भारत

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कूड़े का रोना
Posted on 03 May, 2014 11:23 AM आज हमारे जीवन को सजाने वाली जिन चीजों से जीवन की सजावट होनी थी, शा
आखातीज से कीजे सूखे की अगवानी की तैयारी
Posted on 02 May, 2014 12:12 PM

2 मई-अक्षय तृतीया पर विशेष


यदि मौसम विभाग ने सूखे की चेतावनी दी है, तो उसका आना तय मानकर उसकी अगवानी की तैयारी करें। तैयारी सात मोर्चों पर करनी है: पानी, अनाज, चारा, ईंधन, खेती, बाजार और सेहत। यदि हमारे पास प्रथम चार का अगले साल का पर्याप्त भंडारण है तो न किसी की ओर ताकने की जरूरत पड़ेगी और न ही आत्महत्या के हादसे होंगे। खेती, बाजार और सेहत ऐसे मोर्चे हैं, जिन पर महज् कुछ एहतियात की काफी होंगे।

इन्द्र देवता ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी है। अगले आषाढ़-सावन-भादों में वे कहीं देर से आएंगे; कहीं नहीं आएंगे; कहीं उनके आने की आवृति, चमक और धमक वैसी नहीं रहेगी, जिसके लिए वे जाने जाते हैं। हो सकता है कि वह किसी जगह इतनी देर ठहर जाएं कि 2005 की मुंबई और 2006 का सूरत बाढ़ प्रकरण याद दिला दें। इस विज्ञप्ति के एक हिस्से पर मौसम विभाग ने अपनी मोहर लगा दी है; कहा है कि वर्ष-2014 का मानसून औसत से पांच फीसदी कमजोर रहेगा। शेष हिस्से पर मोहर लगाने का काम अमेरिका की स्टेनफार्ड यूनिवर्सिटी ने कर दिया है।

पिछले 60 साल के आंकड़ों के आधार पर प्रस्तुत शोध के मुताबिक दक्षिण एशिया में अत्यधिक बाढ़ और सूखे की तीव्रता लगातार बढ़ रही है। ताप और नमी में बदलाव के कारण ऐसा हो रहा है। यह बदलाव ठोस और स्थाई है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारत के मध्य क्षेत्र में होने की आशंका व्यक्त की गई है। बुनियादी प्रश्न यह है कि हम क्या करें? इन्द्र देवता की विज्ञप्ति सुनें, तद्नुसार कुछ गुनें, उनकी अगवानी की तैयारी करें या फिर इंतजार करें?
agriculture
नदी तंत्र और मानवीय हस्तक्षेप
Posted on 02 May, 2014 10:45 AM

विकास गतिविधियों के बढ़ने के कारण नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में मौजूद जंगल कम हो रहे हैं। अतिवृष्टि तथा जंगल घटन

नदी तंत्र
गंगा शुद्धिकरण प्रयासों का लेखा जोखा
Posted on 02 May, 2014 10:23 AM
गंगा नदी के प्रारंभिक जलमार्ग में अनेक बाँधों के निर्माण के कारण जलग्रहण क्षेत्र से परिवहित मलबा, आर्गनिक कचरा तथा पानी में घुले रसायन बाँधों में जमा होने लगा है जिसके कारण बाँधों के पानी के प्रदूषित होने तथा जलीय जीव-जंतुओं और वनस्पतियों पर पर्यावरणीय खतरों के बढ़ने की संभावना बढ़ रही है। बाढ़ के गाद युक्त पानी के साथ बह कर आने वाले कार्बनिक पदार्थों और बाँधों के पानी में पनपने वाली वनस्पतियों के आक्सीजनविहीन वातावरण में सड़ने के कारण मीथेन गैस बन रही है। गंगा, अनादिकाल से स्वच्छ जल का अमूल्य स्रोत और प्राकृतिक जलचक्र का अभिन्न अंग रही है। उसने अपनी उत्पत्ति से लेकर आज तक, अपने जलग्रहण क्षेत्र पर बरसे पानी की सहायता से कछारी मिट्टी को काट कर भूआकृतियों का निर्माण कर रही है तथा मुक्त हुई मिट्टी इत्यादि को बंगाल की खाड़ी में जमा कर रही है। उसने लाखों साल से वर्षाजल, ग्लेशियरों के पिघलने से प्राप्त सतही जल तथा भूमिगत जल के घटकों के बीच संतुलन रख, सभ्यता के विकास को सम्बल प्रदान कर सामाजिक तथा आर्थिक कर्तव्यों का पालन किया है। वह, कछार की जीवंत जैविक विविधता का आधार है।

