ट्यूबवेलों के लिए मुफ्त बिजली; एक चेतावनी

किसानों को मिल रही सब्सिडी से भूजल की हो रही है अत्यधिक निकासीराज्य सरकारों द्वारा लोकप्रियता हासिल करने के वास्ते किसानों को मुफ्त या सस्ती दरों पर बिजली उपलब्ध कराना खतरनाक होता जा रहा है। भूजल के उपयोग के सम्बन्ध में पिछले दशक से सम्बन्धित जारी किए गए आँकड़ों से पता चलता है कि पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश जैसे राज्यों में जहाँ ट्यूबवेल चलाने के या तो मुफ्त अथवा अत्यधिक सस्ती दरों पर बिजली उपलब्ध हैं, बहुत ज्यादा मात्रा में भूजल का दोहन किया गया।

अर्थशास्त्रियों और पारिस्थतिकीविदों का तर्क है कि मुफ्त बिजली या अत्यधिक सस्ती बिजली उपलब्ध होने पर किसानों को अपने ट्यूबवेल अनावश्यक रूप से चलाने तथा भूजल की अत्यधिक निकासी करने को प्रोत्साहन मिलता है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड द्वारा तैयार रिर्पोट से भी, जिसे अभी प्रकाशित किया जाना है, इसकी पुष्टि हुई है। जिन राज्यों में बिजली की कम दरें हैं वहाँ भूजल की ज्यादा निकासी हो रही है। भूजल सर्वेक्षण दर्शाता है कि वर्ष 1995 और 2004 के मध्य पंजाब (75 प्रतिशत), हरियाणा (49 प्रतिशत), तमिलनाडु (37 प्रतिशत), आन्ध्र प्रेदश (18 प्रतिशत) आदि राज्यों में विभिन्न प्रखण्डों में बड़ी मात्रा में भूजल की निकासी की गई जिसका अर्थ है कि भराई की जरूरतों से कहीं अधिक भूजल का दोहन हुआ है। सूखा वाले क्षेत्र जैसे कि राजस्थान (59 प्रतिशत) और गुजरात (14 प्रतिशत) आदि में भी इसी तरह की स्थिति रही जबकि दिल्ली के शहरी इलाकों में रहने वाले लोग, जो कुल आबादी का 78 प्रतिशत हैं, जल के लिए भूगर्भ के गहरे भीतर तक खुदाई करने लगे हैं। भण्डार के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि यहाँ पर भूजल का स्तर बहुत नीचे है।

ट्यूबवेलों के लिए मुफ्त बिजली; एक चेतावनीपंजाब में जहाँ दो-तिहाई प्रखण्डों में भूजल का अत्यधिक दोहन होता है, किसानों को मुफ्त बिजली उपलब्ध कराई जाती है। पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी जहाँ किसानों को सस्ती दरों पर बिजली दी जाती है, आधे प्रखण्डों में अत्यधिक दोहन हो रहा है। इनमें 10 प्रतिशत की स्थिति बेहद खराब है (इसका अर्थ है कि करीब 90 प्रतिशत आवश्यकता की पूर्ति भूजल से होती है)। 1995 में इन राज्यों में अत्यधिक भूजल निकासी वाले प्रखण्डों की संख्या 10 प्रतिशत से कम थी।

पंजाब में विश्व बैंक द्वारा वर्ष 2002 में किए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि चूँकि राज्य के मध्य जिलों में खरीफ की मुख्य फसल चावल है और इसकी रोपाई के लिए पानी की बहुत अधिक आवश्यकता पड़ती है इसलिए यहाँ भूजल की अत्यधिक निकासी होती है। चूँकि पानी की सतह प्रतिवर्ष 30 से.मी. की दर से नीचे चली जा रही है, 138 प्रखण्डों में से 84 में अब अत्यधिक दोहन हो रहा है। हालाँकि इसके पक्के सबूत नहीं है फिर भी रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि 1997 और अक्तूबर 2002 के मध्य ट्यूबवेलों को मुफ्त बिजली दिए जाने की नीति ने इस समस्या को और गम्भीर बना दिया है।

