दिल्ली

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जान लेती जहरीली हवा
Posted on 27 Dec, 2016 04:08 PM
प्रदूषण के कारण साँस सम्बन्धी रोगों के बढ़ने से दिल्ली में ही
जलसंकट से निपटेगा हाइड्रोजेल
Posted on 27 Dec, 2016 03:22 PM

हाइड्रोजेल के कण बारिश होने पर या सिंचाई के वक्त खेत में जाने वाले पानी को सोख लेता है और

तालाब जितने सुन्दर व श्रेष्ठ होंगे, अनुपम की आत्मा उतना सुख पाएगी - राजेन्द्र सिंह
Posted on 26 Dec, 2016 11:59 AM


हम सभी के अपने श्री अनुपम मिश्र नहीं रहे। इस समाचार ने पानी-पर्यावरण जगत से जुड़े लोगों को विशेष तौर पर आहत किया। अनुपम जी ने जीवन भर क्या किया; इसका एक अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अनुपम जी के प्रति श्रद्धांजलि सभाओं के आयोजन का दौर इस संवाद को लिखे जाने के वक्त भी देश भर में जारी है।

पंजाब-हरियाणा में आयोजित श्रद्धांजलि सभाओं से भाग लेकर दिल्ली पहुँचे पानी कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह ने खुद यह समाचार मुझे दिया। राजेन्द्र जी से इन सभाओं का वृतान्त जानने 23 दिसम्बर को गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान पहुँचा, तो सूरज काफी चढ़ चुका था; 10 बज चुके थे; बावजूद इसके राजेन्द्र जी बिस्तर की कैद में दिखे। कारण पूछता, इससे पहले उनकी आँखें भर आईं और आवाज भरभरा उठी।

अनुपम मिश्र
अनुपम जिन पर सादगी फिदा हुई
Posted on 25 Dec, 2016 11:18 AM
अनुपम अपने उस पर्यावरण में जा मिले जिससे स्वयं एकाकार होने और सबको एकाकार करने की प्रार्थना में उनका जीवन 5 जून, 1948 से चला और 19 दिसम्बर, 2016 को रुका!
अनुपम मिश्र
आसान नहीं स्थायी न्यायाधिकरण से जल विवादों का हल
Posted on 25 Dec, 2016 10:04 AM
सवाल यह उठता है कि इतने सारे न्यायाधिकरण, प्राधिकरण होने के ब
ancient pond
अच्छे-अच्छे काम करते जाना
Posted on 24 Dec, 2016 11:28 AM

सच्चाई और साफगोई के व्यक्तित्व-अनुपम मिश्र को समर्पित



अनुपम मिश्रअनुपम मिश्रविश्वविद्यालय परिसर में अनेकों बार उनसे मुलाकात हुई, साथ बैठने का सानिध्य भी मिला। जबसे कुछ-कुछ समझने लगा हूँ- दो दशक में, लोग मिले लेकिन चेहरे अलग और मुखौटे के पीछे कुछ और। बहुत कम मिले, जो भीतर-बाहर एक समान हों, उनमें से सहज-सरल-प्रतिभा सम्पन्न शख्स जो होगा, जाहिर तौर पर अनुपम ही होगा।

मिश्र जी जब सहजता से हाथ पकड़कर, समझाते थे तो लगता कि यह कोई संरक्षक या गुरुत्व का आडम्बर नहीं ओढ़े हैं, सहज मित्रवत, या उनके ही शब्दों में “भक्ति सूरदास सी जिसमें छोटे-बड़े का भाव ही नहीं है, फिर काहे ढँकना-छिपाना। या कि होगा कोई बड़े घराने का या कि राजकुमार, जब साथ है तो कोई क्या गरीब-क्या अमीर, कृष्ण-सुदामा सा सख्यभाव।”
सिंधु की सिसकियां
Posted on 23 Dec, 2016 12:52 PM

सिंधु घाटी सभ्यता की बात करना कोई इस्लाम अथवा मुस्लिम विरोधी बात नहीं है। सिंधु घाटी की स

यह अनुपम आदमी
Posted on 22 Dec, 2016 11:59 AM
यह कागद मैं उन्हीं अनुपम मिश्र और उनके काम पर काले कर रहा हूँ, जिनका जिक्र आपने कई बार देखा और पढ़ा होगा। यह जीने का वह रवैया है जिसे पहले समझे बिना अनुपम मिश्र के काम और उसे करने के तरीके को समझना मुश्किल है। जो बहुत सीधा-सपाट और समर्पित दिखता है वह वैसा ही होता तो जिन्दगी रेगिस्तान की सीधी और समतल सड़क की तरह उबाऊ होती।

आप, हम सब एक पहलू के लोग होते और दुनिया लम्बाई चौड़ाई और गहराई के तीन पहलुओं वाली बहुरूपी और अनन्त सम्भावनाओं से भरी नहीं होती। विराट पुरुष की कृपा है कि जीवन-संसार अनन्त और अगम्य है।
अनुपम मिश्र
चला गया पानी का असली पहरेदार
Posted on 20 Dec, 2016 11:57 AM

 

श्रद्धांजलि


समस्त इंडिया वाटर पोर्टल परिवार और अर्घ्यम की ओर से पानी के पुरोधा माने जाने वाले श्री अनुपम मिश्र जी को भावभीनी श्रद्धांजलि

श्री अनुपम मिश्र जी ने ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज दिल्ली में आज 19 दिसम्बर, 2016 प्रातः 5:27 पर अंतिम साँस ली। उनकी अंतिम विदाई यात्रा दोपहर 1:00 बजे से गांधी पीस फाउंडेशन से शुरू होगी और निगम बोध घाट के विद्युतीय शवदाहग्रह पर समाप्त होगी। 2:00 बजे से सभी रीतिरिवाजों के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी।

तब देश में पानी और पर्यावरण को लेकर इतनी बातें और आज की तरह का सकारात्मक माहौल नहीं था, और न ही सरकारों की विषय सूची में पानी और पर्यावरण की फ़िक्र थी, उस माहौल में एक व्यक्तित्व उभरा जिसने पूरे देश में न सिर्फ पानी की अलख जगाई बल्कि समाज के सामने सूखी जमीन पर पानी की रजत बूँदों का सैलाब बनाकर भी दिखाया। वे देश में पानी के पहले पहरेदार रहे, जिन्होंने हमे पानी का मोल समझाया।

Anupam Mishra
शब्दों की चौकीदारी संभव नहीं-अनुपम मिश्र
Posted on 19 Dec, 2016 12:56 PM

अनुपम मिश्र पानी और पर्यावरण पर काम करने के लिए जाने जाते हैं लेकिन उनकी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक आज भी खरे हैं तालाब के साथ उन्होंने एक ऐसा प्रयोग किया जिसका दूरगामी दृष्टि दिखती है। उन्होंने अपनी किताब पर किसी तरह का कापीराईट नहीं रखा। इस किताब की अब तक एक लाख से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। मीडिया वर्तमान स्वरूप और कापीराईट के सवाल पर हमने विस्तृत बात की। यहां प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-

कापीराईट को लेकर आपका नजरिया यह क्यों है कि हमें अपने ही लिखे पर अपना दावा (कापीराईट) नहीं करना चाहिए?
कापीराईट क्या है इसके बारे में मैं बहुत जानता नहीं हूं। लेकिन मेरे मन में जो सवाल आये और उन सवालों के जवाब में मैंने जो जवाब तलाशे उसमें मैंने पाया कि आपका लिखा सिर्फ आपका नहीं है।

अनुपम मिश्र
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