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पृथ्‍वी दिवस: सदी का सबसे बड़ा संकट ग्लोबल वार्मिंग
Posted on 05 Aug, 2011 11:10 AM

ग्लोबल वार्मिंग यानी जलवायु परिवर्तन आज पृथ्‍वी के लिए सबसे बड़ा संकट बन गया है। इसे लेकर पूरी दुनिया में हाय तौबा मची हुई है। इसको लेकर कई तरह की भविष्यवाणियां भी की जा चुकी है, दुनिया अब नष्ट हो जाएगी, पृथ्वी जलमग्न हो जाएगा, सृष्टि का विनाश हो जाएगा आदि-आदि। इस मुद्दे को लेकर कई हॉलिवुड की फिल्‍में भी बन चुकी हैं, जिसका ताजातरीन उदाहरण फिल्‍म 2012 है। ज्‍यादातर ऐसा शोर पश्चिम देशों से ही उठत

जल संकट का समाधान कैसे?
Posted on 05 Aug, 2011 10:42 AM

बीते दिनों ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टेरी) एवं जल संसाधन मंत्रालय द्वारा दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटेट सेन्टर में आयोजित भारतीय जल गोष्ठी के उद्घाटन भाषण में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने जल संसाधनों में व्यापक सुधार की जरूरत बतायी, उन्होंने कहा कि बढ़ती जनसंख्या और जलवायु परिवर्तन के चलते जल प्रबंधन के क्षेत्र में नई चुनौतियां सामने हैं, जिनका मुकाबला प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए। पानी की समस

drought
जल की बचत और फसलों की उपज बढ़ाने के लिए ड्रिप सिंचाई प्रौद्योगिकी
Posted on 04 Aug, 2011 06:00 PM

भारत में, सिंचित क्षेत्र निवल बुवाई क्षेत्र का लगभग 36 प्रतिशत है। वर्तमान में कृषि क्षेत्र में संपूर्ण जल उपयोग का लगभग 83 प्रतिशत जल उपयोग में लाया जाता है। शेष 5, 3,6 और 3 प्रतिशत जल का उपयोग क्रमश: घरेलू, औद्योगिक व उर्जा के क्षेत्रों तथा अन्‍य उपभोक्‍ताओं द्वारा किया जाता है। भविष्‍य में अन्‍य जल उपयोगकर्ताओं के साथ प्रतिस्‍पर्धा बढ़ जाने के कारण विस्‍तृत होते हुए सिंचित क्षेत्र के लिए जल

<strong>ड्रिप सिंचाई</strong>
आस्था का प्रदूषण
Posted on 04 Aug, 2011 10:33 AM

यह साबित हो चुका है और सरकारी रिपोर्ट का हिस्सा गंगा कार्ययोजना की तकनीक बेहद खर्चीली और भारत क

ग्रीन हाउस की तकनीकी द्वारा सब्जियाँ और फूल उगायें
Posted on 04 Aug, 2011 09:21 AM

किसी भी जैविक क्रिया के लिए उचित पर्यावरण की आवश्यकता होती है। अगर पर्यावरण उचित नहीं है तो जैविक क्रिया कम दर से बढ़ेगी या पूरी तरह से रूक जायेगी। पादप या प्राणी जीवन भी इसी सिद्धान्त से नियंत्रित है। कृषि में फसलों के लिए उचित पर्यावरण प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है जिसमें फलस्वरूप उत्पादकता की उच्चतम सीमा प्राप्त हो सके। इसके लिए फसलों की उचित मौस

&#039;&#039;हमारे मौसम की कुंजी - कार्बन डाइ ऑक्साइड&#039;&#039;
Posted on 03 Aug, 2011 12:46 PM

वायुमंडल में इसकी मात्रा बढ़ जाए तो यह हमारी दुश्मन साबित होगी। लिहाजा दोस्त को दोस्त बनाए रखने

बीमारी बहाओ और भूल जाओ की
Posted on 03 Aug, 2011 12:05 PM

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा है कि भारत की नदियों के पानी की गुणवत्ता के हास में मुख्य योगदान अनुपचारित अथवा आंशिक रूप से उपचारित मल-जल (सीवेज) का होता है। हालांकि यह बात पहले से ही लोगों को पता थी, परंतु सीपीसीबी की विभागीय पत्रिका ने हमारे देश की पतनशील नदी प्रणालियों की कड़वी सच्चाई की पुष्टि कर दी है। पत्रिका के अनुसार प्रतिदिन लगभग 3 अरब 30 करोड़ लीटर मल-जल निकलता है,

नदियों पर संकट
भूजल की कृत्रिम भरपाई
Posted on 03 Aug, 2011 11:28 AM

पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत में सिंचाई, पेयजल और औधोगिक प्रयोगों के लिए पानी की जरूरतें पूरी करने में भूजल पर निर्भरता बढ़ी है। सूखा प्रबंधन के एक प्रभावशाली साधन और कृषि में स्थिरता लानें में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था में भूजल विकास ने एक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लिया है। देश के कुछ भागों में भूजल का दोहन एक नाजुक चरण में पहुंच गया है, जिसके परिणामस्वरूप इस संसाधन क

हवा में घुली मौत
Posted on 03 Aug, 2011 11:02 AM

निजी वाहनों को प्रोत्साहन देने के बजाए बस, रेल आदि आम यातायात के वाहनों को बढ़ावा देना चाहिए। व

परमाणु ऊर्जा- आवश्यकता या राजनीति
Posted on 02 Aug, 2011 01:24 PM

फुकुशिमा के परमाणु विध्वंस से ये साफ हो गया है कि चाहे परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा का कितना भी दावा किया जाए, वो पूरी तरह सुरक्षित नहीं कहे जा सकते। फुकुशिमा में चारों रिएक्टरों में हुए विस्फोट से परमाणु विकिरण कितने बड़े इलाके में पहुँचा है और इसके कितने दूरगामी असर होंगे, इन सवालों का ठीक-ठीक जवाब देने की स्थिति में न तो राजनीतिज्ञ हैं और न ही वैज्ञानिक। ऐसे में भारत में दुनिया का सबसे बड़ा प

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