संस्थाएं, आर्द्राभूमियां और अन्य खुले जल मत्स्यपालन प्रबंधन में समुदाय की भागीदारी

मत्स्यपालन प्रबंधन में समुदाय की भागीदारी,फोटो क्रेडिट: - WIKIPEDIA
मत्स्यपालन प्रबंधन में समुदाय की भागीदारी,फोटो क्रेडिट: - WIKIPEDIA

भारत में अंतर्देशीय खुले जल के विभिन्न स्वरूप हैं। इनमें शामिल हैं ( नदियां 2900 कि.मी.), जलाशय (31.5 लाख है.), जलप्लावन आर्द्रभूमि ( 3.54 लाख है.) कच्छ - वनस्पति ( 3.56 लाख है), नदीमुख ( 3.0 लाख है. ), नदीमुख आर्द्रभूमि (भेरी–39600 है. ), पश्चजल झीलें (1.91 लाख है.) तथा उच्च भूमि झीलें (7.20 लाख है.) ये सभी एक साथ मिलकर भारत में महत्वपूर्ण मत्स्यपालन संसाधनों का निर्माण करते हैं। विभिन्न अध्ययनों ने यह दर्शाया है कि पिछले कुछ दशकों में इन संसाधनों से मत्स्य उत्पादन में विभिन्न कारणों से कमी आई है, जैसे बढ़ती हुई जनसंख्या, अविवेकपूर्ण मछली पकड़ने की पद्धतियां, पारिस्थिक और मानव-निर्मित आशोधन, पर्यावरण के क्षरण में निरंतर होती वृद्धि तथा न्यूनतम जल प्रवाह में कमी ( शर्मा और कटिहा, 2012 ) । अतः खुली जल पारिस्थिकी में मत्स्य पालन एक विषम परिस्थिति में है तथा मत्स्य भण्डार और जैव-विविधता में गिरावट की प्रक्रिया को रोकने के लिए इस पर तत्काल ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। हमारे देश में वर्तमान मत्स्य उत्पादन लगभग 8.0 मिलियन टन (एमटी) आंकलित किया गया है, जबकि इसकी तुलना में वर्ष 2015 तक इसकी अनुमानित मांग 12 मिलियन टन (एमटी) से भी अधिक होने की संभावना है। यह देखा गया है कि सामुद्रिक क्षेत्र से होने वाली पर्याप्त वृद्धि के भी निकट भविष्य में कम होने की संभावना है। यही बात नदियों तथा नदीमुखों के मामले में भी लागू होती है। ऐसी स्थिति में, अंतर्देशीय जल संसाधनों में दो प्रमुख  गौण संसाधनों अर्थात् जलाशयों और आर्द्रभूमियों को एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करना होगा क्योंकि इन दोनों ही संसाधनों का, उनकी क्षमता के अनुसार दोहन किया जाना अभी शेष है।

भारत में जलाशय - मत्स्यपालन

जलाशय भारत में मत्स्य उत्पादन के एक महत्वपूर्ण स्रोत का निर्माण करते हैं। इसमें 3.15 मिलियन हैक्टेयर का अनुमानित क्षेत्र शामिल है जिसमें 56 विशाल (> 5000 है), 180 मध्यम ( 1000-5000 है.) और 19,134 छोटे (<1000 है.) क्षेत्र हैं जिनमें क्रमश: 1.14 मि. है., 0.527 मि. है. और 14 मि. है. का जल - क्षेत्र शामिल है। इसकी औसत उत्पादकता 250-300 किग्रा. है -1  वर्ष की तुलना में लगभग 30 किग्रा. है -1 वर्ष -1 ही है। जलाशय देश के कुल अंतर्देशीय मत्स्य उत्पादन से लगभग 8 प्रतिशत का योगदान करते हैं। इसके लिए केवल मत्स्य–अंडज भण्डारण लागत की ही आवश्यकता होती है तथा विकास संबंधी लाभ मछुआरों के विशाल समूह मध्य विभाजित किए जा सकते हैं और इस प्रकार प्रत्यक्ष लाभ मत्स्य समुदाय को प्राप्त होते हैं।

एनएफडीबी ने आंगुलिक भण्डारण तथा जलाशय मत्स्यपालन प्रबंधन पर जलाशय के मछुआरों को प्रशिक्षण प्रदान करके जलाशयों की उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए वर्ष 2006 से राज्य मत्स्यपालन विभाग के माध्यम से जलाशय मत्स्यपालन विकास योजना कार्यान्वित की है एनएफडीबी के कार्यक्रम का बुनियादी उद्देश्य 150 किग्रा./है. / वर्ष तक उत्पादकता में वृद्धि करना है। आज की तारीख तक एनएफडीबी ने आंगुलिक भण्डारण कार्यक्रम के अंतर्गत 22.37 लाख है. क्षेत्र का विकास किया है जिसमें 20 राज्यों के 2436 जलाशय शामिल हैं। सीआईएफआरआई, बरकपुर (आईसीएआर) द्वारा संचालित एक अध्ययन ने यह दर्शाया है कि एनएफडीबी योजना के अंतर्गत वित्त पोषित जलाशयों की उत्पादकता में छोटी श्रेणी में 50 कि.ग्रा./ है. / वर्ष की तुलना में 174 किग्रा./है./वर्ष, मध्यम श्रेणी में 12 कि.ग्रा./ है. / वर्ष की तुलना में 94 कि.ग्रा./ है. / वर्ष तथा विशाल श्रेणी में 11 कि.ग्रा./ है. / वर्ष की तुलना में 33 कि.ग्रा./ है. / वर्ष की वृद्धि हुई है । संसाधन  आकार और क्षमता की तुलना में, अभी भी जलाशय मत्स्य पालन से प्राप्त होने वाला विद्यमान उत्पादन विभिन्न मुद्दों के कारण अत्यंत ही कम बना हुआ है जैसे निष्कृष्ट और गैर-वैज्ञानिक प्रबंधन, भण्डारण के लिए गुणवत्तापूर्ण मत्स्य–अंडजों की अनुपलब्धता, मत्स्य उत्पत्ति, अवतारण और विपणन के लिए अपर्याप्त सुविधाएं,उत्पादन क्षमता के बारे में जागरूकता का अभाव, अविवेकपूर्ण तरीके से मछली मारना, मत्स्य पालन नियमों/अधिनियमों का खराब प्रवर्तन, निवेश का अभाव, उपयुक्त और असमान पट्टे की नीतियों का अभाव तथा संसाधन प्रयोक्ताओं के मध्य विवाद । इस पर विचार करते हुए, एनएफडीबी, जलाशय के प्रभावी विकास के लिए बारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 'एकीकृत जलाशय मत्स्यपालन विकास' योजना के क्रियान्वयन की प्रक्रिया अपना रहा है, जिसमें विकास संबंधी हस्तक्षेप के उप- अवयव शामिल हैं, जैसे अंडज भण्डारण, प्रशिक्षण, मत्स्य अंडज-उत्पत्तिशालाओं की स्थापना, मत्स्य पालन का सृजन, मत्स्य पालन क्षेत्र का नवीकरण, आंगुलिकों/टेबल फिश के लिए पिंजरें, मिट्टी के बर्तनों में आंगुलिकों को पालने के लिए इनपुट लागत, मत्स्य–आहार मिल, शिल्प और उपकरण, शीत भण्डारण, परिवहन सुविधाओं, आदि सहित आवश्यकता आधारित पैदावार उपरांत सुविधाएं (सम्मिश्रित संरचना) ।

