दिल्ली

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वनाधिकारों से वंचित आदिवासी
Posted on 22 Dec, 2017 11:30 AM

आजादी के बाद धीरे-धीरे राज्य सरकारों ने वन में निवास करने वाले जनजातीय समुदाय और अन्य वन निवासियों के अधिक

संवहनीय खेती : फसल स्वरूप का पानी की उपलब्धता के अनुरूप निर्धारण
Posted on 19 Dec, 2017 04:50 PM
खेती की समुचित प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल, फसल पश्चात प्रसंस्करण तथा गुणवत्ता में वृद्धि के जरिए मौजूदा पारम्परिक कृषि में सुधार मुमकिन है। इससे खेती न सिर्फ लम्बे समय में संवहनीय बनेगी बल्कि उत्पादन को उपभोक्तावाद से जोड़कर इसे लाभकारी व्यवसाय भी बनाया जा सकेगा। दीर्घकालिक रूप से खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भरता बनाए रखने के लिये धान-गेहूँ रोटेशन प्रणाली की उपज क्षमता और पर्यावरण अनु
संदर्भ - जलवायु परिवर्तन का असर
Posted on 19 Dec, 2017 03:47 PM

जलवायु तथा मौसम पैटर्नों के आधार पर टॉरनेडो, हरिकेन, चक्रवात, अंधड़ तथा दावाग्नियों के घटनास्थलों की भविष्

Climate change
बढ़ रही है सूखे और ग्रीष्म लहर की दोहरी चुनौती (Increasing Frequency and Spatial Extent of Concurrent Droughts)
Posted on 18 Dec, 2017 04:10 PM
नई दिल्ली : भारत के विभिन्न हिस्सों में सूखे और ग्रीष्म लहर की घटनाएँ एक साथ मिलकर दोहरी चुनौती दे रही हैं। भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि देश भर में एक ही समय में सूखे और ग्रीष्म लहर की घटनाएँ न केवल बढ़ रही हैं, बल्कि उनका दायरा भी लगातार बढ़ रहा है।
वे पहले से हमें कपटी मान बैठे थे
Posted on 17 Dec, 2017 12:23 PM
अगस्त 2003 में भारत एक बेहद असामान्य लड़ाई का गवाह बना। यह लड़ाई एक गैर लाभकारी संगठन और विश्व की ताकतवर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बीच थी। उस वक्त जब सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने कोला ड्रिंक्स में कीटनाशक मिलने का अध्ययन जारी किया तब कोका कोला और पेप्सी जैसी कम्पनियों ने अपनी प्रतिद्वंद्विता भुलाकर हाथ मिला लिया। लेकिन लोगों के स्वास्थ्य की जीत हुई। सुनीता नारायण की किताब ‘कॉन्फ्
ग्रीन बिल्डिंग्स के लाभ
Posted on 16 Dec, 2017 10:29 AM

परिणामस्वरूप ये सब चीजें उस वातावरण का हिस्सा बन जाती हैं, जिनमें हम जीते हैं, जिससे हमारी जीवन स्थितियों

अनुपम मिश्र - कहाँ गया उसे ढूँढो
Posted on 15 Dec, 2017 12:49 PM
मुझे एक गीत की ये पंक्तियाँ याद आ रही हैं

कहाँ गया उसे ढूँढो../
सुलगती धूप में छाँव के जैसा/
रेगिस्तान में गाँव के जैसा/
मन के घाव पर मरहम जैसा था वो/
कहाँ गया उसे ढूँढो...


पर वह तो अदृश्य में खो गया है। एक ऐसे अदृश्य में, जहाँ रोशनी नहीं पहुँचती। जब तक था, सबको रोशनी दी। सबको रोशन किया।
अनुपम मिश्र
हवा में जहर का कारोबार
Posted on 15 Dec, 2017 12:19 PM


दुनियाभर से सबसे गंदे ईंधनों पेट कोक और फर्नेस तेल को भारत में बड़ी मात्रा में मँगाया जा रहा है।

वायु प्रदूषण
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