Posted on 10 Jun, 2011 10:52 AMबादल निहारते से ही आँखों में उमड़ पड़ती है: बाबा की कविता-‘बादल को घिरते देखा है’ और महाप्राण की ‘बादल राग’ हुलस कर हम से बोल पड़ता है कालिदास का ‘मेघदूत’
बादल पानी का पुनीत कृतित्व है इसीलिए उसे देखने में हमारी प्रिय रचनाएँ होती हैं हमारे साथ
आसमान में बादल आ रहे हैं- जा रहे हैं जैसे मन में भाव
Posted on 08 Jun, 2011 09:35 AMठीक दोपहर बारह बजे कुएँ में झाँकता है तमतमाया सूरज और कुएँ में बैठा अँधेरा भागता है रख कर सिर पर पाँव दोपहर बारह बजे कुएँ में सिर्फ़ सूरज की आवाज़ गूँज रही है और पानी (उजले मन से) पी रहा है धूप
परम तेजस्वी संज्ञा की सुन्दर क्रिया से कुएँ में हौले-हौले हिल रही है पानी की कायनात
Posted on 04 Jun, 2011 08:54 AMपानी को दुख हैः कि दिनोंदिन घट रही है उसकी शीतलता कि कीचड़-कचरा से फूल रही है उसकी साँस कि नदियों में भी बहती है पानी से अधिक दुर्गंध
पृथ्वी की नाडि़यों में कितनी पुलक से दौड़ता था वह। लेकिन अब तो मशीनें खीचें ले रही हैं उसे दिनरात!
पानी को दुख हैः कि उसका पानीपन सूख रहा है कि उसकी तरलता पर नहीं रही अब उसकी पकड़