भारत में स्वच्छ जल मत्स्य - पालन

जलाशयों की ही भांति स्वच्छ जल आर्द्रभूमियां भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण खुले अंतर्देशीय जल संसाधन हैं। ये निम्न-शयित क्षेत्र हैं। ये अधिकांशतः प्रमुख नदियों के जलप्लावन क्षेत्रों में स्थित हैं अर्थात् गंगा, ब्रह्मपुत्र, बरक, गोदावरी, कावेरी और कृष्णा नदी द्रोणियां (बर्मन, एटएल 2011 ) । अतः इन्हें जलप्लावन आर्द्रभूमियों के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है ( श्रीवास्तव और भट्टाचार्य, 2003: कार, 2007) | ये आर्द्रभूमियां उत्तर प्रदेश (1.5 लाख है.) बिहार (1.6 लाख ऑक्सबो झीलें और 1.0 लाख से अधिक बारहमासी तालाब ), पश्चिम बंगाल (0.42 लाख है.), असम (1.0 लाख है. ), मणिपुर (0.19 लाख है.) राज्यों में महत्वपूर्ण मत्स्यपालन संसाधनों का निर्माण करती है। इसके अलावा, अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में भी विभिन्न आकार, आकृति और मूल की अनेक जलप्लावन आर्दभूमियां हैं। ये देश के पूर्वी तथा उत्तरी-पूर्वी क्षेत्रों में अंतर्देशीय मत्स्य उत्पादन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये विभिन्न तरीकों से लाखों संसाधन प्रयोक्ताओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका भी प्रदान करती हैं जैसे खाद्य पादपों का संग्रहण, कृषि, जल परिवहन, सिंचाई, जीवन - निर्वाह और वाणिज्यिकप्रयोजनों के लिए मत्स्य पालन, तथा इसके साथ ही साथ ये मछलियों और अन्य जलचरों की जैव-विविधता का संरक्षण भी करती हैं। ये प्रमुख प्राकृतिक जल संसाधन देश के समग्र मत्स्य उत्पादन में अत्यधिक योगदान देते हैं। इन संसाधनों का औसत विद्यमान मत्स्य उत्पादन अत्यंत ही खराब है, जो 1500 कि.ग्रा./ है. / वर्ष की अनुमानित उत्पादन क्षमता का केवल 350 / कि.ग्रा./ वर्ष ही है (सुरेश और चित्रांशी, 2011 )।

आर्द्रभूमियों में खराब मत्स्य उत्पादन के विभिन्न कारण हैं । परंतु नदी के साथ संपर्क के अभाव के कारण आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मत्स्य प्रजातियों के स्वतः भण्डारण का अभाव निम्न उत्पादकता के लिए प्रधान कारणों में से एक कारण है। पहचानी गई कुछ प्रमुख बाधाएं है - अत्यधिक दोहन और मूल - वास को नष्ट करना जिसके परिणामस्वरूप मछली की उलब्धता के साथ-साथ जैव-विविधता को हानि पहुंचती है। बहु–विभागीय/संस्थागत स्वामित्व पट्टे पर देने वाली स्पष्ट नीतियों का अभाव, गाद के कारण खराब शारीरिक स्वास्थ्य, खरपतवार द्वारा उत्पीड़न और अतिक्रमण, नदियों के साथ संपर्क की हानि, जलीय खरपतवार द्वारा अत्यधिक उत्पीड़न और खरपतवार हटाने के व्यापक दृष्टिकोण का अभाव, वाणिज्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रजातियों के स्व-भण्डारण का अभाव, उपयुक्त समय और मात्रा में पर्याप्त चुनिंदा मत्स्य अंडजों की गैर-उपलब्धता, मत्स्यपालन पुनर्वास के प्रति प्रौद्योगिकीय और वित्तीय सहायता का अभाव, खराब विपणन और परिवहन सहायता, विकास और प्रबंधन में समुदाय की भागीदारी का अभाव इस संबंध में, कुछ संभावित समाधानों पर विचार भी किया गया है जिनमें शामिल हैं - जलीय संसाधन डाटा आधार का प्रबंधन, आर्द्रभूमि प्रयोक्ताओं की बुनियादी सामाजिक-आर्थिक जानकारी का संग्रहण, प्रशिक्षण तथा अनुभवजन्य दौरों के साथ जन जागरूकता अभियान, एक प्रग्रहण मत्स्यपालन प्रबंधन प्रक्रिया के रूप में प्राकृतिक - वास और मत्स्य-भण्डार के संरक्षण के लिए उपयुक्त पहलकदमों की शुरूआत तथा नियमों को प्रवर्तित करना, उत्पादन संवर्धन और परिस्थिकी संरक्षण के लिए नए प्रौद्योगिकीय उन्नयों के समावेश के माध्यम से, जहां कहीं संभव हो, संस्कृति-आधारित मत्स्यपालन का संवर्धन, विभिन्न सहायक क्रियाकलापों के माध्यम से जीविकोपार्जन अवसरों में वृद्धि करने तथा पैदावार की गई मछलियों की क्षति में कमी करने के माध्यम से पैदावार - उपरांत सुविधाओं का सृजन करना, संपोषणीयता सुनिश्चित करने के लिए विकास प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों की पर्याप्त सहभागिता के माध्यम से आत्मविश्वास निर्माण |

एनएफडीबी के अंतर्गत आर्द्रभूमि के विकास के लिए कोई योजना नहीं है। कुछ आर्द्रभूमियों में एनएफडीबी द्वारा वित्तन्पोषण के माध्यम से 2000 अंगुलिक ( 80-100 मिमी आकार ) प्रति जलाशय की दर से छोटे जलाशयों में मत्स्य - अंडज भण्डारण की तर्ज पर मत्स्य - अंडजों का भण्डारण किया गया है। इस परविचार करते हुए, एनएफडीबी अनेक उप- अवयवों के साथ एक 'स्वच्छ जल आर्द्रभूमि मत्स्यपालन विकास' स्कीम आरंभ कर रहा है। ये उप- अवयव हैं - 2000 / है. की दर पर आंगुलिकों का भण्डारण, नई पालन इकाइयों का सृजन, पुराने पालन क्षेत्रों का नवीकरण, मिट्टी के बर्तनों में आंगुलिकों के पालन के लिए इनपुट लागत, पैदावार उपरांत सुविधाएं (सम्मिश्रित संरचना), नदियों से जुड़ने वाले जलाशयों का पुनरूद्धार, जल विनियामक संरचना, मुख्य जल - निकाय अर्थात मूल आर्द्र भूमि का पुनरूद्धार, आदि ।

