पानी का हिसाब-किताब

सरकार अपनी ही राष्ट्रीय जल नीति में पानी के निजीकरण को बढ़ावा देने की पैरवी करती है उससे सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़ा होता है। कहीं ऐसा न हो कि व्यवस्था को चाट रहे कुछ अफ़सर इसे भी पैसा ऐंठने का ज़रिया बना लें। इन सब अंदेशों के बावजूद पानी बचाने और पानी का महत्व समझने के किसी भी विचार या योजना का स्वागत किया जाना चाहिए। जल ही जीवन है कहते-कहते तो हम थक चुके हैं, लिहाजा इस जीवन को बचाने के लिए ही अगर कुछ अच्छे नियम बनते हैं तो उनका पालन किया जाना चाहिए। भले ही वे कठोर हों। पानी के अंधाधुंध दोहन को रोकने और प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए अंततः अब सरकार कुछ संजीदा दिख रही है। सरकार एक ऐसी योजना पर विचार कर रही है जिसके अंतर्गत आयकर रिटर्न की तर्ज पर बड़े उद्योगों को अब वाटर रिटर्न भरना होगा। वाटर रिटर्न भरते समय औद्योगिक उपभोक्ताओं को कई तरह की जानकारियां देनी होंगी। मसलन, उद्योगों ने प्रति यूनिट उत्पादन के लिए जल का कितना उपयोग किया, गंदे पानी की निकासी के लिए क्या-क्या कदम उठाए, बरसाती मौसम में कितना जल संरक्षित किया, पानी के पुनः इस्तेमाल के लिए क्या व्यवस्था की गई और स्वच्छ जल की कितनी खपत की गई इत्यादि। पानी का हिसाब-किताब रखने के अलावा इस योजना का अहम उद्देश्य प्रदूषण को नियंत्रण में रखना भी है। यही नहीं, सरकार विभिन्न औद्योगिक इस्तेमालकर्ताओं के लिए पानी की अलग-अलग कीमतें तय करने पर भी विचार कर रही है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) दस्तावेज़़ में कहा कहा है कि टैक्स रिटर्न की तर्ज पर प्रस्तावित सालाना वाटर रिटर्न में अनेक पैमाने होंगे।

राष्ट्रीय विकास परिषद ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज़़ को अपनी मंजूरी भी दे दी है। दस्तावेज़ में यह भी कहा गया है कि बड़े उद्योगों और कारबारियों के लिए वाटर रिटर्न भरना अनिवार्य किया जाना चाहिए। उद्योगों में पानी का फिर से इस्तेमाल करने और गंदे पानी रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित करने की जरूरत भी इस दस्तावेज़ में रेखांकित की गई है। इसके अलावा योजना में ऐसे कुछ और भी कदम उठाने की बात कही गई है जिनसे न केवल पानी का हिसाब-किताब सुनिश्चित हो सकेगा बल्कि इसकी चोरी पर भी लगाम लगेगी। बहरहाल, बड़े-छोटे उद्योगों द्वारा पानी के बेरोक टोक इस्तेमाल, जबर्दस्त किल्लत और बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर सरकार की यह योजना न सिर्फ अच्छी जान पड़ती है बल्कि कुछ सुखद नतीजे भी दे सकती है बशर्ते इस पर ईमानदारी से अमल किया जाए। योजना कितनी कारगर साबित होगी यह तो समय ही बताएगा लेकिन जिस चिंता और जरूरत के चलते इस योजना पर कदम बढ़ाए जा रहे हैं उसके तहत कुछेक बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

पहली बात तो यही है कि जिस तरह लोग आयकर रिटर्न भरने में हेराफेरी करते हैं, उसे देखते हुए इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि वाटर रिटर्न भरने में भी ऐसा नहीं ही होगा। खास तौर से कारोबारी लोग कर चोरी के लिए जिस तरह के हथकंडे अपनाते हैं, उससे भ्रष्टाचार बढ़ता है यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है। अब जबकि पानी एक बड़ा बाजार बन गया है, जिस देश में नदियों की ख़रीद-फरोख्त होने लगी हो और जहां खुलेआम पानी की कालाबाजारी चल रही हो, वहां वाटर रिटर्न भरने में कारोबारी पूरी ईमानदारी दिखाएंगे, इस पर भी संदेह है। हालांकि यह बाद समस्त उद्योग जगत को लेकर नहीं कही जा सकती लेकिन जो व्यवस्था ईमानदारी इनसान को भी बेईमानी के दलदल में उतरने पर मजबूर कर दे वहां इन संदेहों की गुंजाइश बनती है। लिहाजा इस योजना को भी भ्रष्टाचार की नजर न लगे इसके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

सरकार जो भी योजनाएं बनाती हैं उनमें से अधिकांश योजनाएं इसलिए वांछित नतीजे नहीं दे पातीं क्योंकि उन पर ईमानदारी से अमल नहीं हो पाता। दूसरे, जो सरकार अपनी ही राष्ट्रीय जल नीति में पानी के निजीकरण को बढ़ावा देने की पैरवी करती है उससे सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़ा होता है। कहीं ऐसा न हो कि व्यवस्था को चाट रहे कुछ अफ़सर इसे भी पैसा ऐंठने का ज़रिया बना लें। इन सब अंदेशों के बावजूद पानी बचाने और पानी का महत्व समझने के किसी भी विचार या योजना का स्वागत किया जाना चाहिए। जल ही जीवन है कहते-कहते तो हम थक चुके हैं, लिहाजा इस जीवन को बचाने के लिए ही अगर कुछ अच्छे नियम बनते हैं तो उनका पालन किया जाना चाहिए। भले ही वे कठोर हों।

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