भारत

Term Path Alias

/regions/india

प्राकृतिक आपदायें - एक सिंहावलोकन
प्राकृतिक प्रकोपों के विषय में सामान्य विचारों के भौतिक परिवर्तन की आवश्यकता है। यद्यपि बाढ़ और भूकम्प जैसी प्राकृतिक घटनाओं से इनका आरम्भ होता है फिर अधिकतर प्रकोप मानवकृत हैं । कुछ प्रकोप जैसे भूस्खलन, सूखा, वनों में आग आदि अपेक्षाकृत पर्यावरण और साधनों के कुप्रबन्ध के कारण अधिक होते हैं। अन्य प्रकोपों, भूकम्प, ज्वालामुखी, बादल फटना मूर्खता पूर्ण आचरण से और भी भीषण हो जाते हैं। इन सबमें बाढ़ और सूखा आपदायें मुख्य हैं । बाढ़ या सूखा आने से हर क्षेत्र में प्रभाव पड़ता है। इससे मानव जीवन, पशुधन, कृषि, जल संसाधन तथा अर्थ-व्यवस्था पर सीधे प्रभाव पड़ता है। Posted on 15 Jul, 2023 03:15 PM

भागीरथी और ब्रहमपुत्र नदियों में न जाने कहां से इतना पानी आया कि देखते ही देखते उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम, का बड़ा भू -भाग जल मग्न हो गया । ऐसा अथाह जल न देखा ना सुना। कालाहांडी का जल कहां चला गया ?

प्राकृतिक आपदायें - एक सिंहावलोकन,फोटो क्रेडिट:- IWPFlicker
संस्थाएं, आर्द्राभूमियां और अन्य खुले जल मत्स्यपालन प्रबंधन में समुदाय की भागीदारी
हमारे देश में वर्तमान मत्स्य उत्पादन लगभग 8.0 मिलियन टन (एमटी) आंकलित किया गया है, जबकि इसकी तुलना में वर्ष 2015 तक इसकी अनुमानित मांग 12 मिलियन टन (एमटी) से भी अधिक होने की संभावना है। Posted on 14 Jul, 2023 03:02 PM

भारत में अंतर्देशीय खुले जल के विभिन्न स्वरूप हैं। इनमें शामिल हैं ( नदियां 2900 कि.मी.), जलाशय (31.5 लाख है.), जलप्लावन आर्द्रभूमि ( 3.54 लाख है.) कच्छ - वनस्पति ( 3.56 लाख है), नदीमुख ( 3.0 लाख है. ), नदीमुख आर्द्रभूमि (भेरी–39600 है.

मत्स्यपालन प्रबंधन में समुदाय की भागीदारी,फोटो क्रेडिट: - WIKIPEDIA
सरदार सरोवर जलाशय में गाद का प्रबंधन
नदी के प्रवाह में अवरोध से तथा जलाशय में जल के भराव से नदी के गाद प्रवाह में व्यवधान पड़ता है। बांध निर्माण द्वारा अवरूद्ध हुए प्रवाह से नदी में बह रही गाद जलाशय में जमा होने लगती है। गाद जमा होने से  बांध की भण्डारण क्षमता घट जाती है, जिसके कारण बांध की आयु कम हो जाती है। Posted on 12 Jul, 2023 03:39 PM

सारांश

नर्मदा नदी पर निर्माणाधीन सरदार सरोवर बांध भारत के बड़े बांधों में से एक है। इस बांध  का निर्माण, नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण वर्ष 1979 के उस निर्णय के उपरान्त शुरू हुआ जिसके द्वारा नर्मदा जल का बटवारा  किया गया है। वर्ष 1980 में परियोजना की रूपांकन सम्बन्धी घटकों को अंतिम रूप दिया गया। अब उसके बाद की अवधि के निस्सारण / गाद (सिल्ट ) के आंकड़े भी उपलब्ध है

सरदार सरोवर जलाशय,फोटो क्रेडिट-विकिपीडिया
लोक भारती, प्रशासन एवं समाज की संयुक्त पहल निरंतर गतिमान मंदाकिनी नदी पुनर्जीवन अभियान
यदि 5 जून को ही पर्यावरण दिवस मनाने का बहुत मन अथवा बाध्यता ही हो तो इस दिन पौधरोपण की बजाय अन्य कार्य जैसे इस विषय पर जागरूकता कार्यक्रम, हरियाली माह में वृक्षारोपण के स्थान चयन एवं अन्य तैयारी आदि करें। Posted on 12 Jul, 2023 01:29 PM