हालांकि नए अन्वेषणकर्ताओं ने चयनित आर्द्रभूमियों और जलाशयों के सरोवर - विज्ञान तथा मत्स्यपालन संबंधी पहलुओं का अध्ययन करने का कड़ा प्रयास किया है, फिर भी समुदाय - आधारित मत्स्यविज्ञान प्रबंधन के माध्यम से आर्द्रभूमि मत्स्यपालन के विकास और प्रबंधन की प्रत्येक अवस्था पर लोगों की प्रतिभागिता की भूमिका पर व्यवस्थित अध्ययन अत्यंत कम किए गए हैं। लेकिन, अधिकांश अध्ययनों ने यह दर्शाया है कि इस प्रकार के खुले जल संसाधनों के संपोषणीय विकास के लिए समुदाय - आधारित मत्स्यपालन प्रबंधन एक व्यवहार्य विकल्प है (बरूआ एट. एल. 2000, बर्मन, 2004, 2011 विश्व बैंक स्रोत, 2011 ) । हमारे पिछले अनुभवों से, यह देखा गया है कि विकास संबंधी दृष्टिकोण अधिकांशतः निरर्थक सिद्ध हुए है अथवा उन पर अत्यंत कम फीडबैक प्राप्त हुआ है। क्योंकि परियोजना प्रबंधन प्रणाली का नेतृत्व सरकार द्वारा किया जाता है जिसमें केंद्रीयकृत नियंत्रण, निगरानी और मूल्यांकन होता है। इस प्रकार की प्रणाली में वास्तविक लक्ष्य समूह विकास के लिए योजना -निर्माण तथा परियोजना क्रियान्वयन, निगरानी और पर्यवेक्षण, आदि के लिए निर्णय लेते समय किसी भी प्रकार के उल्लेखनीय अवसर का लाभ नहीं उठा पाता है । यह देखा गया है कि अधिप्राप्ति सहितपरियोजना क्रियान्वयन की सभी अवस्थाओं में समुदाय - आधारित संगठन (सीबीओ) को शामिल किया जाना संसाधन-विहीन मत्स्यपालन कृषकों के लिए सामूहिक कार्यवाही और एक प्रतिभागितापूर्ण तरीके से प्रयास करने के माध्यम से मत्स्य पालन करना एक व्यवहार्य विकल्प है। यह पारस्परिक सहयोग एवं कौशल उन्नयन, थोक अधिप्राप्ति, उत्पादों के लिए बेहतर मूल्य तथा एक संपोषणीय रूप से उनके जीविकोपार्जन में संवृद्धि के लिए अधिक बाजार शक्ति के लाभ सुनिश्चित करेगा। सीबीएफएम के निम्नलिखित लाभ हैं:

परियोजना क्रियान्वयन की सभी अवस्थाओं में समुदाय - आधारित संगठन (सीबीओ) को शामिल किया जाना संसाधन-विहीन मत्स्यपालन कृषकों के लिए सामूहिक कार्यवाही और एक प्रतिभागितापूर्ण तरीके से प्रयास करने के माध्यम से मत्स्य पालन करना एक व्यवहार्य विकल्प है। यह पारस्परिक सहयोग एवं कौशल उन्नयन, थोक अधिप्राप्ति, उत्पादों के लिए बेहतर मूल्य तथा एक संपोषणीय रूप से उनके जीविकोपार्जन में संवृद्धि के लिए अधिक बाजार शक्ति के लाभ सुनिश्चित करेगा। सीबीएफएम के निम्नलिखित लाभ हैं:

  • पारंपरिक विकेन्द्रीयकृत सरकार - आधारित मत्स्य पालन प्रबंधन प्रणाली के प्रति अधिक व्यवहार्य  वैकल्पिक दृष्टिकोण।
  • संसाधन प्रयोक्ता तथा सरकार आदि के मध्य प्रबंधन उत्तरदायित्वों को बांटा जाता है ।
  • निर्णय लेने की प्रक्रिया में पणधारकों की अधिक भागीदारी ।
  •   प्रबंधन नियम सरल और प्रवर्तित हैं।
  • सरकार ओर समुदाय निगरानी और प्रवर्तन प्रणाली को संयुक्त रूप से समन्वित करते हैं 
  • समुदाय के लोगों के मध्य स्थानीय नेतृत्व की भावना उत्पन्न होती है।
  • पणधारकों के मध्य अधिक सहयोग ।
  • प्रबंधन प्रणालियां पारदर्शी हैं
  •  लाभों का वितरण समुदाय की राय के अनुसार किया जाता है।
  • समुदाय के नियमों और विनियमों का अनुपालन ।
  • सरकारी लागत, समुदाय के बोझ में कमी करना ।
  • मत्स्य पालन विवादों को न्यूनतम करना, और
  • संपोषणीय विकास को प्रवर्तित करना ।

समुदाय-आधारित मत्स्यपालन प्रबंधन (सीबीएफएम) क्या है?

समुदाय–आधारित प्रबंधन, सह-प्रबंधन और सहकारी प्रबंधन मत्स्यपालन प्रबंधन के लिए प्रयोग होने वाले समान पदबंध हैं जिनका उद्देश्य पणधारकों की प्रभावी प्रतिभागिता सुनिश्चित करना है। सीबीएफएम क प्रतिभागी दृष्टिकोण है जहां स्थानीय मछुआरा समुदाय प्रबंधन के सभी पहलुओं, जैसे पैदावार, पहुंच, अनुपालन, अनुसंधान और विपणन पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने के साथ-साथ प्रबंधकवृत्ति और प्रबंधन के लिए प्राथमिक उत्तरदायित्व का प्रयोग करता है ( माइकल एवं आइयूडिसलो 2005 ) । सीबीएफएम का उद्देश्य भावी पीढ़ी के लिए आवृत्त जल मत्स्य संसाधनों का अधिक संपोषणीय दोहन सुनिश्चित करना है तथा यह समुदायों के मध्य मत्स्यपालन संबंधी लाभों के सम्यापूर्ण वितरण को प्रोत्साहित करता है (थॉम्सन एट एल. 2003, सुल्ताना और थॉम्सन, 2003 ) । सीबीएफएम एक लोक - केन्द्रित, समुदायोन्मुख संसाधन आधारित मत्स्यपालन । प्रबंधन प्रणाली उपलब्ध कराता है जो निर्णय लेने की प्रक्रिया में, समुदाय के सशक्तीकरण में तथा समग्र मत्स्य प्रणाली में निम्न इनपुट लागतों के साथ सवंर्धित मत्स्य उत्पादन में संसाधन प्रयोक्ता की भागीदारी की गारंटी देती है।

