Posted on 18 Dec, 2012 02:51 PMहाउसिंग सोसायटी के बाहर एक घना पेड़ है। गर्मियों में उसकी छाया ठंडी रहती है। इसलिए वहां लोग आराम के इरादे से आ खड़े होते हैं। वहीं एक पान वाले का ठिकाना है। वह पेड़ के नीचे की कच्ची जमीन पर पानी का छिड़काव करता रहता है, जमीन ठंडी हो जाती है। वहां कुछ लोग कबूतरों के लिए दाने डाल देते हैं। कबूतरों का झुंड गुटरगूं करता हुआ, पंख फड़फड़ाता उड़ता-उतरता रहता है।
Posted on 18 Dec, 2012 02:08 PMपहले गणेशोत्सव, फिर विश्वकर्मा पूजा और फिर नवरात्र के समय जगह-जगह स्थापित की गई मूर्तियों का सार्वजनिक तालाबों, झीलों और नदियों में विसर्जन और अब आसन्न दीपावली के वक्त पर्यावरणपूरक मूर्ति-विसर्जन पर विचार किया जाना बेहद जरूरी है।
Posted on 17 Dec, 2012 10:58 AMराष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन की पर्यावरणीय प्रबंधन योजना बनाने वालों के दिमाग में एक बात तो साफ है कि जरूरत क्या है। वे अच्छी तरह जानते हैं कि वाकई होना क्या चाहिए। उन्हें यह भी मालूम है कि तकनीक, पैसा, सामाजिक सहयोग, न्यायपालिका, नगरपालिका और शासकीय तंत्र के एकजुट हुए बगैर गंगा बेसिन की पर्यावरण प्रबंधन योजना का सफल क्रियान्वयन संभव नहीं होगा। इन सभी का सहयोग चाहिए, तो योजना निर्माण के शुरुआती स्तर स
Posted on 15 Dec, 2012 03:04 PMबहती नदी के साथ बहता वह समय आता हुआ छूटती है दूर तक लहरों से बनी कृतियां शब्दों से दूर बसी नदी की गहराई में कविता पर्वतों के बीच से सबसे तरल दिल बह रहा है धड़कनों के साथ किनारों पर मिल रहा है जो बस छूटता है फिर भी अकेली जंगलों और पर्वतों के गांव प्यासे हैं दूर है अब भी नदी नदी के होंठ से