सरकारी तंत्र  प्रतिवर्ष वृक्षारोपण अभियान आयोजित करता है। इस कार्यक्रम के पीछे भाव अच्छा है परंतु धरती पर हरियाली फैलने से अधिक ये आंकड़ों का खेल बनकर रह गया है। हमें अपने लिए स्वच्छ वायु चाहिए, हमारे ही द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण का निराकरण चाहिए, वातावरण के बढ़ रहे तापमान पर नियंत्रण चाहिए, वर्षा जल का भू संचयन चाहिए, वायुमंडल की आद्रता में वृद्धि चाहिए, वर्षा के लिए अनुकूल वातावरण चाहिए, जैव व

लोक भारती, प्रशासन एवं समाज की संयुक्त पहल निरंतर गतिमान मंदाकिनी नदी पुनर्जीवन अभियान,फोटो क्रेडिट:- लोक सम्मान
वैकल्पिक न हो, अमृतरूपी वर्षाजल शेष रहने के लिए पात्र एवं पात्रता की आवश्यकता
इस वर्ष बिपरजोय तूफान के कारण देश में मानसून के आगमन में विलंब भले ही हुआ, लेकिन अच्छी बात यह है कि धीरे-धीरे मानसूनी बारिश ने देश के सभी हिस्सों को सराबोर करना आरंभ कर दिया है। हालांकि बारिश के कारण असम, गुजरात एवं राजस्थान समेत देश के कई क्षेत्रों में जलभराव और बाढ़ की स्थिति दिखने लगी है, लेकिन इसका दोष हम प्रकृति पर नहीं मढ़ सकते। बल्कि इस दशा के लिए हमें अपनी उन गलतियों को सुधारना होगा जिसके कारण आसमान से बरसने वाले अमृत को हम सहेज नहीं पाते। Posted on 12 Jul, 2023 01:09 PM

इस वर्ष बिपरजोय तूफान के कारण देश में मानसून के आगमन में विलंब भले ही हुआ, लेकिन अच्छी बात यह है कि धीरे-धीरे मानसूनी बारिश ने देश के सभी हिस्सों को सराबोर करना आरंभ कर दिया है। हालांकि बारिश के कारण असम, गुजरात एवं राजस्थान समेत देश के कई क्षेत्रों में जलभराव और बाढ़ की स्थिति दिखने लगी है, लेकिन इसका दोष हम प्रकृति पर नहीं मढ़ सकते। बल्कि इस दशा के लिए हमें अपनी उन गलतियों को सुधारना होगा जिस

वर्षा जल संरक्षण, फोटो क्रेडिट:- IWP Flicker
किसान, उपभोक्ता एवं पर्यावरण हितैषी प्राकृतिक कृषि
पुरातन काल में फसल के सूखे पत्ते भूमि पर गिरकर आच्छादन तैयार करते थे और फसल कटाई के बाद गांव का सभी देशी गोधन खेत में दिन भर चरता था। तब उनका गोबर - गोमूत्र भूमि पर अपने आप गिरता रहता था। इससे भूमि निरंतर जीवाणु समृद्ध होती थी। Posted on 12 Jul, 2023 12:08 PM

औद्योगिक क्रांति से पहले रासायनिक खेती और उससे भी अधिक खतरनाक जैविक खेती का उद्गम ही नहीं हुआ था। परम्परागत गोबर खाद पर आधारित खेती थी । प्लास्टिक नहीं था, औद्योगीकरण नहीं था। रसायन निर्माण के कारखाने नहीं थे। वैश्विक तापमान बढ़ने का कोई संकट भी नहीं था। नदियों में कोई भी प्रदूषण नहीं था, उनका पानी पवित्र था। बचपन में हम गांव में खेत में काम करते समय पड़ोस में बहती नदी का पानी पीते थे, लेकिन हम

जैविक खेती,फोटो क्रेडिट- लोक सम्मान
मानसून सत्र की शुरुआत में आफत की बारिश, जलवायु परिवर्तन के कारण
मौसम विज्ञानी और जलवायु वैज्ञानिक दोनों ही, एक बार फिर, चरम मौसम की घटनाओं में भारी वृद्धि के लिए ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते स्तर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। स्थिति को समझाते हुए स्काइमेट वेदर में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन विभाग के उपाध्यक्ष, महेश पलावत ने कहा, “अत्यधिक भारी बारिश का चल रहा दौर तीन मौसम प्रणालियों के एक साथ होने का नतीजा है। Posted on 11 Jul, 2023 02:09 PM