समुदाय-अधारित मत्स्यपालन प्रबंधन का महत्व, पूर्वापेक्षा तथा चरण:

विश्व के विभिन्न भागों में संचालित विभिन्न अध्ययनों ने यह दर्शाया है कि समुदाय - आधारित मत्स्यपालन प्रबंध के माध्यम से जल - कृषि और मत्स्य संसाधनों का प्रबंध निम्नलिखित कारणों से अधिक महत्व हासिल करता जा रहा है:

  • यह पारंपरिक केन्द्रीयकृत सरकार - आधारित मत्स्यपालन प्रबंध प्रणाली के लिए सर्वाधिक व्यवहार वैकल्पिक दृष्टिकोण है।
  • प्रबंध उत्तरदायित्व संसाधन प्रयोक्ताओं तथा सरकार, आदि के बीच बांटे जाते हैं।
  • यह निर्णय लेने की प्रक्रिया में पणधारकों की अधिक प्रतिभागिता सुनिश्चित करता है जिसके परिणामस्वरूप समुदाय का सशक्तीकरण होता है ।
  • मत्स्यपालन प्रबंध नियम साधारण और प्रवर्तित किए जा सकते हैं ।
  • प्रभावी मॉनीटरिंग और प्रवर्तन प्रणाली के लिए सरकार और समुदाय साथ कार्य कर सकते हैं।
  • स्थानीय नेतृत्व समुदाय के लोगों से ही मिल सकता है।
  •  यह पणधारकों के मध्य बेहतर सहयोग सुनिश्चित करता है ।
  • प्रबंध प्रणालियां पारदर्शी और अत्यंत लचीली हैं।
  • लाभों का समुदाय द्वारा तैयार किए गए नियमों और विनियमों के अंतर्गत समुदाय की राय के अनुसार वितरित किया जाता है ।
  • समुदाय के नियमों और विनियमों का अनुपालन सुनिश्चित करता है।
  • समुदाय की प्रत्यक्ष भागीदारी के कारण सरकार की लागत, प्रबंध बोझ में कमी करता है
  • मछली पकड़ने संबंधी विवादों को कम करता है।
  • दीर्घावधि आधार पर संपोषणीय विकास को प्रवर्तित करता है ।

पूर्वापेक्षाएंः

सीबीएफएम कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिए महत्वपूर्ण पूर्वापेक्षाएं इस प्रकार हैं (सलीम 1998):

  • पणधारक सीबीएफएम दृष्टिकोण पर अवधारणा को स्पष्ट करते हैं, विशेष रूप से इसके सिद्धांतों, उद्देश्यों, लाभ और सीमाओं पर ।
  • एक स्पष्ट और सुपरिभाषित स्वामित्व स्थिति । विशाल आवृत्त जल निकायों के मामले में स्पष्ट सीमा ।
  • स्थानीय दृष्टि से एक प्रभावी जल - कृषि और मत्स्यपालन सूचना एकत्रीकरण तंत्र ।
  • जल संसाधन प्रयोक्ताओं के मध्य अधिकाधिक सहभागिता को प्रोत्साहित करने के लिए एक प्रभावी स्थानीय संस्थागत ढांचा ।
  • सभी पणधारकों द्वारा सीबीएफएम को पर्याप्त मान्यता, जो कार्यक्रम के विकास, क्रियान्वयन, मॉनीटरिंग और मूल्यांकन में शामिल हैं।
  • पुरस्कार और दण्ड के लिए नियंत्रण तंत्र ।

महत्वपूर्ण कदमः

यदि हम व्यापक जल संसाधनों, जैसे आर्द्रभूमियों के प्रभावी उपयोग के लिए सीबीएफएम दृष्टिकोण को क्रियान्वित करना चाहते हैं, तो निम्नलिखित कदम अत्यंत महत्वपूर्ण है (बर्मन, एट. एल. 2005)।

  • जल संसाधनों के प्रभावी विकास और प्रबंध के लिए प्राथमिक और गौण, दोनों ही पणधारकों की पारदर्शी अभिवृत्ति।
  • हमारे विस्तार / परिवर्तन एजेंट द्वारा मछुआरों के साथ छवि-निर्माण।
  • मछुआरा समुदाय से संभावित समुदाय नेतृत्वकर्ताओं की पहचान ।
  • आम सहमति के माध्यम से विकास लक्ष्यों की स्थापना ।
  • मत्स्यपालन विकास पहलकदमों के प्रति आत्मविश्वास लाने के लिए जागरूकता, क्षमता निर्माण कार्यक्रम तैयार करने के लिए मछुआरों को संगठित करना और उन्हें एक मंच पर लाना ।
  • जल संसाधनों के विकास से पूर्व तथ्यों, समस्याओं / जरूरतों का सहभागितापूर्वक संग्रहण करना ।
  • तथ्यों, समस्याओं/जरूरतों का विश्लेषण करना और इसका उपयुक्त प्राथमिकता प्रदान करना।
  • एक प्रतिभागी तरीके से उपयुक्त प्रौद्योगिकी का निर्धारण करना ( अर्थात् स्थानीय रूप से उपलब्ध कच्ची सामग्री के साथ अंतवर्ती प्रौद्योगिकी) ।
  • समुदाय की जल - कृषि और मत्स्यपालन विकास योजना तैयार करना जिसमें लाभ और / अथवा आय के साम्यापूर्ण वितरण, महिलाओं की भागीदारी तथा स्थानीय सामाजिक कल्याण के लिए योजना भी शामिल हो ।

इसके अलावा, हमें समुदाय - आधारित संगठन (सीबीओ) जैसे आर्द्रभूमि विकास समिति (डब्ल्यूडीसी), जलाशय मत्स्यपालन विकास समिति (आरएफडीसी) के महत्व तथा इनके प्रबंधन के बारे में भी समझ होनी चाहिए जिसमें ऐसे सीबीओं द्वारा इसकी दीर्घकालिक संपोषणीयता के लिए सामाजिक प्रकटीकरणों का अनुरक्षण भी शामिल हो ।

समुदाय–आधारित मत्स्यपालन - प्रबंधन (सीबीएफएम) के महत्वपूर्ण अवयव

सित्का घोषणा (2005) ने सीबीएफएम के लिए संभावित उपकरणों की एक सूची की पहचान की है। ये दस श्रेणियों में आते हैं । इन उपकरणों में शामिल हैं “किस प्रकार ” लोगों को परस्पर सहयोगकर्ता बनाया जाए, कोई संगठन विकसित किया जाए, पर्याप्त और स्थिर वित्त पोषण प्राप्त किया जाए, समुदाय को मत्स्यों और उनके प्राकृतिक वासों का आकलन, पुनर्निर्माण और संरक्षण करने के कार्य में लगाया जाए, परिवर्तन को प्रभावित किया जाए, नेतृत्व प्रशिक्षण को सहायता की जाए, स्थानीय ज्ञान को विज्ञान के साथ एकीकृत किया जाए, एक कानूनी ढांचा बनाया जाए और प्रसंस्करण और विपणन अवसंरचना विकसित की जाए । इनके उत्तर इस प्रकार है:-

