Posted on 04 Oct, 2013 04:12 PMनदी अगर थी तो कहाँ थी? कब थी? पेड़ों को कैंया लिए भागती नदी मन ही मन आवाज दी नदी को कि होगी तो बोलेगी हथेली से मूँद दिया सारे शब्दों को कि निस्तब्धता में सुनाई दे नदी के होने का शब्द।
Posted on 04 Oct, 2013 04:11 PMनदी के स्रोत पर मछलियाँ नहीं होतीं शंख-सीपी मूँगा-मोती कुछ नहीं होता नदी के स्रोत पर गंध तक नहीं होती सिर्फ होती है एक ताकत खींचती हुई नीचे जो शिलाओं पर छलाँगें लगाने पर विवश करती है।
सब कुछ देती है यात्रा लेकिन जो देते हैं धूप-दीप और
Posted on 04 Oct, 2013 04:08 PMहमने घी और दूध से भरी नदियों का स्मरण किया और उन्हें मल और मूत्र से भर दिया नदी की सतह पर अब सिर्फ कालिख और तेल है सूरज तक नहीं देख पाता उसमें अपना चेहरा मछलियों का दम कब का घुट चुका मर चुकी है नदी माझी तुम किस खुशी में ट्रांजिस्टर बजा रहे हो इस लाश के किनारे गा सको तो गाओ हइया ओ हइया वाला गीत याद आएँ दृश्य बचपन में देखी हुई फिल्म के
Posted on 04 Oct, 2013 04:02 PMइतिहास की एक नदी को एक बिछुड़े लोगों के शहर के किनारे मैंने पाया कि गंगा है गंगा नदी का अवशेष, जल-खँडहर।
बाढ़ आई होगी के बाद बिछुड़े लोगों के एक शहर में मिल जाने वाले रास्ते खो जाने वाले रास्ते हैं। बिछुड़ों को ढूँढ़ने मैं इन्हीं खो जाने वाले रास्तों में हूँ जो नहीं मिले थे उनको पाने स्वयं अपने नहीं मिलने में