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भारत में भौगोलिक चेतना और जलवायु चेतना अनादि काल से सांस्कृतिक चेतना का मूल अंग थी। कैलाश-मानसर
जब समाज और सेवा दो अलग-अलग शब्दों की तरह टूटते हैं तो बीच-बीच खाली जगह से सोशल वर्करों की घुसपैठ होती है। इन्हीं सोशल वर्करों में से तरक्की करके कुछ लोग एनजीओज बनते हैं, फिर इन एनजी.ओज को समाज की बजाए कंप्यूटर की वेबसाइट में ढूंढना पड़ता है।
बूंदों को देखो तो लगता है कि जैसे वे पानी के बीज हों। वर्षा धरती में पानी ही तो बोती है। पहले झले के पानी की एक-एक बूंद को पीकर धरती की गोद हरियाने लगती है। जैसे हरेक बूंद से एक अंकुर फूट रहा हो, जैसे धरती फिर से जी उठी हो। बरसात आते ही वह फूलों, फलों, औषधियों और अन्न को उपजाने के लिए आतुर दिखाई देती है।सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में साफ पेयजल की उपलब्धता को संविधान के अनुच्छेद इक्कीस में