लोगों की सहभागिता

मत्स्यपालन के विकास और प्रबंध की प्रक्रिया में सीबीएफएम की सफलता स्थानीय लोगों की सहभागिता पर निर्भर करती है। इसे एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है, जहां पणधारक उन्हें प्रभावित करने वाले विकास संबंधी निर्णयों, संसाधनों और पहलकदमों की साझेदारी करते है, उन्हें नियंत्रित और प्रभावित करते हैं । अतः आज इस बात पर पर्याप्त सहमति है कि विकास तब तक संपोषणीय और प्रभावी नहीं हो सकता है जब तक कि विकास प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी को केन्द्रीय बिंदु नहीं बनाया जाता है।

समुदाय संगठन और संघटन

मत्स्यपालन विकास कार्यक्रमों में समुदाय की सहभागिता त्वरित समुदाय संगठन और संघटन दृष्टिकोण को अपनाएं जाने पर निर्भर करती है। अतः संपोषणीय मत्स्यपालन प्राप्त करने के लिए समुदाय के संगठन और संघटन की स्पष्ट समझ होना अनिवार्य है। इस संबंध में, तीन बातें अत्यंत अनिवार्य है, अर्थात् समुदाय को समझना, समुदाय पर विश्वास करना तथा समुदाय का सम्मान करना । अन्यथा, यह कुल मिलाकर समुदाय के लिए किसी भी प्रकार के क्रम से सामाजिक-आर्थिक लाभ नहीं प्रदान कर पाएगा।

बुनियादी रूप से समुदाय का संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा समुदाय अपनी आवश्यकताओं को पहचानता है, इन आवश्यकताओं को कैसे लगाता है, आत्मविश्वास उत्पन्न करता है और उनकी पूर्ति की दिशा में कार्य करता है, उन का निवारण करने के लिए संसाधन तलाशता है तथा ऐसा करते हुए, समुदाय में सहकारी और परस्पर सहयोगी अभिवृत्ति और प्रक्रियाएं विस्तारित एवं विकसित करता है (सूपे, 1997)। यहां पर, समुदाय संगठन का बुनियादी विचार लोगों को सामूहिक रूप से उनकी आम समस्याओं / जरूरतों की पहचान करने और उनका समाधान करने के लिए प्रक्रिया में शामिल करना है।

सामाजिक संघटन तथा समुदाय संघटन शब्द एक-दूसरे के लिए प्रयोग किए जाते हैं। जब सामाजिक संघटन किसी विशेष समुदाय तक ही सीमित हो, तो उसे समुदाय संघटन कहा जाता है। सामाजिक संघटन एक सहभागी प्रक्रिया है वहां लोग अपने जीवन की परिस्थिति को समझने के लिए सामाजिक पूछताछ और विश्लेषण करने तथा अपनी कुशलता के लिए उसे बदलने के लिए निर्णय लेने और उस पर कार्रवाई करने के लिए शिक्षित, संगठित, उत्प्रेरित और समर्थ होते हैं।

समुदाय संगठन और संघटन की प्रक्रिया और आवश्यकता

हमारे मछुआरे प्रायः संसाधन, शिक्षा और आय, आदि की दृष्टि से निर्धन होते हैं । वे अत्यंत असंगठित भी होते हैं। उनकी आजीविका मुख्य रूप से मछली और मत्स्यपालन क्रियाकलापों पर निर्भर रहती है। भिन्न-भिन्न मछुआरों के अलग-अलग जल संसाधन होते हैं। ये संसाधन लघु, मध्यम अथवा विशाल हो सकते हैं अथवा वे सामान्य संपत्ति संसाधनों के प्रयोक्ता हो सकते हैं, जैसे जलप्लावन झीलें / आर्द्रभूमि आदि । अतः एक विकास प्रबंधक के रूप में हमें उनके स्थानीय ज्ञान और विचार को पर्याप्त महत्व देते हुए तथा उन्हें एक दृश्यमान समुदाय के रूप में संगठित करते हुए उनके संसधानों  के प्रबंधन पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए।

बदलते हुए मत्स्यपालन प्रबंध परिदृश्य के साथ आज हमें इन संसाधनों के विकास और प्रबंधन की प्रक्रिया में एक सहयोगकर्ता के रूप में गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) की सहभागिता के साथ समुदाय संघटन और समुदाय संगठन की एक सुपरिभाषित प्रक्रिया की आवश्यकता है। अनुभवों ने हमें यह सिखाया है कि मत्स्यपालन प्रबंध संपोषणीयता बुनियादी रूप से उपयुक्त समुदाय संघटन और संगठन तथा मछुआरों के लिए प्रभावी प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों पर निर्भर करती है । अतः “मछली के साथ किस प्रकार का व्यवहार करें" के स्थान पर "पहले लोगों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करें" पर ध्यान दिया जाना चाहिए। चूंकि लोग विकास के अग्रवाहक हैं, अतः वे मत्स्यपालन विकास के केंद्र - बिंदु हैं । अतः प्रभावी समुदाय संघटन में मत्स्यपालन विकास की प्रक्रिया में समुदाय के लोगों को शामिल करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ऐसा समुदाय संघटन सामान्यतः समुदाय में जागरूकता का सृजन करने, समुदाय के लोगों का प्रभावी रूप से क्षमता निर्माण करने, लोगों की अपनी समस्याओं का विश्लेषण करने और उनके संभावित समाधानों की तलाश करने की योग्यता को मजबूत बनाने, कौशलों का उन्नयन करने तथा लोगों की निर्णय लेने की क्षमता को प्रखर बनाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

वास्तव में सफल सामाजिक संगठन के लिए कोई खण्डवार प्रौद्योगिकी उपलब्ध नहीं है। यह वस्तुतः परिस्थिति-आधारित, संसाधन - आधारित होती है तथा साथ ही, किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र की सामाजिक संरचना, सामाजिक पर्यावरण और आर्थिक - संरचना पर भी बुनियादी रूप से निर्भर करता है। प्रभावी समुदाय संगठन के लिए चमाला और सिंधी (1997) द्वारा पहचाने गए महत्वपूर्ण कदम हैं ( क ) ग्राम समुदाय अर्थात संसाधन प्रयोक्ताओं को समझना, (ख) समुदाय में संभावित नेतृत्वकर्ताओं की पहचान, (ग) समान नेतृत्वकर्ताओं से बातचीत करना, गांव में प्रचालन कर रही अन्य एजेंसियों से सहयोग प्राप्त करना, (घ) समुदाय बैठकें आयोजित करने के लिए स्थानीय नेतृत्वकर्ताओं को सहयोग देना, (ड.) शिक्षा और कार्यों द्वारा सीखने के माध्यम से कृषकों के संगठन स्थापित अथवा विकसित करने के लिए केन्द्रीय - समूह के नेतृत्वकर्ताओं को नामांकित करना, (च) कार्रवाई को तेज करना, (छ) चयनित परियोजनाओं को कार्यान्वित करना तथा (ज) किसानों के संगठनों की प्रगति की निगरानी और मूल्याकंन करना ।

