Posted on 18 Jun, 2015 05:35 PMआदिकाल से मानव और प्रकृति का अटूट सम्बन्ध रहा है। सभ्यता के विकास में प्रकृति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। विकास के प्रारम्भिक चरण में कोई भी जीवधारी अथवा मनुष्य सर्वप्रथम प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए उसके अनुकूल होने का प्रयास करता है, इसके पश्चात वह धीरे-धीरे प्रकृति में परिवर्तन करने का प्रयास करता है। अतः अनुकूलन की प्रक्रिया धरातल पर जीवन को बनाए रखने वाली एक कुंजी है, जो
Posted on 16 Jun, 2015 03:08 PMई-वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक कूड़-कबाड़ से आज पूरी दुनिया में एक बहुत बड़ी समस्या पैदा हो गई है। साइबर क्रान्ति की देन ई-वेस्ट पर्यावरण के लिए किसी गन्दे पानी, रसायन से ज्यादा खतरनाक है। विकसित देश अपने ई-जंक को विकासशील एवं गरीब देशों में खपा रहे हैं इससे वहाँ के वातावरण के लिए खतरा पैदा हो गया है। साइबर क्रान्ति की इस दौड़ में हम भी काफी तेजी से दौड़ रहे हैं, लेकिन अब जरूरत है इस खतरे की तरफ ध्यान
Posted on 11 Jun, 2015 09:28 PMजल संकट व्यापारिक कारणों से उत्पन्न एक पारिस्थितिकीय संकट है जिसका कोई बाजारनिष्ठ समाधान नहीं है। बाजारनिष्ठ समाधान धरती को बर्बाद करते हैं और असमानता को बढ़ावा देते हैं। जल संकट को खत्म करने के लिए पारिस्थितिकीय लोकतन्त्र को नई जिन्दगी का आवश्यकता है।
जल के दो आयाम बेहद विवादित हैं- जल की सार्वजनिकता का आयाम और जल के वस्तु होने का आयाम।