पच्चीस सूत्रीय गंगा मांगपत्र

प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के बाद अब गंगा की स्वच्छता के कार्यक्रम को ठोस रूप देने के लिए केंद्र सरकार ने गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के गठन करने की तैयारी शुरू कर दी है। इस संबंध में इसी १५ दिसंबर को दिल्ली में प्रधान मंत्री के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के कार्य और स्वरूप को तय करने के लिए उन पांच प्रदेशों के जहां-जहां से गंगा गुजरती है, मुख्य मंत्रियों के प्रतिनिधियों तथा संबंधित मंत्रालयों के अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस अवसर पर जल बिरादरी के अध्यक्ष जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने केंद्र सरकार को २५ सूत्रीय गंगा मांग पत्र सौंपा, जिसे १५ नवंबर से ३ दिसंबर के बीच गंगा सम्मान संवाद यात्रा के जरिये जुटायी गयी लोगों की राय के आधार पर तैयार किया गया है। इस २५ सूत्रीय गंगा मांग पत्र को ज्योतिष और द्वारका-शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीस्वरूपानंदजी सरस्वती के मार्गदर्शन में कार्य कर रहे गंगा सेवा अभियान की ओर से गठित गंगा ज्ञान आयोग ने अंतिम रूप दिया है।

केंद्र सरकार को भेजे गये २५ सूत्रीय गंगा मांग पत्र में जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी की शुरू की गयी गंगा कार्य योजना को आगे बढ़ाने तथा गंगा की स्वच्छता का माडल तैयार करने के लिए जहां प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को बधाई दी है, वहीं उन्हें आगाह किया है कि अगर उन्होंने इस अभियान में जनभागीदारी को सुनिश्र्चित नहीं किया तो इस बार भी हश्र वही होगा जो गंगा कार्य योजना का हुआ था और इसका कलंक गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने और करानेवाले दोनों के माथे पर लगेगा।

अपने पत्र में उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि अगर गंगा नदी घाटी प्राधिकरण अन्य राष्ट्रीय प्रतीकों की तरह गंगा के प्रति सम्मान और व्यवहार का अनुशासन सुनिश्र्चित करने के लिए कई कायदे-कानून बनाकर उनकी अनुपालना की ठोस व्यवस्था कर पाने में सफल रहता है तो सरकार का यह निर्णय देश में नदियों के पुनर्जीवन की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। उन्होंने प्रधान मंत्री से अनुरोध किया है कि जिस अच्छे मन और गंभीरता से उन्होंने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने का निर्णय लिया है, उसी अच्छे मन और गंभीरता से वह गंगा मांग पत्र के सभी २५ बिंदुओं को स्वीकार कर गंगा का गौरव लौटाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करें।

२५ सूत्रीय गंगा मांग पत्र

यह गंगा मांग पत्र जल पुरुष जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वतीजी महाराज की प्रेरणा से गठित गंगा सेवा अभियान के संयोजक जलपुरुष राजेन्द्र सिंह के नेतृत्व में हुई गंगा सम्मान संवाद यात्रा (१५.११.२००८ से ३.१२.२००८) के निष्कर्षों पर आधारित है।

१. स्पष्ट करें कि गंगा को राष्ट्रीय प्रतीक अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया है अथवा नहीं ? यदि नहीं तो ऐसा कर इसकी वैधानिक प्रक्रिया पूरी करें तथा गंगा के राष्ट्रीय नदी के रूप में परिचय और महत्व को प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में एक ज़रूरी पाठ के रूप में शामिल करने के निर्देश दिये जायें।

२. अन्य प्रतीकों की भांति राष्ट्रीय नदी के प्रति सम्मान तथा व्यवहार में अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए कायदे-कानून, कार्य और ढांचागत व्यवस्था को अन्तिम रूप देने से पहले सरकार इसका एक प्रारूप तैयार करे और उस पर ईमानदार तरीके से जनसहमति ले।
गंगा के राज्य हिंदी भाषियों की बहुलतावाले राज्य हैं, अत: मूल प्रारूप हिंदी भाषा में ही तैयार हो।