समुदाय अधिप्राप्ति 

समुदाय  आधारित मत्स्यपालन प्रबंध का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवयव है। 'समुदाय अधि प्राप्ति' अथवा ‘समुदाय संविदा' अथवा 'समुदाय - आधारित अधिप्राप्ति' शब्दों का प्रयोग एक-दूसरे के लिए किया जाता है। ‘समुदाय अधिप्राप्ति' समुदाय द्वारा अथवा उसकी ओर से अधिप्राप्ति की प्रक्रिया है (जोर्गेन्सेन, 1999)। ऐसी अधिप्राप्ति समुदाय - आधारित परियोजना के अंतर्गत कार्यों, माल अथवा सेवाओं की अधिप्राप्ति के दौरान देखी जाती है। संपूर्ण समुदाय अधिप्राप्ति की समग्र विषय-वस्तु और कुछ नहीं, बल्कि समुदाय द्वारा और समुदाय की ओर से समग्र अधिप्राप्ति की अधिप्राप्ति आयोजना निर्माण, क्रियान्वयन, मॉनीटरिंग और मूल्यांकन की प्रक्रिया में उत्साही लोगों की प्रतिभागिता तथा एक साम्यापूर्ण तरीके से परियोजना से हासिल किए गए लाभ का वितरण है (बर्मन एट. एल. 2012 ) ।

आज के परिप्रेक्ष्य में, अधिप्राप्ति क्रियाकलापों में परियोजना के क्रियान्वयन के दौरान समुदाय की सहभागिता एक आवश्यकता बन गई है क्योंकि समुदाय - प्रबंधित परियोजनाओं में समूचे विश्व में दीर्घकालिक संपोषणीयता के लिए संवर्धित क्षमता विद्यमान है ।

समुदाय अधिप्राप्ति की आवश्यकता

समुदाय अधिप्राप्ति के बुनियादी लाभ नीचे दर्शाए गए हैं:-
  •  यह अधिप्राप्ति में शामिल समुदायों के मध्य स्वामित्व की भावना अर्थात् ' अपनेपन की भावना' लाती है ।
  • यह जलीय - इनपुटों सहित सभी प्रकार की अधिप्राप्तियों के संबंध में अत्यंत लाभदायक समुदाय प्रयोक्ताओं के अनुकूल है। 
  • समुदाय समूह क्या खरीदना है, कैसे खरीदना है, कब खरीदना है और इसे कहां से खरीदा जाएगा के संबंध में निर्णय ले सकते है । अतः इसमें कोई भी तथाकथित 'ठेकेदार' नही है, जैसाकि पारपंरिक अधिप्राप्ति प्रणाली में पाया जाता है। यह परियोजना क्रियाकलापों का प्रभावी और त्वरित क्रियान्वयन सुनिश्चित करता है।
  • यह जल-कृषि इनपुटों की समय पर अधिप्राप्ति तथा उपयुक्त मात्रा और उचित समय पर अनुप्रयोग सुनिश्चित करता है।
  • सभी प्रकार की इनपुट अधिप्राप्ति और उनका वितरण समुदाय द्वारा ठोस समुदाय निर्णयों के माध्यम से अपने कल्याण के लिए स्वयं ही किया जाता है।
  • यह परियोजना की दीर्घकालिक संपोषणीयता सुनिश्चित करता है क्योंकि समुदाय सही मायनों में परियोजना के प्रचालन और प्रबंधन में स्वयं शामिल रहता है।
  • यह स्वदेशी तकनीकी ज्ञान (आईटीके) तथा उपयुक्त प्रौधोगिकियों के प्रभावी उपयोग के लिए पार्यप्त गुंजाइश उपलब्ध कराता  है।      

अनुदाय-आधारित आवृत्त जल मतस्यपालन प्रबंधन की आवश्यकता

हमारे पूर्व के अनुभवों ने यह दर्शाया है कि सरकार के नेतृत्व वाले ऊपरी स्तरों से निचले स्तरों तक आने वाले विकास संबंधी दृष्टिकोण अनेक अवसरों पर निरर्थक साबित हुए हैं अथवा उनके विषय में अत्यंत अल्प फीडबैक प्राप्त हुआ है अथवा बिलकुल भी फीडबैक प्राप्त नहीं हुआ है क्योंकि उनकी प्रणाली केंद्रीयकृत नियंत्रण और प्रबंध प्रणाली थी ।  इस केंद्रीयकृत ऊपरी स्तरों से निचले स्तरों वाली प्रबंध प्रणाली के अंतर्गत वास्तविक लक्ष्य समूह और/अथवा लाभार्थी परियोजना के विकास तथा उसके क्रियान्वयन, निगरानी और पर्यवेक्षण, आदि के लिए योजना तैयार किए जाने के समय किसी भी उल्लेखनीय प्रगति, अवसर का लाभ नहीं उठा सकते हैं। अतः अब यह विश्वास किया जाता है कि समुदाय - आधारित संगठन (सीबीओ) के माध्यम ऐसे संसाधनों का विकास और प्रबंधन संसाधन विहीन कृषकों को सामूहिक कार्रवाई और एक सहभागितापूर्ण तरीके से प्रयास करने के माध्यम से मत्स्य पालन करने की उनकी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की पूर्ति करेगा। समुदाय-आधारित आवृत्त जल मत्स्यपालन प्रबंध के लिए भावी मार्ग नीचे दर्शाया गया है:

समुदायआधारित आवृत्त जल मतस्यपालन प्रबंधन  के लिए भावी मार्ग 

समुदाय आधारित संगठनों का निर्माण: समुदाय आधारित जलाशयों  / आर्द्रभूमियों तथा अन्य आवृत्त जल  संसाधनों के प्रबंधन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू एक समुदाय- आधारित संगठन (सीबीओ) का निर्माण करना है। ऐसे सीबीओ का निर्माण आस-पास के जल निकायों के प्रयोक्ताओं को संगठित करके अवश्य किया जाना चाहिए तथा उन्हें संबंधित सीबीओ के सामान्य सदस्यों के रूप में मानना चाहिए। ऐसे सीबीओ के सदस्यों की संख्या ससाधनों के आकार तथा आस-पास के गावों / गाववासियों की संख्या पर निर्भर होती है। सीबीओ के प्रबंधन के लिए समूह की अगुआई करने के लिए समिति की बैठक में हाथ उठाने के माध्यम से सहभागी तरीके से 5-7 सदस्यों से मिलकर बनी एक कार्यकारिणी समिति का चुनाव किया जाना चाहिए। एक सरकारी अधिकारी तथा एक एनजीओ प्रतिनिधि को सीवीओ के सामान्य सदस्यों के बाहर से कार्यकारिणी सदस्य के रूप में किया जाना चाहिए ।

