खरीद पर आरएण्डआर की सीमा निर्धारण में राज्यों को अधिकार, भूमि अधिग्रहण करने वाली संस्था के लिए सरल करने के अलावा नये कानून में कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि वह ऐसे सौदों का संज्ञान न ले जो बाजार मूल्य की संगणना करते समय वास्तविक मूल्य न दर्शाते हों।

जहाँ भूमि का अधिग्रहण एक सीमा से नीचे किया जा रहा हो तब जिला अधिकारी (कलेक्टर) अधिग्रहण प्राधिकारी हो सकते हैं। इस प्रावधान से कम क्षेत्रफल की भूमि अधिग्रहण करने के मामलों में आसानी होगी और छोटी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण आसानी से किया जा सकेगा।

जिलाधिकारी के अधिकारों पर नियन्त्रण


नये कानून में जिलाधिकारी द्वारा भूमि अधिग्रहण स्वतः करने के अधिकारों को नियन्त्रित किया गया है। यह अधिकार था कि वह उन गतिविधियों को तय करे कि जनहित में कौन-सी गतिविधियाँ आती हैं। नये कानून में यह निर्धारित करने का अधिकार अब जिला अधिकारी से वापस ले लिया गया है। इस कानून में जनहित के मापदण्ड सुस्पष्ट कर दिए गए हैं। अब जिला अधिकारी इस कानून में उल्लिखित जनहित कार्यों की सूची में कोई परिवर्तन नहीं कर सकते हैं। जिलाधिकारी को पहले 1894 के कानून में विस्थापित को दिए जाने वाले मुआवजे को निर्धारित करने का भी अधिकार था जबकि नये कानून में इसके लिए एक फार्मूला बनाया गया है जिसमें जिलाधिकारी कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकता है। उसका कार्य निर्धारित दर पर मुआवजे की गणना कर उसका भुगतान सुनिश्चित करना है।

जिलाधिकारी को पुराने कानून में यह फैसला करने का अधिकार था कि कब्जा कब लिया जाए। साथ ही वह एक महीने का नोटिस देकर किसी भी परिवार को विस्थापित कर सकता था। नये कानून में व्यवस्था की गई है कि अब तभी कब्जा लिया जा सकता है जब भू-स्वामी को अधिग्रहण की गई भूमि के मुआवजे का पूरा भुगतान कर दिया गया हो और पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन की सारी प्रक्रियाएँ पूरी कर दी गई हों।

पुराने कानून में जिलाधिकारी को आपात क्लाज की निरंकुश शक्तियाँ प्राप्त थीं और वह स्वयं उनके बारे में फैसला ले सकता था। अब प्राकृतिक आपदा और राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बन्धित मामलों को छोड़कर वह स्व-विवेक से भूमि अधिग्रहण के अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकेगा।

पुनर्विचार का अधिकार


नये कानून के अन्तर्गत अगर कोई प्रभावित भूमि अधिग्रहण के बारे में किए गए निर्णय से सन्तुष्ट नहीं है तो उसे पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरण के समक्ष मुआवजे या अन्य सुविधाओं में संशोधन या वृद्धि करने के बारे में याचिका दायर करने का अधिकार है। नये कानून में प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान किया गया है। प्राधिकरण को 6 महीने के भीतर याचिका पर फैसला करना होगा। अगर इसके बाद भी प्रभावित परिवार प्राधिकरण के फैसले से सन्तुष्ट न हों तो वह अदालत में प्राधिकरण के फैसले के खि़लाफ अपील कर सकता है।

भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन तथा पुनर्व्यवस्थापन विधेयक, 2013 से नक्सल प्रभावित जिलों में भी व्यापक प्रभाव पड़ने की सम्भावना है। देश के 88 नक्सल प्रभावित जिले हैं जहाँ जंगल और जमीन से जुड़े मुद्दे प्रभावित कर रहे हैं। सही ढंग से इस कानून के लागू होने से आदिवासियों को भी अधिकाधिक फायदा होगा। यह एक ऐसा विधेयक है जिसमें भू-स्वामी को शोषण से बचाने का पूरा प्रयास किया गया है और उसके अधिकारों को पूरी तरह से सुरक्षित रखा गया है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
ई-मेल: devendra.kumar@gmail.com

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