३. राष्ट्रीय प्रतीकों की श्रेणी में लाने के बाद राष्ट्रीय नदी गंगा और उसकी सहायक धाराओं को वैधानिक तौर पर राज्य नहीं बल्कि केंद्र का विषय बनाया जाये।

४. गंगा और उसकी सहायक नदियों के बाढ़ क्षेत्र (फ्लड प्लेन) की पहचान और सीमांकन कर उन्हें टाइगर रिजर्व की तर्ज पर गंगा रिजर्व एरिया घोषित तथा संरक्षित किया जाये।

५. गंगा रिजर्व एरिया की सीमा में होने वाली सार्वजनिक महत्व की समस्त गतिविधियां तथा परियोजनाएं सीधे-सीधे गंगा नदी प्राधिकरण के नियंत्रण में हों । इसमें किसी अन्य विभाग, आयोग, प्राधिकरण अथवा सरकार का किसी भी परिस्थिति में दखल न हो। यह व्यवस्था किसी राजनैतिक दल अथवा अधिकारी के आने-जाने से प्रभावित न हो। इस संबंध में पक्के कानून बना दिये जायें।

६. गंगा रिजर्व एरिया में नदियों के तट पर होनेवाली धार्मिक-सामाजिक गतिविधियों तथा धार्मिक तथा सार्वजनिक महत्व के परिसरों के संचालन हेतु सरकारी-सामुदायिक-सहभागिता पर आधारित प्रबंधन मॉडल को लागू करें।

७. कानूनन यह सुनिश्चित किया जाये कि नदियों के प्रवाह के सर्वोपरि बाढ़ बिंदु के दोनों ओर गंगा के मामले में ५०० मीटर तथा उसकी सहायक नदियों के मामले में ३०० मीटर चौड़े क्षेत्र को नदी भूमि (रिवर बेड) मानकर उसे जल संचयन तथा स्थानीय जैव विविधता के अनुकूल वनस्पति क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाये।

८. नदी भूमि क्षेत्र के भू उपयोग को प्रत्येक परिस्थिति में सिर्फ और सिर्फ नदियों को समृद्ध करनेवाली गतिविधियों के लिए ही अनुमति दी जाये और नदी भूमि का भू उपयोग किसी भी परिस्थिति में रूपांतरित और हस्तांतरित करना अवैध माना जाये। पुरातत्व और धार्मिक आस्था की दृष्टि से संवेदनशील पूर्व निर्मित स्थायी निर्माणों को छोड़कर नदी भूमि पर किसी अन्य उपयोग हेतु पूर्व में किये गये, रूपांतरण तथा हस्तांतरण को रद्द कर स्थायी निर्माण ध्वस्त किये जायें और उस भूमि को प्राकृतिक स्वरूप में लाना सुनिश्चित किया जाये। भविष्य में नदी भूमि पर तय भू उपयोग के अतिरिक्त किसी भी अन्य उपयोग हेतु नवनिर्माण प्रतिबंधित हो। चाहे वह निर्माण धार्मिक अथवा सामुदायिक उपयोग के नाम पर ही क्यों न प्रस्तावित हो। साथ ही तय करें कि नदियों को डंप एरिया के तौर पर इस्तेमाल करना बंद हो।

९. नदी भूमि पर किसी तरह स्थायी अथवा अस्थायी व्यवसायिक गतिविधि पूर्ण रूप से प्रतिबंधित हो।

१०. तमाम दावों और प्रयासों के बावजूद किसी भी फैक्टरी तथा नगरपालिका क्षेत्रों में लगे जल-मल शोधन संयत्रों से निकला पानी ऐसा नहीं पाया गया है, जो स्नान अथवा पीने योग्य हो। ऐसे पानी के नदी तथा भूजल में मिलने से गंगा तथा सहायक नदियों के भीतर जल जीव-वनस्पति का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। इन धाराओं के किनारे रहनेवाली आबादी में कैंसर, दमा, किडनी, विकलांगता और मृत्यु के शिकार बढ़े हैं। अत: जरूरी है कि किसी भी उद्योग, नगरपालिका, होटल, अन्य उपक्रमों तथा रिहायशी क्षेत्रों द्वारा उपयोग करने के पश्चात छोड़ा गया शोधित-अशोधित जल किसी भी प्राकृतिक धारा- नालों आदि में डालना पूरी तरह प्रतिबंधित हो। ऐसे जल को शोधन के बाद खेती-बागवानी अथवा उद्योगों में पुनरुपयोग के लिए प्रोत्साहन तथा ढांचागत निर्माण की व्यवस्था हो।