सीबीओ सदस्यों की क्षमता का निर्माण 

संसाधन प्रयोक्ताओं की क्षमता के निर्माण के भाग के रूप में विभिन्न प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते है, जैसे (क) संसाधन प्रबंध पर परियोजना स्थल पर प्रशिक्षण, (ख) रिकॉर्ड और लेखा अनुरक्षण पर प्रशिक्षण, (ग) पारंपरिक मछली पकड़ने के उपकरणों, मत्स्य परिरक्षण के सुधार पर प्रशिक्षण जिसमें स्वेदशी मत्स्य धूमन की तैयारी तथा लवणीय उत्पाद शामिल हैं, (घ) गुणवत्तापूर्ण मत्स्य–अंडज पालन पर प्रशिक्षण (यथास्थाने पेन और पिंजरों में तथा बाहय स्थाने समूह कृषि प्रक्रियाओं के अंतर्गत आर्द्रभूमि के पैदावार तालाबों अथवा ग्राम के टैंक, दोनों में ), (ङ) समुदाय की अधिकारिता में वृद्धि करने के लिए पशुधन सहित एकीकृत मत्स्य फार्मिंग और सूक्ष्म - ऋण, आदि पर, (च) जिले के भीतर, राज्य के भीतर और यदि संभव हो, तो राज्य के बाहर ऐसे स्थानों पर अनुभवजन्य दौरा कार्यक्रम आयोजित करना, जहां समान क्रियाकलापों पर सफलता गाथाएं उपलब्ध हैं, (छ) स्वेदशी सजावटी मछलियों के संग्रहण तथा उनके पालन पर प्रशिक्षण ।

सीबीओ का प्रबंध

 संबंधित सीबीओ के अंतर्गत 5-7 सदस्यों की कुछ समितियां गठित की जाएंगी जैसे समुदाय संघटन समिति, उत्पादन समिति, विपणन और वितरण समिति, सामाजिक लेखापरीक्षा समिति (एसएसी। कार्यकारिणी समिति सीबीओ की मुख्य संचालन शक्ति होगी । संसाधनों की श्रेष्ठ प्रबंध प्रक्रियाओं के हित में समस्त प्रबंधन निर्णय कार्यकारिणी समिति (ईसी) द्वारा लिए जाएंगे। ईसी की नियमित बैठकें, एक माह में कम-से-कम एक बार आयोजित की जाएंगी तथा उसके सदस्यों द्वारा विभिन्न बैठकों में बार- बार अनुपस्थित रहने, सदस्यता अंशदान का भुगतान न करने, सीबीओ मानदण्डों / क्रियाकलापों के उल्लंघन, आदि के लिए उनकी सदस्यता को समाप्त करने की शक्ति होगी। कार्यकारिणी समिति अत्यावश्यक होने पर शासी निकाय (जीबी) की बैठक बुला सकेगी। सामाजिक लेखपरीक्षा समिति (एसएसी) दैनिक अधिप्राप्ति आवश्यकता की व्यवस्था करने के लिए उत्तरदायी होगी। एसएसी कार्यकारिणी समिति के कार्यकरण की मॉनिटरिंग करने के लिए भी उत्तदायी होगी तथा यह सुनिश्चित करेगी कि सिविल कार्यों और इनपुटों की अधिप्राप्ति के लिए मितव्यियता, कार्यकुशलता समान अवसर, उत्तरदायित्व और पारदर्शिता के सिद्धातों का अनुपालन किया जा रहा है। एमएसी सीबीओ द्वारा की गई समस्त अधिप्राप्तियों और व्ययों की लेखापरीक्षा करेगी। समस्त प्रकार के सामाजिक प्रकटनों का अनुरक्षण ईसी को प्रदान किया जाएगा। शासी निकाय (जीबी) में पदाधिकारियों सहित सभी सदस्य शामिल होंगे तथा इसकी प्रत्येक वर्ष दो से तीन नियमित बैठकें होंगी। प्रभावशाली रिकार्ड अनुरक्षण के लिए, सीबीओ संबंधित समुदाय समूह के एक पात्र रिकॉर्ड अनुरक्षण का चयन करेगा। समूह कासचिव सामान्य रिकार्डों, रजिस्टरों तथा अन्य संबंधित लेखों के अनुरक्षण के लिए उत्तरदायी होगा। कोषपाल एक उचित तरीके से रिकार्ड और रजिस्टरों का अनुरक्षण करेगा ।

आवृत्त जल संसाधन प्रबंधन में समुदाय सदस्यों की सहभागिता

समुदाय–आधारित मत्स्यपालन प्रबंध का मूलभूत उद्देश्य संसाधनों के विभिन्न विकास और प्रबंध पहलुओं समुदाय के लोगों को शामिल करना है। ऐसा कोई निश्चित नियम नहीं है कि समुदाय की सहभागिता कहां में की जाए, परंतु यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि संसाधन प्रयोक्ताओं को संसाधन प्रबंध से संबंधित विकास हस्तक्षेप की प्रत्येक अवस्था में शामिल किया जाना चाहिए, जैसे (क) जलाशयों और आर्द्रभूमियों के अंतर्गतमत्स्य अंडज–पालन क्रियाकलाप (ख) जलाशयों और आर्द्रभूमियों में मतस्य - अंडज भण्डारण, (ग) अंडज - पालन तालाबों, आदि से संबंधित गाद निकालने के क्रियाकलाप, (घ) आर्द्रभूमियों से संबंधित जलीय खरपतवार को हटाना तथा जंगल की सफाई के अन्य कार्य, (ड.) समुदाय मत्स्य संरक्षण विशेष रूप से ब्रश पार्कों की स्थापना के माध्यम से मत्स्य संरक्षण विशेष रूप से स्वेदशी और संकटापन्न मत्स्य प्रजातियों का सरंक्षण, (च) मछली मारने के क्रियाकलापों के अवकाश - दिवसों का पालन (छ) सरकार के नियमों के अनुसार क्राफ्ट और गीयर के प्रयोग का कड़ाई से अनुपालन, (ज) मत्स्य - अंडज पालन क्रियाकलापों की प्रक्रिया के दौरान यथाअपेक्षित समस्त जलीय–इनपुट अधिप्राप्ति तथा साथ ही आर्द्रभूमियों में टेबल फिश का उत्पादन तथा समुदाय बही अनुरक्षण के माध्यम से रिकॉर्ड अनुरक्षण|

