भावनगर जिला

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शिप डंपिंग पॉलिसी पर यूरोप का दोहरा रवैया
Posted on 01 Jun, 2012 10:07 AM कबाड़ा और बेकार जहाजों को एशिया के भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश के बंदरगाहों पर तोड़ा जाता है। जिससे न केवल पर्यावरणीय नुकसान होता है बल्कि वहां पर काम करने वाले मजदूरों के स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है। जहाजों को तोड़ने पर काफी जहरीला कचरा भी निकलता है। यूरोपीय देश अपने देश में तो कबाड़ा जहाजों को तोड़ने से रोकने के लिए तरह-तरह के नियम-कायदे बना रखे हैं। पर भारत जैसे देशों में अपने कबा
जहाजों की कब्र से फैलता जहर
Posted on 06 Oct, 2010 11:33 AM कुशीनगर जिले कप्तानगंज ब्लाक के बसहिया गांव निवासी 24 वर्षीय गौतम साहनी की पांच मई को गुजरात के सोसिय बंदरगाह पर एक पुराने जहाज की कटाई के दौरान फायर गैस की चपेट में आकर मौत हो गई। गौतम शिप विजय बंसल ब्रेकिंग कंपनी-158 में काम करते थे। उनका शव आठ मई को गांव आया। आज गौतम साहनी के परिजन आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई सहारा देने वाला नहीं है। जिस कंपनी के लिए वह काम करते थे, उसने भी गौतम के परिजनों की कोई मदद नहीं की। गुजरात के भावनगर के अलंग समुद्र तट को आप चाहें तो मृतप्राय जलपोतों की सबसे बड़ी कब्रगाह कह सकते हैं। पुराने जलपोतो को तोड़ने का यह दुनिया का सबसे बड़ा यार्ड है। आर्थिक प्रदर्शन के लिहाज से नई सदी का पहला दशक, इस कारोबार के लिए बेहतरीन साबित हुआ। विश्व व्यापार में आई मंदी ने जहाज मालिकों के लिए यह अनिवार्य बना दिया कि वे अपने पुराने पड़ चुके निष्प्रयोज्य जलपोतों को नष्ट कर दें। भारत में इस कारोबार के तेजी से बढ़ने का स्याह पहलू यह है कि विकसित देशों के सख्त पर्यावरणीय कानून एवं श्रम कानूनों से बचने के लिए भारतीय समुद्र तट एवं यहां के सस्ते मानव श्रम का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत के मजदूरों एवं पर्यावरण को जोखिम में डालने की इस कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक मुकदमा चल रहा है। जहरीला प्रदूषण फैलाने के आरोप में अमेरिकी जलपोत प्लेटिनम-2 पर यह मुकदमा दर्ज किया गया था। इस साल फरवरी में यह जलपोत, भारतीय जलसीमा में गैरकानूनी तरीके से घुस आया था। लेकिन भारत सरकार के दांव-पेंच के चलते इस मुकदमें की सुनवाई में तेजी नहीं आ पा रही है। भारत सरकार के रवैए को देखते हुए इस बात की कम ही गुंजाइश है कि जलपोतों के जहरीले प्रदूषण से मजदूरों के बचाव एवं पर्यावरण की रक्षा की दिशा में कोई मुकम्मल कार्रवाई हो पाएगी।

अपने गांव को बचाने के लिए हजारों गिरफ्तार
Posted on 25 Feb, 2010 11:11 AM

ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह लोगों का अपने खून से हस्ताक्षरित अनुरोध पत्र


अहमदाबाद 25 फरवरी 2010। गुजरात के भावनगर जिले के महुआ तहसील में प्रस्तावित निरमा सीमेन्ट फैक्टरी पन्द्रह गाँव के चालीस हजार लोगों को उजाड़ने पर आमादा है। जबरदस्ती दस हजार एकड़ जमीन किसानों से छीनकर निरमा कम्पनी को दी जा रही है। गुजरात लोक समिति के अध्यक्ष चुन्नी भाई वैद ने इसके विरोध में प्रभावित गाँवों के ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह लोगों का साबरमती के गाँधी आश्रम से गुजरात की राजधानी गाँधीनगर तक मार्च रखा था। ये लोग अपने खून से हस्ताक्षर युक्त और अँगुठे लगे ज्ञापन गुजरात सरकार को सौंपने वाले थे।
भारत के सिर, एक बार फिर जहरभरा जहाज
Posted on 31 Oct, 2009 10:37 AM

जेसिका! ना ना नहीं, दिल्ली की मशहूर मॉडल जेसिका नहीं, यह एमएस जेसिका गुजरात के अलंग समुद्र तट पर खड़े एक जहाज का नाम है जिसने 4 अगस्त 2009 की सुबह छह मजदूरों की जान ले ली लेकिन दिल्ली के किसी अखबार में इस जेसिका के कारनामे की खबर नहीं छपी.

पानी- पर्यावरण का नाश करता शिपब्रेकिंग उद्योग
अहिंसक सत्याग्रहियों पर हमला
Posted on 23 Feb, 2010 11:24 PM

भावनगर 20 फरवरी 2010। गुजरात के भावनगर जिले के महुआ तहसील में हरे-भरे उपजाऊ कृषि जमीन पर प्रस्तावित निरमा सिमेंट फैक्टरी के खिलाफ गांधीवादी स्थानीय विधायक कनू भाई कलसारिया के अगुवाई में मौन जुलूस मार्च कर रही जनता पर निरमा कंपनी के दलालों और पुलिस द्वारा कातिलाना हमला किया गया जिसमें वे और उनकी पत्नी दोनों घायल हैं। हमले में सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। और दर्जनों लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिय

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