११. प्रदूषकों को आर्थिक रूप से दंडित करने से संबंधित राष्ट्रीय पर्यावरण नीति निर्देशों के स्थान पर जल, वायु-पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रदूषण के अपराधी को हत्या के मामले जैसी सज़ा दिलाने को तवज्जो दी जाये।

१२. गंगा और उसकी सहायक धाराओं में उनके मूल प्रवाह जैसे रासायनिक-भौतिक गुण और उन्हें समृद्ध करनेवाली जैव विविधता को हासिल करने के लिए जरूरी है कि प्रत्येक नदी धारा विशेष के लिए पारिस्थितिकीय प्रवाह के विशेष मानक तय किये जायें और उन्हें हासिल करने का समयबद्ध लक्ष्य सुनिश्चित किया जाये। गंगा सेवा अभियान की ओर से गठित गंगा ज्ञान आयोग की मान्यता है कि भागीरथी में लोहारी नाग परियोजना के मामले में राष्ट्र्रीय जल संस्थान रूड़की ने प्रवाह अवधि प्रभाव (फ्लो ड्यूरेशन कर्व्स) के २७ बिंदुओं को आधार बनाकर जो सिद्धान्त विकसित किया है, वह उचित है। इसे पूरी गंगा नदी विशेष पर तत्काल प्रभाव से लागू किया जाना चाहिये।

१३. धरती की सतह पर बहनेवाली जल धाराएं शरीर में मौजूद नाड़ी तंत्र की तरह होती हैं। इन पर खड़े किये गये अवरोधों ने गंगा नदी के जल जीवों को तो बीमार किया ही है, उसके आस-पास की आबादी और खेती- वनस्पति पर भी संकट पैदा किया है। टिहरी के भूगोल, अनूप शहर की डॉलफिन, फरक्का बैराज के कारण बिहार के मोकामा-बड़हिया ताल के १०६२ वर्ग कि.मी. ताल क्षेत्र की रबी के संकट इसका प्रमाण हैं। सरकार को चाहिये कि वह देश में पहले से चल रही सभी निजी तथा सरकारी पनबिजली और सिंचाई परियोजनाएं जब तक अपने मूल रूप से प्रस्तावित उत्पादन लक्ष्य को १०० फीसदी प्राप्त नहीं कर लेती, तब तक नदियों पर किसी नयी पनबिजली-सिंचाई परियोजना को मंजूरी न दी जाये। जिन परियोजनाओं को मंजूरी दे दी गयी है लेकिन उनका निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ, ऐसी सभी निजी तथा सरकारी परियोजनाओं को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाये। नीतिगत तौर पर सरकार को तय करना होगा कि वह किसी धारा विशेष के पारिस्थितिकी प्रवाह और जीवंतता को बनाये रखते हुए अधिकतम कितनी बिजली और किन स्थानों पर बनायी जा सकती है। देश को तय करना होगा कि आखिर उसे अपने उपयोग के लिए न्यूनतम कितनी बिजली चाहिये और तद्नुसार बिजली का उपयोग अनुशासित रूप में हो- इसके लिए तंत्र और तकनीकी विकास पर ज़ोर दिया जाये।

१४. भारत में तमाम प्राकृतिक संभावनाओं के बावजूद सरकार ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों तथा अनुशासित उपयोग को लोकप्रिय बनाने में असफल रही हैं। इसके लिए समग्र प्रयास, तकनीकी विकास, उपलब्धता और प्रचार की आवश्यकएता है।

