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नर्मदा के अनेक नाम
Posted on 19 Sep, 2009 07:44 PM
म0प्र0 की जीवन रेखा कहलाने वाली नर्मदा नदी प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भारत की सात सर्वाधिक पवित्र नदियों में से एक है । हिन्दुओं के छोटे-बडे सभी धार्मिक संस्कारों और देवी-देवताओं के पूजन में स्नान के लिए चढाए जाने वाले जल को अभिमंत्रित करने के लिए छः अन्य पवित्र नदियों के साथ नर्मदा का भी आव्हान किया जाता है । यद्यपि ऋग्वेद में नर्मदा का उल्लेख नहीं मिलता, परन्तु इस बारे में विद्वानों का मत
प्रथम बुक्स की नयी पुस्तक कावेरी का विमोचन
Posted on 19 Sep, 2009 02:13 PM

नदी संरक्षण व जल बचाओ अभियान

बाल पुस्तक कावेरी के विमोचन के अवसर पर प्रथम बुक्स का निमंत्रण

हमारी महान नदियों की यात्रा का मुल्य पहचानिए और जल संरक्षण में अपना योगदान दीजिए।

यह सरल है जल संरक्षण पर दिए गए सुझाव पढ़िए। उनका अनुमोदन करते हुए प्रतिज्ञा कीजिए।

नर्मदा - एक परिचय
Posted on 19 Sep, 2009 01:31 PM
नर्मदा नदीअमृतमयी पुण्य
Narmada
निहित स्वार्थ का पर्याय ‘नदी जोड़ परियोजना’
Posted on 18 Sep, 2009 09:02 PM अजीब विरोधाभास है कि एक तरफ तो भारत सरकार की केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय इस परियोजना पर आगे बढ़ने की बात कहती है तो दूसरी तरफ सत्ताधारी दल के ही राहुल गांधी एवं जयराम रमेश सरीखे प्रमुख नेता इसे विनाशकारी बताते हैं। चाहे जो भी हो, जब प्रस्तावित 30 जोड़ों में से एक की भी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार न हो तो इस परियोजना के पक्ष में दावे खोखले नजर आते हैं।

अभी हाल ही में कांग्रेस पार्टी के सबसे चहेते नेता राहुल गांधी ने चेन्नई में एक प्रेस सम्मेलन में कहा कि नदी जोड़ योजना भारत के पर्यावरण के लिए बहुत ही विनाशकारी है। राहुल गांधी के बयान के अगले ही दिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री श्री के करूणनिधि ने इस परियोजना के पक्ष में दलील दी। इस तरह यह मुद्दा एक बार फिर जीवंत हो गया है। अब यदि प्रमुख सत्ताधारी दल के एक प्रमुख नेता की ओर से ऐसे बयान आ रहे हैं तो इसका निहितार्थ जानना भी जरूरी है। यह तो जानी हुई बात है कि नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना भारत में जल संसाधन क्षेत्र में अब तक की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है। सन 2001 के कीमत स्तर पर इस पूरी परियोजना की प्रस्तावित लागत ‘पांच लाख साठ हजार करोड़’ आंकी गई थी।

पर्यावरण के अनुकूल खेती की जरूरत
Posted on 18 Sep, 2009 06:09 PM
जिस गति से हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है, लगभग उसी गति से कृषि पर पैदावार बढ़ाने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि उपज बढ़ाने की चाह में देश के किसान ज्यादा से ज्यादा रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल करने लगे हैं। कीटनाशकों और अन्य रासायनिक पदार्थों का उपयोग मानव स्वास्थ्य के लिए कितना घातक सिद्ध को सकता है, इसका प्रमाण इसी बात से मिल जाता है कि पिछले दिनों प
पच्चीस सूत्रीय गंगा मांगपत्र
Posted on 13 Sep, 2009 08:42 AM
प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के बाद अब गंगा की स्वच्छता के कार्यक्रम को ठोस रूप देने के लिए केंद्र सरकार ने गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के गठन करने की तैयारी शुरू कर दी है। इस संबंध में इसी १५ दिसंबर को दिल्ली में प्रधान मंत्री के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के कार्य और स्वरूप को तय करने के लिए उन पांच प्रदेशों के जहां-जहां से गंगा गुजरती है, मुख्य मंत्रियों के प्रतिनिधियों तथा संबंधित मंत्रालयों के अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस अवसर पर जल बिरादरी के अध्यक्ष जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने केंद्र सरकार को २५ सूत्रीय गंगा मांग पत्र सौंपा, जिसे १५ नवंबर से ३ दिसंबर के बीच गंगा सम्मान संवाद यात्रा के जरिये जुटायी गयी लोगों की राय के आधार पर तैयार किया गया है।
नदियां गाती हैं
Posted on 12 Sep, 2009 07:53 PM

