भारत

Term Path Alias

/regions/india

जल की कहानी
Posted on 25 Feb, 2014 03:09 PM
जल ही तो जीवन है,
पानी है गुणों की खान,
पानी है तो सब कुछ है,
पानी है धरती की शान।
पर्यावरण को न बचाया गया,
तो वो दिन जल्द ही आएगा,
जब धरती पर हम इंसान
बस ‘पानी-पानी’ ही चिल्लाएगा।
रुपए-पैसे, धन और दौलत,
कुछ भी काम न आएगा,
यदि इंसान इसी तरह,
पानी को व्यर्थ बहाएगा।
आने वाली पुश्तों का,
कुछ तो हम करें ख्याल,
रोशनी के लिए जतन
Posted on 23 Feb, 2014 04:02 PM आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत के सवा सात करोड़ परिवार आज भी अपने घरों का अंधेरा भगाने के लिए मिट्टी के तेल पर निर्भर है। इस अंधेरी दुनिया को रोशनी देने के लिए शाश्वत ऊर्जा और वैकल्पिक स्रोतों से मदद ली जाए तो यह काम कठिन नहीं है। इस बारे में बता रहे हैं भारत डोगरा।
सामाजिक संगठन और प्रबंध
Posted on 22 Feb, 2014 10:57 AM खेतिहर समाज में पानी के प्रबंध का सारा काम ग्राम स्तर पर ही होता रहा है। इसमें तालाब आदि की योजना बनाना, उसके लिए धन और श्रम जुटाना और फिर उसका सतत रख-रखाव करना-इन तीनों स्तरों पर आज जिसे हम ‘जन भागीदारी’ कहते हैं -उसी का पूरा सहारा लिया जाता था। ग्राम सभा या पंचायत के स्तर पर खड़ा यह बुनियादी ढांचा अंग्रेजी राज के दौर से पूरी तरह नष्ट हो गया था। आजादी के बाद उसे कुछ हद तक वापस लाने का प्रयत्न जरूर हुआ पर मोटे तौर पर वह सरकारी पंचायतों के ढांचे में बदल गया था। कोई भी समाज शून्य में नहीं रह सकता। उसे अपने को व्यवस्थित ढंग से चलाने के ढांचे विकसित करने ही पड़ते हैं। इसमें भी यदि समाज का मुख्य आधार कृषि और पशुपालन है तो उस खेतिहर समाज को मिट्टी, पानी, गोबर तथा वनों के ठीक उपयोग का एक सशक्त ढांचा ढालना ही पड़ता है। इन्हीं संसाधनों पर खेतिहर, पशुपालक, समाज टिका रहता है। इसलिए इन ढांचों में कई तरह के और कई स्तर पर लागू हो सकने वाले नियम-कायदे बनाने पड़ते हैं। फिर इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि इन नियम-कायदों में न सिर्फ सबकी सहमति हो, सब उन्हें अपने ऊपर लागू करने में भी बिना किसी दबाव के सहर्ष स्वेच्छा से आगे आएं। तब समाज अपनी ठीक गति से, अपनी धुरी पर चलता है, आगे बढ़ता है तथा उत्पादन के साधनों का, प्राकृतिक साधनों का बेहतर उपयोग करते हुए अपना विकास करता है।

