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कुड़हल भदईं बोओ यार
Posted on 23 Mar, 2010 09:54 AM
कुड़हल भदईं बोओ यार।
तब चिउरा कीहोय बहार।।


शब्दार्थ- कुड़हल- वह खेत जो मेठ में धान बोने के लिए तैयार किया जाता है अथवा धरती खोद कर।

भावार्थ- यदि कुड़हल जमीन में भदई धान की बोवाई की जाये तो पैदावार अधिक होती है अर्थात् चिउरा खाने को खूब मिलता है।

कदम-कदम पर बाजरा
Posted on 23 Mar, 2010 09:52 AM
कदम-कदम पर बाजरा, मेढक कुदौनी ज्वार।
ऐसे बौवै जो कोई, घर भर भरै बखार।।


शब्दार्थ- बखार-अनाज भंडारण का स्थान।

भावार्थ- एक-एक कदम पर बाजरा और मेढक की कुदान बर की दूरी पर ज्वार बोने वाले किसान के घर में अन्न से बखार भर जायेंगी।

कोठिला बैठी बोली जई
Posted on 23 Mar, 2010 09:49 AM
कोठिला बैठी बोली जई, आधे अगहन काहे न बई।
जो कहुँ बोते बिगहा चार, तो मैं डरतिऊँ कोठिला फार।।


शब्दार्थ- जई-जौ की जाति का एक अनाज जो प्रायः घोड़ों को दिया जाता है।
कातिक बोवै अगहन भरै
Posted on 23 Mar, 2010 09:48 AM
कातिक बोवै अगहन भरै।
ताको हाकिम फिर का करै।


भावार्थ- जो किसान कार्तिक में रबी की फसल ठीक समय पर बोता है और अगहन में उसकी सिंचाई करता है तो अफसर उसका क्या कर सकता है? उसकी मालगुजारी का भुगतान हो जाएगा क्योंकि पैदावार अच्छी होगी।

ऊगी हरनी फूले कास
Posted on 23 Mar, 2010 09:46 AM
ऊगी हरनी फूले कास।
अब का बोये निगोड़े मास।।


शब्दार्थ- निगोड़े-आलसी, निठल्ला। मास-उड़द। हरनी-अगस्त नामक तारा।

भावार्थ- अब आसमान में अगस्त तारे का उदय हो गया है और ‘कास’ भी फूल गये हैं तो ऐ निठल्ला किसान! अब उड़द बोने से क्या लाभ?

ऊख सरवती दिवला धान
Posted on 23 Mar, 2010 09:23 AM
ऊख सरवती दिवला धान।
इन्हें छाड़ि जनि बोओ आन।।


शब्दार्थ- सरवती-सरौती नामक ईख।

भावार्थ- घाघ का कहना है कि ईख में सरौती ईख और धान में देहुला नामक धान बोना चाहिए क्योंकि इनमें पैदावार अधिक होती है। अतः इन्हीं की बुआई करनी चाहिए अन्य की नहीं।

अगहन जो कोउ बोवै जौवा
Posted on 23 Mar, 2010 09:21 AM
अगहन जो कोउ बोवै जौवा।
होई तो होई नहीं खावै कौवा।।


भावार्थ- अगहन मास में जौ की बोवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस मास में बोने से फसल ठीक नहीं होती है और उसे कौवे ही खा जाते हैं।

अगहन बवा
Posted on 23 Mar, 2010 09:19 AM
अगहन बवा।
कहूँ मन कहूँ सवा।।


भावार्थ- यदि अगहन मास में गेहूँ, जौ की बोवाई होती है तो कहीं बीघा पीछे मन भर और कहीं सवा मन की उपज होती है अर्थात् अगहन में बोवाई से पैदावार कम हो जाती है।

अद्रा में जो बोवै साठी
Posted on 23 Mar, 2010 09:16 AM
अद्रा में जो बोवै साठी।
दुःखै मार निकारै लाठी।।


भावार्थ- जो किसान आर्द्र मे साठी धान बो दे तो वह दरिद्रता को घर से डण्डे मार कर नकाल सकता है।

आधे हथिया मूरि-मुराई
Posted on 23 Mar, 2010 09:14 AM
आधे हथिया मूरि-मुराई।
आधे हथिया सरसों राई।।


भावार्थ- हस्त नक्षत्र के पूर्वार्द्ध में मूली और उत्तरार्द्ध में सरसों, राई आदि के बीज की बोवाई करनी चाहिए।

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