हाल ही में मंजूर की गई राष्ट्रीय पर्यावरण नीति में भी भूजल की अत्यधिक निकासी को रोकने के वास्ते बिजली और डीजल सब्सिडी को तर्कसंगत बनाए जाने की आवश्यकता परिलक्षित होती है। इस नीति में कहा गया है कि भूजल के घटते स्तर का मूल कारण बिजली और डीजल की मूल्य नीति से आरम्भ होती है। बिजली के मामले में जहाँ पर व्यक्तिगत मीटर व्यवहार में नहीं है, बिजली कनेक्शन का शुल्क एक समान दर पर होती है जो कि कुल मिलाकर लगभग शून्य के बराबर ही रहती है। डीजल पर दी जा रही सब्सिडी भी सामान्य स्तर से कहीं ज्यादा कुएँ से पानी निकालने को प्रोत्साहित करती है। पानी के अधिक इस्तेमाल से पैदा होने वाली फसलों के समर्थन मूल्यों के कारण भी लोग कम पानी से उगाई जा सकने वाली फसलों की अपेक्षा इन फसलों की बुआई ज्यादा करते हैं।

देश के दक्षिणी भागों में भी जहाँ पर कुछ हद तक अच्छी बारिश होती है तथा बारहमासी नदियाँ भी हैं, भूजल संरक्षण की स्थिति बड़ी खराब है। तमिलनाडु में जहाँ दो प्रमुख द्रविड़ पार्टियों के बीच ‘लोकप्रियता’ ही सत्तासीन होने का प्रमुख कारण है, करीब 10 प्रतिशत प्रखण्डों में स्थिति अत्यन्त खराब है तथा 15 प्रतिशत प्रखण्डों में अर्द्ध-संकट जैसी स्थिति है (मानसून पूर्व और मानसून बाद के मौसम में भूजल का स्तर घटने के कारण)।

आन्ध्र प्रदेश भी इसी के पदचिन्हों पर चल रहा है जहाँ शत-प्रतिशत मण्डल (प्रखण्ड) संकटपूर्ण स्थिति में है और 14 प्रतिशत अर्द्ध-संकट की स्थिति में पहुँच चुके हैं। मिलिनाडु में किसानों को मुफ्त बिजली प्रदान की जाती है जबकि आन्ध्र प्रदेश ने मुफ्त बिजली का फैसला वापस ले लिया है। अब जबकि किसानों से बिजली का शुल्क लिया जाता है, लेकिन बकाया राशि वसूलने और मुफ्त बिजली की धारणा को बदलने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। सूखे वाले क्षेत्र राजस्थान में भी भूजल का अत्यधिक (59 प्रतिशत प्रखण्डों में) दोहन हो रहा है।

यहाँ 21 प्रखण्डों की स्थिति संकटग्रस्त है। पड़ोसी राज्य गुजरात में भी भूजल की अत्यधिक निकासी (14 प्रतिशत प्रखण्डों में) का रुख है। शहरी क्षेत्रों में दिल्ली में सुरक्षित भूजल की अत्यधिक गहराई से निकासी की जाती है। कुल मिलाकर देश में 15 प्रतिशत प्रखण्डों में भूजल की अत्यधिक निकासी हो रही है जबकि 15 प्रतिशत की स्थिति संकटग्रस्त या अर्द्ध-संकट वाली है। ये आँकड़े केन्द्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट में दिए गए हैं।

मुख्यमन्त्रीगण भी सस्ती बिजली के मुद्दे को हल करने से सामान्यतः दूर भागते हैं। 1996 में उन्होंने यह फैसला किया था कि बिजली आपूर्ति की कम से कम आधी कीमत वसूली जाएगी और कृषि क्षेत्र को कम से कम 50 पैसे यूनिट का भुगतान करना होगा तथा बाद में इसे और बढ़ाया जाएगा। लेकिन योजना आयोग द्वारा बार-बार स्मरण कराए जाने के बावजूद कोई भी राजनीतिज्ञ इस मुद्दे को छूने का इच्छुक प्रतीत नहीं होता। ऐसे में न केवल राज्य की वित्तीय स्थिति चरमराती है बल्कि पारिस्थितिकीय सन्तुलन भी बिगड़ता है।

(एजेंसियों से)

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