लेखक- डॉ. ओम प्रकाश भारती
पता-11/56, Sec-3, राजेंद्र नगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश, भारत
ईमेल: opbharati@yahoo.com
प्रकाशन: धरोहर, 2002,
192 पृष्ठ,
कीमत- रू. 192/-
रिव्यू- नरेश जैन, यू के
ईमेल: nareshkj@hotmail.com/ nareshjain@gmail.com
बेहतर जल प्रबंधन से सुलझेंगी कई समस्याएं
Posted on 07 Sep, 2009 12:48 PM अंधाधुंध जल दोहन की वजह से पूरे उत्तर पश्चिम भारत के भूजल स्तर में हर साल 4 सेंटीमीटर यानी 1.6 इंच की कमी आ रही है। इस अध्ययन को अंजाम देने में नासा के जल विज्ञानी मेट रोडल ने अहम भूमिका निभाई है। उनके हवाले से इस रपट में बताया गया है कि देश के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में 2002 से 2008 के दौरान तकरीबन 109 क्यूबिक किलोमीटर पानी की कमी हुई है। यह मात्रा कितनी अधिक है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह अमेरिका के सबसे बड़े जलाशय लेक मीड की क्षमता से दुगने से भी कहीं ज्यादा हैसूखे को लेकर देशभर में चिंता की लहर है। यह बेहद स्वाभाविक है। सूखे की मार झेल रहे लोगों के लिए सरकारी घोषणाएं भी हो रही हैं लेकिन जैसा ज्यादातर सरकारी घोषणाओं के साथ होता है, वैसा ही हश्र अगर इन घोषणाओं का भी हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। सूखे के नाम पर शोषण का कारोबार भी शुरू हो गया है। जमाखोर कारोबारी सूखे के नाम पर महंगाई को बेतहाशा बढ़ाने का काम कर रहे हैं और प्रधानमंत्री यह कह रहे हैं कि लोगों को महंगाई के लिए तैयार रहना चाहिए।

सूखे को लेकर नीतियों का निर्धारण करने वाले लंबे-चैड़े बयान जरूर दे रहे हैं लेकिन बुनियादी सवालों की चर्चा करने से हर कोई कतरा रहा है। आखिर क्यों नहीं सोचा जा रहा है कि यह समस्या क्यों पैदा हुई? इस बात पर क्यों नहीं विचार किया जा रहा है कि इस तरह की समस्या का सामना करने के लिए सही रणनीति क्या होनी चाहिए और इसके लिए क्या तैयारी होनी चाहिए?
‘नदियों ने मनुष्य की चेतना और सभ्यता को इस मुकाम तक पहुँचाया’
Posted on 07 Sep, 2009 06:38 AM

(सुप्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब से प्रेम कुमार के साक्षात्कार का यह अंश हम ‘नया ज्ञानोदय’ के मार्च 2004 के अंक से साभार प्रकाशित कर रहे हैं। -सम्पादक)
प्रेम कुमार:- समुद्र तटों पर सभ्यता के विकास को आप किस दृष्टि से देखते हैं?
सबसे पहली और जरूरी चीज पानी
Posted on 31 Aug, 2009 10:16 AM
मुझे नहीं मालूम कि भारत में कैसे नदियों, बावड़ियों, जोहड़ों और तालाबों को फिर से पुनर्जीवित किया जाए और कौन इस भगीरथ-कार्य को करेगा। हमारी सरकारें पानी के बारे में उतनी भी सचेत नहीं हैं, जितनी देश की रक्षा के बारे में। पानी को लेकर देश में कोई अखिल राष्ट्रीय चेतना तक नहीं है। क्या आपको नहीं लगता कि आज सबसे पहली और जरूरी चीज पानी है, जिस पर गौर करने की, जिसे बचाने की जरूरत है। दिल्ली के पॉश इलाके हौज खास में रहनेवाले मेरे एक मित्र का फोन था। बोले : चार- पांच दिनों से नल से एक बूंद भी पानी नहीं टपका। वैसे भी पानी रात को 3-4 बजे आता है और हम दिन भर का काम चलाने के लिए भरकर रख लेते हैं। पहले फोन करने पर जल बोर्ड का टैंकर आ जाता था। अब उसके दफ्तर जाने पर भी कोई नहीं सुनता। ग्राउंड वॉटर बेहद खारा और हार्ड है और उससे बिल्कुल भी काम नहीं चलता। कुछ करो भाई।

भाई बेचारा क्या करे। वह भी साउथ दिल्ली में ही रहता है। उसे भी पानी की कमी से जूझना पड़ता है। वैसे तो साउथ दिल्ली में हमेशा से ही प्रति व्यक्ति पानी की सप्लाई कम है लेकिन इन दिनों तो जीवन दूभर होता जा रहा है। जिन लोगों के पास पैसा है, वे प्राइवेट टैंकर से पानी मंगा लेते हैं। लेकिन गरीब क्या करे?
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