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कीटनाशकों का नया जाल
Posted on 28 Jan, 2013 02:02 PM कीटनाशकों एवं अन्य रसायनों की वजह से अब मानव समाज भोजन संबंधी विकारों या एलर्जी का शिकार होने लगा है।
क्षमा करें मगर सीवर तक में हैं सियासत
Posted on 25 Jan, 2013 12:32 PM हर समाज को यह समझना होगा कि उसके द्वारा छोड़े जा रहे कचरे का प्रबंधन उसे कैसे करना है। इससे हमें कई अहम चीजों और विषयों के बारे में सीखने को मिलता है। कचरा प्रबंधन की शिक्षा मुझे संयोग से ही मिली थी। चंद वर्षों पहले जिस कमेटी के साथ मैं काम कर रही थी उसे सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि वह नदियों में गंदगी छोड़कर उन्हें नारकीय हालात में पहुंचाने वाले शहर के नालों की सफाई इंतजामों पर राज्य सरकारों की कोशिशों की निगरानी करे। सरकार ने एक कार्ययोजना पेश की। इसमें उन्हें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों को बनाने, मौजूदा प्लांट बेहतर करने, आवासीय कॉलोनियों में नाले-नालियों का निर्माण और कचरे को सीवेज प्लांट तक पहुंचाने वाली व्यवस्था की मरम्मत का काम करना था।

भरपूर पानी का भ्रम
Posted on 25 Jan, 2013 10:59 AM भारत की जनसंख्या बढ़ रही है, उद्योगों में बढ़ोत्तरी है और कृषि उत्पादन बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप ग्रामीण और शहरी, दोनों ही इलाकों में पानी की मांग भी बढ़ रही है। जो नहीं बढ़ रही है, वह है पानी की प्राकृतिक आपूर्ति। मौसम में हो रहे परिवर्तनों से भविष्य में पानी और भी कम हो जायेगा, इसलिए यही समय है कि कोई कारगर नीति बनायी जाए। अभी तक की सरकारी योजनाओं से बहुत ही कम मदद हो पायी है। इसकी एक वजह है कि ह
संकट में भारत का भूमिगत जल
Posted on 25 Jan, 2013 10:17 AM इसे भारत की कुछ अनजानी विडंबनाओं में से एक कह सकते हैं। पिछले कुछ सालों में भारतीय राज्य ने सार्वजनिक सिंचाई एजेंसियों के माध्यम से सतही जल प्रणाली का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया है। इसने सिंचाई प्रणालियों-बांध, तालाब, नहर आदि क
ज़मीन से जुड़ा है जीना मरना
Posted on 21 Jan, 2013 04:36 PM अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि जिन 32 देशों में बड़े पैमाने पर जमीनें इ
जब सजा में बदल जाता है मौसम का मजा
Posted on 19 Jan, 2013 03:51 PM

दुनिया के अनेक देशों में हिमस्खलन संबंधी अलर्ट जारी करने की परंपरा है। पर इस चेतावनियों के बावजूद बर्फ कई बार जा

पानी का हिसाब-किताब
Posted on 19 Jan, 2013 03:46 PM सरकार अपनी ही राष्ट्रीय जल नीति में पानी के निजीकरण को बढ़ावा देने
बद से बदतर होती मनरेगा
Posted on 16 Jan, 2013 03:23 PM देश की बहुप्रतिक्षित योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानि ‘मनरेगा’ बद से बदतर होती जा रही है। ग्राम प्रधान से लेकर अधिकारी तक सभी लूट-खसोट में लगे हैं। मनरेगा के तहत जिनको जॉबकार्ड की जरूरत है उनको न दे करके अपने सगे-संबंधियों को जॉबकार्ड बांटा जा रहा है तथा तालाब केवल कागजों पर ही खोदे जा रहे हैं। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 30 नए काम जोड़कर मनरेगा को मनरेगा-2 क
अभाव एवं बर्बादी से बनती पानी की राजनीति
Posted on 16 Jan, 2013 10:32 AM धरती पर सभी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है मगर किसी के भी लालच के लिए काफी नहीं।– महात्मा गांधी
साधारण - सा जीवन : असाधारण किताबें
Posted on 11 Jan, 2013 03:52 PM

युद्ध की हिंसा से तो जोसेफ बच गए पर अपनी अंतरआत्मा से नहीं। उन्हें ये मंजूर नहीं था कि उनकी कमाई से वसूले कर का इस्तेमाल अमेरिकी सरकार युद्ध के लिए करे। उन्होंने गरीबी में रहने का प्रण लिया ताकि उन्हें सरकार को कर चुकाना ही न पड़े।

सिर पर स्लेट पत्थर की छत और पांव के नीचे अपने ही मल-मूत्र से बनी जमीन! जोसेफ जेंकिन्स का बस ही तो है संक्षिप्त परिचय। श्री जोसेफ ने पन्द्रह साल पहले एक पुस्तक लिखी थी ‘द स्लेट रूफ बाइबल’। 17 साल पहले लिखी थी ‘द ह्यूमन्योर हैंडबुक’। दोनों किताबों ने हजारों लोगों को प्रभावित किया है, प्रेरणा दी है। वे दूसरों को बताते नहीं हैं कि उनकी नीति क्या होनी चाहिए, उन्हें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए। वे खुद ही वैसा जीवन जीते हैं और अपने जीवन की कथा सहज और सरल आवाज में बताते जाते हैं।

जोसेफ जेंकिन्स की अहिंसक यात्रा एक युद्ध से ही शुरू हुई थी। उनके पिता अमेरिकी सेना में काम करते थे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद वे जर्मनी में तैनात थे। वहीं श्री जोसेफ का जन्म सन् 1952 में हुआ था। सेना की नौकरी। हर कभी पिताजी का तबादला हो जाता। बालक जोसेफ हर साल-दो-साल में खुद को एक नए शहर में पाता, नए लोगों के बीच, नए संस्कारों में।
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