भारत

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हवा और शान्ति के हक में कुछ हरित फैसले
Posted on 23 May, 2015 01:38 PM

जितना विकसित शहर, उतनी अधिक पर्यावरणीय समस्यायें। यह अनुभव सौ फीसदी सच है; भारत के महानगर, इसका उदाहरण बनकर सामने आये हैं। इस सच के सामने आने के साथ-साथ महानगर वासियों की चिन्तायें बढ़ी हैं और संचेतना भी। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। किन्तु संवेदना जगाने का असल काम, मीडिया, कुछ याचिका-कर्ताओं और नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने किया है; इस बात से भी शा

Air pollution
भगवान को न्याय हेतु एक न्यायाधिकरण (National Green tribunal)
Posted on 23 May, 2015 12:43 PM

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने पूरे देश में नदी तट व तलहटी से बिना लाइसेंस व पर्यावरणीय मंजूरी क

Arun tiwari
खल्क खुदा का, जैव विविधता इंसानी शिकंजे में
Posted on 23 May, 2015 09:19 AM

अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (22 मई) पर विशेष

Indian biodiversity
विकराल अकाल
Posted on 22 May, 2015 04:15 PM (वे भारत के रत्न ही थे। वर्ष 1907 में देश के अकाल पर उन्होंने जो काम किया, जो कुछ लिखा-कहा, वह सब यही बताता है कि वे भारत रत्न थे। उन्होंने तब अकाल और रेल का सम्बन्ध भी जोड़ा था। देश का अन्न रेलों के जरिए किस तरह खींच कर विलायत भेजा जाता है और फिर किस तरह यहाँ महँगाई बढ़ती जाती है- इस पर मालवीय जी की चिन्ता कितना कुछ बता जाती है। - सम्पादकीय टिप्पणी )
नर्मदा प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रयासों का आगाज
Posted on 22 May, 2015 03:33 PM

हर्ष का विषय है कि मध्यप्रदेश सरकार, इस साल, नर्मदा के किनारे बसे पाँच विकासखण्डों में जैविक खेती के लिए किसानों को रियायती दरों पर जैविक खाद और कीटनाशक उपलब्ध करावेगी। मध्यप्रदेश सरकार का मानना है कि इससे दो फायदे होंगे। पहला फायदा - नर्मदा का पानी प्रदूषण मुक्त होगा। दूसरा फायदा - जैविक खेती से उत्पादन बढ़ेगा। जैविक फसल के अच्छे दाम मिलने से किसानों की आ

आचरण : शिक्षा का पहला चरण
Posted on 22 May, 2015 01:40 PM

समाज में धर्मों का मिलन, सम्प्रदायों की विशेषताएँ और मर्यादाएँ, आश्रम व्यवस्था में आई हुई शिथिल

अध्यात्म की कर्मवीरता
Posted on 22 May, 2015 12:52 PM

यह दुर्भाग्य ही रहा कि सम्पूर्ण दुनिया मृत्यु से इतनी घबराई हुई है कि मृत्यु का परिचय पाने के ल

विस्थापन के बीज
Posted on 22 May, 2015 11:42 AM

ठेले से कुछ दूरी पर खड़े बूढ़े पर उसकी नजर पड़ी। पता नहीं कब से खड़ा था!

गंगा में खनन के विरुद्ध
Posted on 22 May, 2015 10:46 AM

गंगा से जुड़ी एक लोककथा है -
“भगीरथ के कठिन तप के बाद ब्रह्मा जब मान गए कि गंगा को धरती पर जाना चाहिए तो गंगा ने ऐतराज किया और धरती पर जाने से मना कर दिया।
तब ब्रह्मा ने कहा ‘देवी! आपका जन्म धरती के लोगों के दुख दूर करने के लिये हुआ है।’

बाढ़, सूखा और नदी
Posted on 22 May, 2015 09:38 AM

बाढ़ और सूखा कोई नई बात नहीं है। सदियों से हमारा समाज इनके साथ रहना सीख चुका था और इनसे निपटने के लिए उसने अपनी देसी तकनीक भी तैयार कर ली थी जो प्रकृति और नदियों को साथ लेकर चलती थी। लेकिन दिक्कत तब हुई जब हमने प्रकृति और नदियों की उपेक्षा शुरू की, उन्हें बाँधना शुरू किया। इसके बाद से ही बाढ़ और सूखे ने विभीषिका का रूप लेना शुरू कर दिया।
.अकाल और बाढ़ अकेले नहींं आते। इनसे बहुत पहले अच्छे विचारों का भी अकाल पड़ने लगता है। इसी तरह बाढ़ से पहले बुरे विचारों की बाढ़ आ जाती है। ये केवल विचार तक सीमित नहींं रहते, ये काम में भी बदल जाते हैं। बुरे काम होने लगते हैं और बुरे काम अकाल और बाढ़ दोनों की तैयारी को बढ़ावा देने लगते हैं।

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