१५. गंगा नदी घाटी क्षेत्र में आजीविका के लिए खेती तथा प्रकृति पर निर्भरता घटाये बगैर न्यूनतम प्राकृतिक दोहन सुनिश्चित करना संभव नहीं है। अत: सरकार गंगा नदी घाटी क्षेत्र में शिक्षा, परंपरागत कारीगरी तथा सेवा उद्यम संबंधी कौशल-क्षमता-विकास तथा रोजगार की विशेष ढांचागत परियोजनाएं तथा पैकेज जारी कर इसे प्रदूषण रहित तीर्थ-पर्यटन और सेवा क्षेत्र के रूप में विकास का स्पेशल रिवर्ज जोन मॉडल विकसित करे।

१६. कई राज्यों में पॉलीथीन कचरे से तैयार पॉलीथीन थैलियों को प्रतिबंधित किया गया है। बावजूद इसके इनका उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। नदियों में आनेवाले कचरे में पॉलीथीन कचरा एक ख़तरनाक अवयव है। सरकार उस पर लगाम लगाये।

१७. गंगा में हर वर्ष लगभग १.१५ लाख टन फर्टिलाइजर तथा कीटनाशक प्रवाहित किये जाते हैं। सरकार कृषि के आधुनिकीकरण को प्रोत्साहित करने की बजाय प्रारंभिक तौर पर कम-से-कम गंगा रिजर्व एरिया में तो भारत की परंपरागत जैविक खेती को व्यापक स्तर पर स्वीकार्य बनाने के लिए अपने खजाने खोल दे। वह जैविक और परंपरागत उत्पादों के उत्पादन से लेकर उचित मूल्य पर बिक्री तक की एक सुनिश्चित व्यवस्था भी करे। इस मांग को जनाभियान के तौर पर क्रियान्वित किया जाये।

१८. सब जानते हैं कि नदियों का पानी सिर्फ पानी नहीं होता। नदी विशेष की मिट्टी, हवा, प्रकाश, वनस्पति, जल जीव, सतह का ढाल और प्रवाह की गति आदि मिलकर नदी विशेष के पानी में विशिष्ट गुणों की रचना करते हैं। गंगा जल इसका अनुपम उदाहरण है। सच्चाई यह है कि अलग-अलग भू सांस्कृतिक क्षेत्र की नदियों को आपस में जोड़ना दो भिन्न ब्लडगृपवाले मनुष्यों के खून को एक के शरीर से दूसरे में प्रवाहित कर विकृति पैदा करने जैसा काम है। इसे समझकर ही स्पेन की सरकार ने अपने यहां प्रस्तावित नदी जोड़ योजना को निरस्त किया। सोवियत संघ में भी नदी जोड़ योजना पारिस्थितिकी पर कुप्रभाव तथा खारे पानी की समस्या के कारण अरबों रुपया फूंक देने के बाद बंद कर देनी पड़ी। इससे सबक लेते हुए प्रधान मंत्रीजी को चाहिये कि वह नदी जोड़ परियोजना को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर समाज को नदियों से जोड़ने का प्रभावी तंत्र बनाने की पहल करें) ताकि आगे आनीवाली सरकारें उस रास्ते पर आगे बढ़ सकें।

ढांचागत मांग

१९. उपरोक्त कदमों-नीतिगत निर्णयों के क्रियान्वयन तथा अनुपालना में जन भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि प्रस्तावित प्राधिकरण में सरकार के साथ-साथ निजी नहीं, बल्कि समुदाय- समाज और प्रकृति का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित हो। प्रमाणिक तौर पर हम कह सकते हैं कि निजी क्षेत्र निजी लाभ के लिए काम करता है, और सरकार, समुदाय तथा प्रकृति सभी के साझे शुभ के लिए काम करते हैं। अत: गंगा का गौरव लौटाने के लिए भी `सरकार-समुदाय-प्रकृति की सहभागिता पर आधारित मॉडल' को अपनाया जाये।
ऋषि प्रकृति का प्रतिनिधि होता है। भारत के चार धामों में से एक - बद्रीनाथ धाम गंगा की मूल भागीरथी तथा अलकनंदा धारा क्षेत्र में स्थित सर्वोपरि तीर्थ स्थल है। इसकी मान्यता निर्विवाद है। अत: हम बद्रीनाथ धाम के पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी अथवा उनके द्वारा नामित व्यक्ति की प्राधिकरण में पदेन सदस्यता हेतु मांग करते हैं।

