दिल्ली

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नदी
Posted on 15 Oct, 2013 01:38 PM (1)
नदी ने जो सहा
नदी जानती है
उसके दो किनारे हैं
उनका शासन भी
वह मानती है
जहाँ भी वह जाती है
उन्हें अपने साथ पाती है
(2)
नदी तो बहती है, बहेगी
वह थिर क्यों रहेगी

(3)
नदी को समुद्र से
जा मिलने की इच्छा है
तीव्र इच्छा

लेकिन समुद्र
उसे,केवल उसे, चाहता है
बाढ़ में
Posted on 15 Oct, 2013 01:37 PM बाढ़ में बहते जाते हैं पुरखों के संदूक सारा माल-मता
औजार
हमारे मामूली रोजगार के
कागज-पत्तर जिनमें थे
हारों के दुखों के हाल
जिन्हें कोई दर्ज नहीं करता
कला कर्म की भाषा के धंधे और इतिहास
जिनसे बेखबर रहते हैं
हर कहीं गाफिल एक से

पानी में दिखता है कभी तेज बहाव में
छटपटाता हुआ कोई
बेमानी मगर उसकी छटपटाहट बिलकुल निरुपाय
पनघट पर भगीरथ
Posted on 15 Oct, 2013 01:35 PM (1)
आगे-आगे भगीरथ पीछे-पीछे गंगा
पवित्र पानी खाता है पछाड़
कटता है पहाड़ बनता है रास्ता

वेग, गति और प्रवाह से गंगा बन गई नदी
नदी की देह में मटमैला गाद
बनते जाते हैं फैलते जाते हैं दोआब
नदी के मुंह पर झाग ही झाग

आगे-आगे भगीरथ पीछे-पीछे गंगा
तल मल बहता है जैसे पुरखों के शव

पानी के पहिए पर पाँव और बीच भँवर घोड़े
ग्राम पंचायतों की पेयजल सुरक्षा योजना
Posted on 15 Oct, 2013 12:25 PM ग्राम पंचायत में पानीपेयजल आपूर्ति विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 1अप्रैल 2009 को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP) का शुभारंभ किया गया।
निर्मल ग्राम पुरस्कार (दिसंबर -2012)
Posted on 15 Oct, 2013 11:09 AM

सेनिटेशनभारत सरकार, ग्रामीण भारत के लोगों के बेहतर स्वास्थ्य और जीवन स्तर सुनिश्चित करने हेतु एक अभियान मोड़ में स्वच्छता कवरेज को बढ़ावा दे रही है। इसके कार्यान्वयन में तेजी

निर्मल ग्राम
पुरी शंकराचार्य की प्रतिज्ञा पर जी डी ने छोड़ा अनशन
Posted on 14 Oct, 2013 03:00 PM

गंगा को विकृत करने में भाजपा-कांग्रेस दोनों का हाथ: पुरी शंकराचार्य


GD Agrawal
शौचालय बने चुनावी मुद्दा
Posted on 11 Oct, 2013 04:25 PM कितनी शर्म की बात है कि आज़ादी के 66 साल बाद भी भारत के ज्यादातर लो
खाद की जीती-जागती फ़ैक्टरी
Posted on 11 Oct, 2013 04:15 PM नरेद्र मोदी की माने तो देवालय से ज्यादा शौचालय की जरूरत है। हमारा काम देवालय गए बगैर भी चल सकता है लेकिन शौचालय गए बगैर तो बिल्कुल नहीं। फिलहाल जबकि देश की पूरी आबादी के पास शौचालय की सुविधा नहीं है तभी हमारी नदियां, सभी जलस्रोत मल-जल से अटे पड़े हैं। तब जरा कल्पना करके देखिए अगर जितने ज्यादा लोग उतने ज्यादा शौचालय होंगे तो देश के जलस्रोतों का क्या हाल होगा। कुदरत ने कुछ भी बेकार नहीं बनाया। ह
एक नदी
Posted on 10 Oct, 2013 10:15 AM एक नदी बाल्यावस्था
लांघ अल्हड़ यौवन का
स्पर्श मात्र ही कर पाई थी
कि बाँध दी गई
उन्मुक्तता उसकी
यह समझाकर कि
इस प्रकार कल्याण
कर पाएगी वो
जन जीवन का
नदी सहर्ष स्वीकार
करती है इस बंधन को
बिना विचारे आगत क्या है
किन्तु यह क्या
उसके संगी साथी
झरने, प्रपात,नन्ही धाराएं
सभी तो लुप्त हो गए
मानसून : अनुसंधान की दिशा, दीर्घकालीन पूर्वानुमान
Posted on 08 Oct, 2013 04:27 PM पिछले कुछ वर्षों से अखबारों में ‘एल नीनो’ की बहुत चर्चा होती रहती
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