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ग्रीन क्रिसमस मनाने का संदेश
Posted on 19 Dec, 2012 11:57 AM दुनिया में अन्य त्योहारों के अनुसार अब पर्यावरण हितैषी क्रिसमस मना
हवा में घुलता जहर
Posted on 19 Dec, 2012 11:33 AM समूचे देश की मिट्टी, पानी और हवा लगातार प्रदूषित हो रही है। औद्योगीकरण की रफ्तार ने प्रदूषण की मात्रा
Air pollution
प्याऊ
Posted on 18 Dec, 2012 02:51 PM हाउसिंग सोसायटी के बाहर एक घना पेड़ है। गर्मियों में उसकी छाया ठंडी रहती है। इसलिए वहां लोग आराम के इरादे से आ खड़े होते हैं। वहीं एक पान वाले का ठिकाना है। वह पेड़ के नीचे की कच्ची जमीन पर पानी का छिड़काव करता रहता है, जमीन ठंडी हो जाती है। वहां कुछ लोग कबूतरों के लिए दाने डाल देते हैं। कबूतरों का झुंड गुटरगूं करता हुआ, पंख फड़फड़ाता उड़ता-उतरता रहता है।
आस्थाजनित प्रदूषण से कैसे मिले मुक्ति
Posted on 18 Dec, 2012 02:08 PM पहले गणेशोत्सव, फिर विश्वकर्मा पूजा और फिर नवरात्र के समय जगह-जगह स्थापित की गई मूर्तियों का सार्वजनिक तालाबों, झीलों और नदियों में विसर्जन और अब आसन्न दीपावली के वक्त पर्यावरणपूरक मूर्ति-विसर्जन पर विचार किया जाना बेहद जरूरी है।
सबकी राय का सम्मान और साझेदारी का ऐलान
Posted on 17 Dec, 2012 10:58 AM राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन की पर्यावरणीय प्रबंधन योजना बनाने वालों के दिमाग में एक बात तो साफ है कि जरूरत क्या है। वे अच्छी तरह जानते हैं कि वाकई होना क्या चाहिए। उन्हें यह भी मालूम है कि तकनीक, पैसा, सामाजिक सहयोग, न्यायपालिका, नगरपालिका और शासकीय तंत्र के एकजुट हुए बगैर गंगा बेसिन की पर्यावरण प्रबंधन योजना का सफल क्रियान्वयन संभव नहीं होगा। इन सभी का सहयोग चाहिए, तो योजना निर्माण के शुरुआती स्तर स
पहाड़, जंगल, जमीन सब बेच दोगे अगर
Posted on 15 Dec, 2012 03:11 PM (1)
झोपड़ियों के तन झुलसाती हैं
ये नदियां महानगर को जाती हैं।

सड़के हैं या पीठ अजगरों की
महानगर है या उसका फन है
धुंध धुए के फूल महकते हैं
इमारतों का यह चंदन वन है।

कटी जेब सा मन लुटवाती है
ये नदियां महानगर को जाती हैं।

ये जो रक्त शिरायें हैं
सारी पगडंडियां गांव की हैं
ये जो अपनी शब्द शिलाऐं हैं
क्या नदी बिकी (नुक्कड़ों पर एकल पाठ के लिये)
Posted on 15 Dec, 2012 03:04 PM बहती नदी के साथ बहता
वह समय
आता हुआ
छूटती है दूर तक
लहरों से बनी कृतियां
शब्दों से दूर बसी
नदी की गहराई में कविता
पर्वतों के बीच से
सबसे तरल दिल
बह रहा है
धड़कनों के साथ
किनारों पर
मिल रहा है जो
बस छूटता है
फिर भी अकेली
जंगलों और पर्वतों के
गांव
प्यासे हैं
दूर है अब भी नदी
नदी के होंठ से
मुनाफाखोर नदियों को भी बाजारों में लाये
Posted on 15 Dec, 2012 02:55 PM कंधों पर लदी इसके एक सदी है
यह बहते हुए पानी से लदी है।

जल वर्षा का खलियानों में रोको
खुशहाली की अब फसलों को रोपो

नदी ये, नदी ये सबकी नदी है
यह बहते हुए पानी से लदी है।

पेड़ की यह जड़े मिट्टी की है बांधे
तभी तो मजबूत है पर्वत के कांधे

यह रोई तो सदा रोई सदी है
यह बहते हुए पानी से लदी है।
सुनता है नदियों का बहता पानी
Posted on 15 Dec, 2012 02:46 PM उठती हुई आवाज की बानी
सुनता है नदियों का बहता पानी

गंगा की आंखों में आंसू भरे हैं
यहां वहां के लोग डरे हैं

कौन दिलायेगा हिस्सेदारी
सुनता है नदियों का बहता पानी

खेतों में उगते हैं डंडे-झंडे
जिंदा है लोगों के पैने हथकंडे

पर्वत से बहती पानी जवानी
सुनता है नदियों का बहता पानी

कर्जे में डूबे देश को देखो
सूखेंगी नदियां तो, रोयेगी, सदियां
Posted on 15 Dec, 2012 02:39 PM तुम हो पर्वत पर,
या हो घाटी में।

है अपना दर्द एक, एक ही कहानी,
सूखेंगी नदियां तो, रोयेगी, सदियां,

ऐसा न हो प्यासा, रह जाये पानी।
हमने जो बोया वो काटा है, तुमने,
मौसम को बेचा है बांटा है, तुमने,
पेड़ों की बांहों को काटा है, तुमने।

इस सूनी घाटी को,
बांहों में भर लो,
सूखे पर्वत की धो डालो, वीरानी।
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