दिल्ली

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नाच
Posted on 04 Oct, 2013 04:14 PM नाच में शामिल थे
कालिये की पूँछ
और कालिये का फन
डूबा था जमुना में
थमे पैर के नीचे का फन

उठ आई थी जमुना
अधर में उठे नाचते पैर के साथ-साथ।

होने का शब्द
Posted on 04 Oct, 2013 04:12 PM नदी अगर थी
तो कहाँ थी?
कब थी?
पेड़ों को कैंया लिए भागती नदी
मन ही मन आवाज दी
नदी को
कि होगी तो बोलेगी
हथेली से मूँद दिया
सारे शब्दों को
कि निस्तब्धता में सुनाई दे
नदी के होने का शब्द।

यात्रा
Posted on 04 Oct, 2013 04:11 PM नदी के स्रोत पर मछलियाँ नहीं होतीं
शंख-सीपी मूँगा-मोती कुछ नहीं होता नदी के स्रोत पर
गंध तक नहीं होती
सिर्फ होती है एक ताकत खींचती हुई नीचे
जो शिलाओं पर छलाँगें लगाने पर विवश करती है।

सब कुछ देती है यात्रा
लेकिन जो देते हैं धूप-दीप और

जय-जयकार देते हैं
वही मैल और कालिख से भर देते हैं

धुआँ-धुआँ होती है नदी
नावें
Posted on 04 Oct, 2013 04:09 PM नावों ने खिलाए हैं फूल मटमैले
क्या उन्हें याद है कि वे कभी पेड़ बनकर उगी थीं

नावें पार उतारती हैं
खुद नहीं उतरतीं पार
नावें धार के बीचोंबीच रहना चाहती हैं

तैरने ने दे उस उथलेपन को समझती हैं ठीक-ठाक
लेकिन तैरने लायक गहराई से ज्यादा के बारे में
कुछ भी नहीं जानतीं नावें

बाढ़ उतरने के बाद वे अकसर मिलती हैं
छतों या पेड़ों पर चढ़ी हुई
नदी
Posted on 04 Oct, 2013 04:08 PM हमने घी और दूध से भरी नदियों का स्मरण किया
और उन्हें मल और मूत्र से भर दिया
नदी की सतह पर अब सिर्फ कालिख और तेल है
सूरज तक नहीं देख पाता उसमें अपना चेहरा
मछलियों का दम कब का घुट चुका
मर चुकी है नदी
माझी तुम किस खुशी में
ट्रांजिस्टर बजा रहे हो इस लाश के किनारे
गा सको तो गाओ हइया ओ हइया वाला गीत
याद आएँ दृश्य
बचपन में देखी हुई फिल्म के
पार
Posted on 04 Oct, 2013 04:06 PM पुल पार करने से
पुल पार होता है
नदी पार नदी होती

नदी पार नहीं होती नदी में धँसे बिना

नदी में धँसे बिना
पुल का अर्थ भी समझ में नहीं आता
नदी में धँसे बिना
पुल पार करने से
पुल पार नहीं होता
सिर्फ लोहा-लंगड़ पार होता है

कुछ भी नहीं होता पार
नदी में धँसे बिना
न पुल पार होता है
न नदी पार होती है।

शाप
Posted on 04 Oct, 2013 04:04 PM पेड़ शाप देते हैं

बचे हुए पेड़ धीरे-धीरे अपने पैरों के पास
रेतीली जमीन या पहाड़ों की नंगी रीढ़ सरकते आते देखते हैं
और समझ जाते हैं

प्रतीक्षा करते हैं कि कटकर गिरने से पहले
अपने शरीरों से उठती अंतिम गंध को नहीं कोई तो
सूख जाने वाली उनकी पत्तियाँ ही सूँघे

बादल, नदियाँ, जानवर और चिड़ियाँ
सुनते हैं पेड़ों की आखिरी साँसों को
कहा नदी ने
Posted on 04 Oct, 2013 04:03 PM चट्टानों से चूर-चूर होने का नाटक
चट्टानों को बहलाने के लिए नहीं है

पाला पड़ा
जनम लेते ही
चट्टानों से

पानी की चट्टानें भी
चट्टाने ही हैं

फिर आते गिरि-गह्वर, समतल
और विषम भी

आएगी फिर कोख
कंदरा-मग्न कपिल भी
फिर आएँगे सगर-पुत्र
फिर पछताएगी
पूरी वंशावली...और फिर
दुहराएगी वही कथा

फिर?
इतिहास की एक नदी को
Posted on 04 Oct, 2013 04:02 PM इतिहास की एक नदी को
एक बिछुड़े लोगों के शहर के किनारे
मैंने पाया कि गंगा है
गंगा नदी का अवशेष, जल-खँडहर।

बाढ़ आई होगी के बाद
बिछुड़े लोगों के एक शहर में
मिल जाने वाले रास्ते
खो जाने वाले रास्ते हैं।
बिछुड़ों को ढूँढ़ने
मैं इन्हीं खो जाने वाले रास्तों में हूँ
जो नहीं मिले थे
उनको पाने
स्वयं अपने नहीं मिलने में
आदिवासियों को मिटाने की साजिश
Posted on 04 Oct, 2013 12:20 PM आदिवासी समाज के बारे में जितनी गहरी समझ डॉ.
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