२०. समाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी ऐसे सामाजिक नेतृत्व को प्राधिकरण में बतौर सदस्य शामिल किया जाये, जिसके पास पानी-पर्यावरण की सामाजिक इंजीनियरिंग तथा जनजुड़ाव का कौशल तथा राष्ट्रीय सरोकार हो।

२१. राज्य स्तर पर गंगा के प्रति निष्ठावान सामाजिक-पानी कार्यकर्ता, जल जीव, कृषि विशेषज्ञ और आवश्यक रूप से सभी धर्मों के एक-एक प्रतिनिधि, संबंधित हाईकोर्ट का एक जज, एक मीडिया प्रतिनिधि, एक संसद प्रतिनिधि तथा संबंधित मंत्रालयों के अधिकारी तथा राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल कर गंगा नदी घाटी प्राधिकरण राज्य संचालन मंडलों का गठन किया जाये। हर हाल में गैर सरकारी सदस्यों की संख्या सरकारी सदस्यों की संख्या से अधिक हो।
नारी का नीर से गहरा रिश्ता है, अत: इन संचालन मंडलों में महिलाओं की सम्मानजनक संख्या में भागीदारी सुनिश्चित हो। प्रत्येक राज्य में संबंधित संचालन मंडलों की सहमति से गठित विधिकएकांश को सिविलकोर्ट के अधिकार प्राप्त हों।

२२. राज्य संचालन मंडलों की तर्ज पर ही प्रत्येक गंगा नदी घाटी के भू सांस्कृतिक क्षेत्र स्तर पर क्रियान्वयन तथा निगरानी समूहों का गठन किया जाये, जिसमें ज़मीनी संबंध रखनेवाले लोकतांत्रिक संगठनों को अधिक संख्या में सक्रिय और जवाबदेह सदस्य के रूप में शामिल किया जाये। ऐसे समूहों का नेतृत्व सयुंक्त रूप से एक सरकारी तथा एक गैर सरकारी प्रतिनिधि के हाथ में हो। गैर सरकारी तथा सरकारी सदस्यों की संख्या का अनुपात तथा महिलाओं की सम्मानजनक संख्या राज्य संचालन मंडलों की भांति ही मान्य हो।

२३. भारत ने कभी अपनी नदियों की नीति बनाने तथा उनके साथ अपने व्यवहार की समीक्षा करने के लिए कुंभ की व्यवस्था बनायी थी; नयी परिस्थितियों में गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के नियमों-नीति तथा निर्णयों को गंगा तथा समाज के अनुकूल बनवाने, उनकी पालना सुनिश्चित करने में सहायता देने तथा गंगा नदी घाटी प्राधिकरण की समीक्षा हेतु सोसायटी पंजीकरण एक्ट के तहत गंगा जन पंचायत की स्थापना की जाये।
जन पंचायत में समाज द्वारा चुने गये जिला पंचायत, नगरपालिका, विधानसभा, संसद के चुनिंदा जनप्रतिनिधि तथा गंगा प्रवाह के तीर्थ स्थानों के चुनिंदा प्रतिनिधियों को आवश्यक रूप से गंगा जन पंचायत का पदेन सदस्य बनाया जाये। पंचायत के नियमों में वर्र्ष में कम से कम दो समीक्षा बैठकों तथा समीक्षा रिपोर्ट तैयार करने का प्रावधान हो। इसके लिए विशेषज्ञों, सामाजिक कार्यकर्ताओं की सदस्यतावाले सलाहकार मंडल गठित कर सकते हैं।

२४. गंगा नदी घाटी प्राधिकरण से लेकर जन पंचायत स्तर तक प्रत्येक स्तर पर आत्म समीक्षा सुनिश्र्चित करने के लिए अंतर्समीक्षा समितियां बनायी जायें।

२५. विवाद की स्थिति में त्वरित तथा निर्णायक कार्रवाई के लिए प्राधिकरण को चाहिये कि वह सर्वोच्च न्यायालय के जज के नेतृत्व में स्पेशल रिवर अपील कोर्ट की स्थापना करे।

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