जब सजा में बदल जाता है मौसम का मजा

दुनिया के अनेक देशों में हिमस्खलन संबंधी अलर्ट जारी करने की परंपरा है। पर इस चेतावनियों के बावजूद बर्फ कई बार जानलेवा बन जाती है। अमेरिका स्थित कोलराडो एवलांच इन्फार्मेशन सेंटर के अनुसार हर साल अकेले अमेरिका में 20 लोगो और पूरी दुनिया में करी 200 लोग बर्फ की चपेट में आकर अपने प्राण गंवा देते हैं। इस सीजन मे एवलांच की चपेट में आने से भारतीय सेना के आधा दर्जन जवान अपने प्राण गंवा चुके हैं।

दिल्ली में न्यूनतम तापमान का 44 साल पुराने रिकॉर्ड का टूट जाना एक बड़ी खबर है। इधर पारा यहां इतना लुढ़का कि अधिकतम तापमान का पारा दस के नीचे (9.7 डिग्री सेल्सियम) चला गया। सिर्फ राजधानी ही नहीं, देश का पूरी उत्तरी इलाक़ा भीषण ठंड और बर्फबारी की चपेट में है। वैसे तो सर्दियों में पहाड़ों और ऊंचे स्थानों पर पानी के जमे हुए, लेकिन रूई जैसे हलके फाहे का रूप धरने वाली बर्फ स्थानीय फ़सलों की अच्छी पैदावार का शुभ संकेत देती है, वहीं पर्यटकों के लिए मौज-मजे का सामान भी बनती है। पर साथ ही बर्फबारी अनेक संकट भी पैदा करती है। शिमला हो, मसूरी हो, नैनीताल, लाहौल-स्पीति या फिर कुल्लू-मनाली, बर्फ जब इन जगहों पर लगातार कई दिनों तक गिरती है, तो आम जनजीवन ठप्प हो जाता है। हवाई संपर्क ही नहीं, रेल व सड़क संपर्क भी टूट जाते हैं और पर्यटक जहां के तहां फंसकर रह जाते हैं। कई बार यह बर्फ सफेद मौत बन जाती है और जानवरों समेत इनसानी जानों को लील जाती है।

सर्दियों में पारे के शून्य के नीचे लुढ़कते ही ठंड का प्रकोप चौतरफा अपने पैंतरे दिखाने लगता है। मैदानी इलाकों में बर्फ तो नहीं पड़ती, लेकिन कोहरा और शीत लहरे हड्डियों को कंपा डालती हैं। बेशक, पर्वतीय इलाके तापमान के हिमांक तक पहुंचने से पहले तक मैदानी इलाकों की तरह ही दिखते हैं, पर जैसे ही वहां छाए बादल पानी की जगह बर्फ रूपी रूई के गोले बरसाने लगते हैं, वहां की फिजा बदल जाती है। उन स्थानों पर स्थापित मौसम विभाग बर्फ को सेंटीमीटर में नापना शुरू कर देते हैं। सेना के जवान सड़कों को साफ करने के यंत्रों के साथ यातायात को सुगम बनाने के अभियान में जुट जाते हैं, ताकि न सिर्फ पर्यटकों की निर्बाद आवाजाही हो सके, बल्कि किसी आपात स्थिति से निपटने के नजरिए से सड़कों पर वाहनों का आना जाना रुके नहीं। जरूरत से ज्यादा बर्फ पड़ने पर चेतावनी जारी की जाती है। हाई अलर्ट वाले इलाकों की घोषणा होती है, ताकि लोग ऊंचाई वाले उन स्थानों की ओर नहीं जाएं, जहां हिमस्खलन यानी एवलांच खिसकने और बर्फीले तूफान की आशंका होती है। मनाली स्थित हिम एवं अवधाव अध्ययन संस्थान (सासे) हर बार ऐसी ही चेतावनी हिमाचल प्रदेश में जारी करता है। इसी तरह दुनिया के अनेक देशों में हिमस्खलन संबंधी अलर्ट जारी करने की परंपरा है। पर इस चेतावनियों के बावजूद बर्फ कई बार जानलेवा बन जाती है। अमेरिका स्थित कोलराडो एवलांच इन्फार्मेशन सेंटर के अनुसार हर साल अकेले अमेरिका में 20 लोगो और पूरी दुनिया में करी 200 लोग बर्फ की चपेट में आकर अपने प्राण गंवा देते हैं। इस सीजन मे एवलांच की चपेट में आने से भारतीय सेना के आधा दर्जन जवान अपने प्राण गंवा चुके हैं। यह सेंटर कहता है कि एवलांच की चपेट में आए प्रत्येक तीन में से एक व्यक्ति को बचाया जा सकता है, बशर्ते एवलांच गिरने या उसके टूटने की सही समय पर जानकारी मिल जाए।

एवलांच दो तरह के होते हैं : एक -स्लफ्स (केक की तरह नर्म दिखने वाले) और दो, स्लेब (लकड़ी के पटरे की तरह)। स्लफ्स श्रेणी की बर्फ मुलायम होती है और वह ढलानों की तरफ बहती है। स्कीइंग के लिए इसी तरह की बर्फ या एवलांच मुफीद होते हैं। बर्फ का कठिन और खतरनाक चेहरा-स्लैब एवलांच में प्रकट होता है। इस किस्म का एवलांच तब बनता है, जब परत-दर-परत बर्फ कई दिनों तक जमती चली जाती है और बर्फ का एक विशाल ढेर बनने पर कोई बड़ा टुकड़ा टूटकर ढलानों पर तेजी से फिसलकर रास्ते में आने वाली हर चीज को तबाह कर डालता है।

एवलांच के विषय में वर्ल्ड मेटरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन ने जो परिभाषा दी है, उसके मुताबिक जब तापमान शून्य से नीचे हो, हवा अपनी ताकत खो चुकी हो, तो ऊंचे स्थानों पर सितारे की शक्ल में बर्फ के कण धरती पर उतरते हैं और वे बर्फ की सूखी, मुलायम ऐसी गद्देदार सतह बनाते हैं, जो स्कीइंग करने वालों की पहली पसंद बनती है। हालांकि ये स्थितियां लंबे समय तक कायम नहीं रहती हैं। यानी जब किसी गर्म दिन के बाद बर्फ दोबारा जमना शुरू करती है, तो बर्फ के कण लगभग0.5 मिलीमीटर के गोलाकार स्वरूप में सतह पर आकर बर्फ की ठोस परत का निर्माण करते हैं। एवलांच का जीवन मौसम की कई अवस्थाओं पर निर्भर करता है। मसलन, तापमान, आकाश में छाए बादल, हवा की गति और दबाव, पहाड़ी स्थानों पर ढलानों का तीखापान और बर्फ के ढलानों का निर्माण, इसलिए यदि इन सभी चीजों पर सतत निगाह रखी जाए, तो एवलांच के खतरे कम किए जा सकते हैं। यानी चाहें, तो हम बर्फ की सजाएं कम करके, उसे सिर्फ मजे के लिए सीमित कर सकते हैं।

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