समाज को चलाने का यह ढांचा तभी व्यवस्थित हो पाता है जब समाज की नींव से लेकर शिखर तक सब स्तर उसमें शामिल हों। इनमें समय के अनुसार कुछ परिवर्तन जरूर आ सकते हैं, कुछ नीतियां यहां-वहां बदली जा सकती हैं पर उसकी मूलधारा वर्षों के साझे अनुभव से ही संचालित होती है।
water management
टिहरी
Posted on 20 Feb, 2014 08:49 AM खोज रहे हैं आज हम
अनंत में गुम हुई
मानवता के अवशेष
हड़प्पा या मोहनजोदड़ो में
नहीं पहुंचे कहीं
भटकते ही रह गए
अनुमानों के बियाबान
मरुथल में
आधुनिक सभ्यता आकांक्षा
फिर लील गई
एक गौरवपूर्ण इतिहास को
जादुई भविष्य के लिए
ध्वंस हो गया है
स्वर्णिम अतीत टिहरी का
साथ ही विह्वल 'आज'
वो मार्ग और भवन भी
जल प्रदूषण (Water Pollution)
Posted on 18 Feb, 2014 08:45 AM जल प्रदूषण जल के ज्योतिर्मय आंचल में, है खिला-खिला सा सृष्टि कमल।
जल ही जीवन का सम्बल, ‘आपोमयं’ जगत है सारा।
यही प्राणमय अंतर्धारा, यही अमिय है इस पृथ्वी का।
अग्नि सोममय रस है उज्ज्वल, सुजला-सुफला बने धरित्री।
असुख अमंगल दूर रहे सब, देवि यही वर दो सबको तुम।
परस तुम्हारा है गंगाजल, जल जीवन का सम्बल है।
जल ही जीवन, सब कुछ सूना है जल के बिन।
हिमयुग में खो जाएगा वसंत
Posted on 14 Feb, 2014 04:23 PM वसंत... इस शब्द के साथ ही रंगों और सुगंधों का एक पूरा मौसम जाग पड़ता है, लेकिन मौसम की बदलती आहटें संकेत दे रही हैं कि जीवन की बस्ती से वसंत के रंग अब अलविदा कहने वाले हैं। विश्व भर में रिकॉर्ड तोड़ शीत का आलम देखते हुए मौसमविद चेतावनी दे रहे हैं कि वासंती मौसम जल्दी ही हिमयुग में तब्दील हो जाएगा...
Ice age
निर्मल भारत अभियान, हरदोई
Posted on 12 Feb, 2014 09:01 AM

1.उद्देश्य:


(अ) ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगो के जीवन स्तर में सुधार लाना।
(ब) ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी परिसम्पति का निर्माण ।
(स) ग्रामीण क्षेत्रो की महिलाओं की अस्मिता एवं मर्यादा हेतु स्वच्छता सुविधाओं का त्वरित गति से आाच्छादन।
पानी में घुलता जहर
Posted on 11 Feb, 2014 01:46 PM

हम जानते हैं कि जल का मुख्य स्रोत बारिश है, चाहें वह नदी हो या नहर या जमीन के नीचे मौजूद पानी का अथाह भंडार। सभी स्रोतों में जल की आपूर्ति बारिश ही करती है। बारिश के पानी को संचय करने के पारंपरिक ज्ञान को हम भुला बैठे थे और आज फिर उस ओर लौट रहे हैं। भारत में भारी बारिश लगभग 100 घंटों में हो जाती है, यानी साल के 8,760 घंटों में हमें सिर्फ 100 घंटों में बरसे पानी से ही काम चलाना है। आज औद्योगिकरण और गहन कृषि तथा शहरीकरण के चलते हमने नदियों और भूजल का अंधाधुंध दोहन किया है।

उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में जल प्रबंधन को लेकर दो मुख्य बदलाव आए हैं। पहला तो यह कि राज्य ने पानी उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, जिससे कई विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न हुई, जैसे समुदायों ने, परिवारों ने, जो पहले पानी के प्रबंधन और संरक्षण की पहली ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेते थे, उन्होंने पानी को बचाने से अपना पल्ला ही झाड़ लिया।

दूसरा, मुख्य बदलाव यह आया कि पहले जैसे बारिश के पानी और बाढ़ के पानी का संचय कर उपयोग में लाया जाता था, उसके विपरीत सतही पानी (मुख्यतः नदियों) और भूजल पर हमारी निर्भरता बढ़ी।

यह बदलाव इसलिए आए क्योंकि उपनिवेशवाद के दिनों में अंग्रेजों ने पानी पर केंद्रीकृत अधिकार जमाया और उसे उद्योगों के विकास और मनचाही खेती के लिए उपयोग में लिया। आजादी के बाद की सरकारें भी इस नीति को ऐसे अपना कर चलाती रहीं।
×