कहा जा सकता है कि भारत में, मानव सभ्यता के विकास की कहानी, काफी हद तक गंगा के पानी के उपयोग की कहानी है।
गंगा
माटी पुत्र की भेंट
Posted on 01 May, 2014 02:23 PM प्याऊभोपाल-इंदौर मार्ग पर सड़क के किनारे सीहोर से आष्टा और देवास तक के बीच दो-तीन प्याऊ दिख जाएंगे। खजूर के पत्तों और पुरानी चटाइयों के टुकड़ों से बनी छोटी-सी झोपड़ी में रखे मटकों
जल संरक्षण में जन भागीदारी
Posted on 29 Apr, 2014 11:23 AM
हमारी पृथ्वी के सतह का 70 प्रतिशत भाग जलमग्न है। इस जल का 2.5
सत्ता के कुचक्र से जूझते जन आंदोलन
Posted on 29 Apr, 2014 10:51 AM देश के कई हिस्सों में जल, जंगल और जमीन के अधिग्रहण के विरोध में आंदोलनकारी सक्रिय हैं। लेकिन सत्ता में बैठे लोग उन आवाजों की निरंतर अनसुनी कर रहे हैं। ऐसे में करोड़ों लोगों के विस्थापित और बेरोजगार होने का खतरा बढ़ गया है। जायजा ले रहे हैं प्रसून लतांत..
विडंबना है कि देश के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने वाले लोग एकजुट हैं और सत्ता में बैठे लोगों से उनकी गलबहियां है। ऐसे में वंचित वर्ग के लोगों को सरकार से अब कोई उम्मीद नहीं रह गई है। उनके सामने अब अपने हक के लिए आंदोलन के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। आजादी के बाद पिछले छह दशकों में देश के गरीब किसान, मजदूर, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और घुमंतू जनजाति के लोगों के सामने रोजी-रोटी की समस्या विकराल हो गई है। अब वे अपने वजूद बचाने के लिए आंदोलन पर उतर आए हैं। पूरी दुनिया में जमीन और पानी को लेकर संघर्ष जारी है। एक तरफ बड़े-बड़े उद्योगपति-पूंजीपति हैं जो सारे साधनों-संसाधनों पर कुंडली मार कर बैठ जाना चाहते हैं। दूसरी तरफ छोटे किसान, भूमिहीन और वंचित समाज के लोग हैं, जो चाहते हैं कि भूमि पर उनको भी थोड़ा अधिकार मिले। जिससे वे देश, परिवार और समाज के लिए अन्न पैदा कर सकें। विडंबना है कि देश के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने वाले लोग एकजुट हैं और सत्ता में बैठे लोगों से उनकी गलबहियां है।

ऐसे में वंचित वर्ग के लोगों को सरकार से अब कोई उम्मीद नहीं रह गई है। उनके सामने अब अपने हक के लिए आंदोलन के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। आजादी के बाद पिछले छह दशकों में देश के गरीब किसान, मजदूर, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और घुमंतू जनजाति के लोगों के सामने रोजी-रोटी की समस्या विकराल हो गई है। अब वे अपने वजूद बचाने के लिए आंदोलन पर उतर आए हैं। मीडिया और राजनीतिक दलों की निष्ठा भी अब गरीबों और वंचितों के हक को दिलाने में नहीं रह गई है।
जल जीवन है...
Posted on 29 Apr, 2014 08:19 AM जल जीवन है इस धरती का,
जल बिन है सब सूना,
जल बिन फट जाता है,
अपनी धरती मां का सीना,
जल बिन तड़पें नभचर ,
जलचर, थलचर, सारे प्राणी,
जल है अमृत, जल है शक्ति,
बिन जल कृषि सुखानी,
जल बिन ना कल चले,
चले ना धर्म, ना कोई ज्ञान ,
जल नहीं है अनंत काल तक,
जल का रख लो मान !

कमजोर मानसून भी बुरा नहीं
Posted on 28 Apr, 2014 11:27 AM मौसम विभाग सही रहा तो भी 0.1 से 0.2% ही कृषि विकास गिरेगा
सामान्य से पांच प्रतिशत कम मानसून की संभावना जताई गई है इस साल। लेकिन अब ये चिंता की पहले जैसी बड़ी वजह नहीं रही। खाद्यान्न की बड़े पैमाने पर आपूर्ति करने वाले राज्यों ने मानसून पर निर्भरता कम करने के कई इंतजाम किए हैं। नहरों, बांधों से पानी का अच्छा मैनेजमेंट स्थित नहीं बिगड़ने देगा। खाद्यान्नों का स्टॉक भी काफी है।
कैसे बनती हैं झीलें
Posted on 28 Apr, 2014 11:22 AM झीलदेश में तमाम झीले हैं। हरियाणा में भी कई झीलें हैं जहां लोग पिकनिक मनाने और नौका विहार के लिए जाते हैं। इनमें से डबचिक, बारखेट, तिल्यार, सूलतानपुर और चक्रवर्ती झील वगैरह मशहूर हैं
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