मत्स्य–पालन संसाधन प्रबंध में समुदाय सहभागिता की आवश्यकता 

उपर्युक्त विश्लेषण से, यह देखा गया है कि इस प्रकार के सामान्य संचयी संसाधनों का सतत विकास और प्रबंध सुनिश्चित करने के लिए मत्स्य संसाधन प्रबंध की सामुदायिक प्रतिभागिता की आवश्यकता है। इनमें शामिल है:

  • मत्स्य उत्पादन के संसाधनों से उसकी वर्तमान स्थिति को समझना ।
  • प्रतिभागितापूर्ण तरीके से मत्स्य आहार उत्पादन के लिए संसाधनों का प्रभावी उपयोग करना ।
  • जिम्मेदार और संपोषणीय तरीके से मछली पकड़ना सुनिश्चित करना।
  • मत्स्य भण्डारण प्रक्रियाओं की मॉनिटरिंग करना ।
  • संरक्षण तथा जाल विनियमों के महत्व को समझना ।
  • विपणन कार्यनीतियों को जानना ।
  • सामाजिक विकास के महत्व को समझना ।
  • पणधारकों को समर्थ और सशक्त बनाना ।
  • इससे संसाधनों का स्वामित्व होता है तथा 'स्वामित्व की भावना ' सृजित होती है, जो संपोषणीयता लानी है।
  • जलाशयों/आर्द्रभूमियों में अल्प भण्डारण धन के अभाव के कारण नहीं है बल्कि समुदाय प्रबंधन के लाभों के बारे में जागरूकता के अभाव के कारण है।
  • जलाशय/आर्द्रभूमि मत्स्यपालन को एक समुदाय क्रियाकलाप के रूप में मान्यता प्रदान की जानी चाहिए।
  • जलाशयों / आर्द्रभूमियों, आदि में मत्स्य - अंडज भण्डारण ।
  • प्राप्त किए गए लाभों की साम्यापूर्ण साझेदारी ।
  • समुदाय-आधारित मत्स्यपालन प्रबंध की सीमाएं: 
  • समुदाय - आधारित मत्स्यपालन प्रबंध की अपनी सीमाएं है जिनमें निम्नलिखित भी शामिल हैं
  • यह प्रत्येक मछुआरा समुदाय के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता है।
  • संभावित समुदाय नेतृत्व सीबीओ के भीतर उपलब्ध नहीं हो सकता ।
  • मजबूत उपयुक्त स्थानीय संस्थाएं जैसे मछुआरा संगठन, सीबीओ के अंतर्गत विद्यमान नहीं हो सकते हैं ।
  • इस प्रबंधन पहलू को स्थापित करने के लिए समय, वित्तीय और मानव संसाधनों का उच्च प्रारंभिक
  • निवेश संसाधन प्रयोक्ताओं को हतोत्साहित कर सकता है।
  • इस प्रबंधन कार्यनीति में सहभागिता करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति हेतु लागतें (समय, धन) अपेक्षित लाभों से अधिक हो सकती हैं।
  • इस प्रणाली को समर्थन देने के लिए पर्याप्त राजनीतिक इच्छा शक्ति विद्यमान नहीं होती है ।
  • निर्णय लेने की प्रक्रिया लंबी हो सकती है, क्योंकि हितों की व्यापक परिधि को ध्यान में रखते हुए विशेष मुद्दे पर सर्वसम्मति से निर्णय लेना आसान नहीं है।
  • सरकार तथा आर्द्रभूमि प्रयोक्ता समुदाय के बीच शक्तियों के असंतुलित और गैर-साम्यापूर्ण वितरण की हर संभावना विद्यमान होती है।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप भी विद्यमान रहता है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

समुदाय-आधारित आर्द्रभूमि मत्स्यपालन / जलाशय मत्स्यपालन प्रबंध के कुछ परिणाम 

समुदाय - आधारित आर्द्रभूमि मत्स्यपालन/जलाशय मत्स्यपालन प्रबंधन के कुछ उल्लेखनीय परिणाम इस प्रकार है:

  • प्रशिक्षण और क्षमता - निर्माण में एनजीओ की सहभागिता अनिवार्य है।
  • कुशल समुदाय नेतृत्व महत्वपूर्ण है।
  • समय पर उपलब्धता तथा महत्वपूर्ण मत्स्यपालन इनपुटों की एक - समान आपूर्ति अनिवार्य है।
  • सिविल कार्यों तथा इनपुटों की समुदायिक अधिप्राप्ति महत्वपूर्ण है ।
  • अनेक क्रियाकलापों जैसे जाल और नौका निर्माण, मत्स्य - अंडज पालन, सजावटी मछलियों का पालन-पोषण, एकीकृत जल- कृषि प्रक्रियाओं में सहभागिता के माध्यम से महिला सशक्तिकरण ।
  • विकास कार्यक्रमों में संसाधन प्रक्रियाओं की प्रत्यक्ष सहभागिता ।
  • समुदाय सदस्यों का सशक्तीकरण जो सामाजिक पूंजी के निर्माण में सहायता करे जैसे समूह सदस्यता, भरोसा, और पारस्परिक सामूहिक कार्रवाई।  
  • निर्णय लेने में संवर्धित प्रतिभागिता, उनके मध्य अधिक सहयोग 

समुदाय सदस्य मछलियों की पकड़ी गई मात्रा में वृद्धि, स्थानीय अभयारण्यों के संरक्षण, पारस्परिक सामूहिक कार्रवाई तथा मत्स्य जैव-विविधता में सुधार सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय समुदाय द्वारा निर्धारित नियमों का अनुपालन करने के प्रति सतर्क रहते हैं।

निष्कर्ष

उपर्युक्त से, यह समझा गया है कि गरीब मछुआरों के हित में तथा हमारे देश के आवृत्त जल संसाधनों के प्रभावी उपयोग और संरक्षण के हित में, आज, हमें समूचे देश में लोगों द्वारा नेतृत्व प्रदान की गई, लोक-केंद्रित समुदाय-आधारित मत्स्यपालन प्रबंध कार्यनीति की आवश्यकता है जो संवर्धित मत्स्य उत्पादन तथा साथ ही गरीब मछुआरों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के उत्थान, दोनों ही उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता प्रदान करे ताकि ये लोग सामाजिक - पर्यावरणीय पहलू के समुचित अनुरक्षण के साथ-साथ अपने बेहतरगुणवत्तापूर्ण जीवन का आनंद उठा सकें ।


डा.आर.च. बर्मन , वरिष्ठ कार्यपालक (तकनीकी) जलाशय, आर्द्रभूमि और शीत जल मत्स्यपालन प्रभाग राष्ट्रीय मत्स्यपालन विकास बोर्ड, हैदराबाद
ramen67@gmail.com

 

 सोर्स- राष्ट्रीय मत्स्यपालन विकास बोर्ड

Path Alias

/articles/sansthayein-ardrabhoomiyan-aur-anya-khule-jal-matsyapalan-prabandhan-mein-samuday-ki

Post By: Shivendra
×