बारिश की आमद गर्मी से राहत देने के लिए जानी जाती थी। मगर अब, यह राहत बन रही है आफत। भारत में चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि का पैमाना हर गुजरते साल के साथ नई ऊंचाई छू रहा है। साल 2023 की शुरुआत अगर सर्दी की जगह अधिक गर्मी के साथ हुई, तो फरवरी में तापमान ने 123 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया। आगे पूर्वी और मध्य भारत में अप्रैल और जून में उमस भरी गर्मी की संभावना जलवायु परिवर्तन के कारण 30 गुना अधिक

मानसून सत्र की शुरुआत में आफत की बारिश, जलवायु परिवर्तन के कारण,फोटो क्रेडिट:-IWP Flicker
दरवाजे तक पहुंचा जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब सिर्फ बात करने से नहीं बनेगी बात
कुछ माह पहले तक जोशीमठ के धंसते जाने की खबर देशव्यापी चर्चा का विषय थी, अब न्यूयॉर्क के निरंतर धंसते जाने की खबर विश्वव्यापी चर्चा का विषय है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि न्यूयॉर्क शहर धीरे-धीरे डूब रहा है और इसकी गगनचुंबी इमारतें इसे नीचे ला रही हैं। Posted on 10 Jul, 2023 12:56 PM

कुछ माह पहले तक जोशीमठ के धंसते जाने की खबर देशव्यापी चर्चा का विषय थी, अब न्यूयॉर्क के निरंतर धंसते जाने की खबर विश्वव्यापी चर्चा का विषय है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि न्यूयॉर्क शहर धीरे-धीरे डूब रहा है और इसकी गगनचुंबी इमारतें इसे नीचे ला रही हैं। न्यूयॉर्क की ऊंची और लंबी इमारतें आसपास के पानी स्त्रोतों के पास वसती जा रही हैं। इस प्रक्रिया को अवतलन कहा जाता है। न्यूयॉर्क में स्थित 10 ला

दरवाजे तक पहुंचा जलवायु परिवर्तन का प्रभाव,फोटो क्रेडिट:-IWP Flicker
मृदा उर्वरता संबंधी बाधाएं एवं उनका प्रबंधन
भारतीय कृषि में हरित क्रांति का प्रभाव काफी हद तक सिंचित क्षेत्रों में मुख्यतः चावल और गेहूं की फसल तक सीमित रहा। हमारे देश में प्रति इकाई क्षेत्रफल उत्पादकता, अन्य देशों की अपेक्षा काफी कम है। इसके अतिरिक्त राज्यों में और राज्यों के विभिन्न जिलों में विभिन्न फसलों की उत्पादकता में काफी भिन्नता पाई गई है। Posted on 08 Jul, 2023 03:07 PM

परिचय

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां संसार के भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 2-4 प्रतिशत और जल संसाधनो का लगभग 4 प्रतिशत भाग उपलब्ध है। देश में भौगोलिक मानव आबादी का 17 प्रतिशत तथा पशु आबादी का 15 प्रतिशत भाग उपलब्ध है। यहा की  50 प्रतिशत से भी  अधिक जनसंख्या खेती पर ही निर्भर है। देश में कृषि व्यवसाय उद्योगों के लिए कच्चे माल का एक प्रमुख स्रोत है। वर्ष 2011-12 क

मृदा उर्वरता संबंधी बाधाएं एवं उनका प्रबंधन,फोटो क्रेडिट:- IWP Flicker
दक्षिण भारत के अर्द्ध शुष्क क्षेत्र में पारम्परिक तालाबों पर जल ग्रहण विकास कार्यक्रम का प्रभाव: एक समीक्षा
भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी  75 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गांवों में रहती है। इन लोगों की जरी जावश्यकताओं को पूरा करने के लिये जल  संसाधनों का सही तरीके से पूरा विकास किया जाना चाहिये जन संसाधनों के सही तरीके से पूरा विकास किया जाना चाहिए। Posted on 07 Jul, 2023 01:57 PM

सारांश 

भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी  75 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गांवों में रहती है। इन लोगों की जरी जावश्यकताओं को पूरा करने के लिये जल  संसाधनों का सही तरीके से पूरा विकास किया जाना चाहिये जन संसाधनों के सही तरीके से पूरा विकास किया जाना चाहिए। जल संसाधनों के विकास में उस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, मौसम तंत्र, मृदा, वनस्पति व अन्यः जरूरतों को ध्यान में र

दक्षिण भारत के अर्द्ध शुष्क क्षेत्र में पारम्परिक तालाबों पर जल ग्रहण विकास कार्यक्रम का प्रभाव,फोटो क्रेडिट: विकिपीडिया
×