बिहार

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नेतृत्व मिला मगर टिकने नहीं दिया गया
Posted on 02 Dec, 2011 02:32 PM मधवापुर प्रखंड के बासुकी बिहारी गाँव के युगेश्वर झा यहाँ के विधायक थे और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता होने के साथ-साथ मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक भी थे। वे परिस्थितियों से कभी भी समझौता न करने वाले कर्मठ समाजकर्मी थे और उनके प्रखर विरोधी भी उनकी लगन, मेहनत और ईमानदारी की दाद देते थे। युगेश्वर झा ने पछुआरी टोले वालों की तरफ
इंजीनियरों का किसी की इच्छा-अनिच्छा से वास्ता नहीं होता
Posted on 02 Dec, 2011 02:05 PM चानपुरा रिंग बांध का निर्माण बिहार के सिंचाई विभाग के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर कामेश्वर झा के अधीन हुआ था। वे बाद में बिहार के जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता होकर रिटायर हुए। उनका कहना है, ‘‘...ब्रह्मचारी जी चौधरी टोला के रहने वाले थे और काफी ताकतवर आदमी थे। उनकी इच्छा हुई कि गाँव को सुरक्षित किया जाए तो वह तो होना ही था। यह इलाका उस समय हमारे कार्य क्षेत्र म
बांध पर काम शुरू हुआ-पारस्परिक मतभेद भी सामने आया
Posted on 02 Dec, 2011 01:16 PM इस गाँव में पहले से ही एक जमींदारी बांध हुआ करता था जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। जमींदारी टूटने के बाद यह बांध बिहार सरकार के रेवेन्यू विभाग के हाथ में चला गया। यह खस्ता हालत में था। तय हुआ कि इस जमींदारी बांध को (जो कि चित्र में BA और H होता हुआ MN तक जाता था उसे) बढ़ा कर D C G होते हुए B में वापस मिला दिया जाय। इस रिंग बांध के निर्माण से चानपुरा के पूवारी टोल का अधिकांश भाग बाढ़ से सुरक्षि
चानपुरा रिंग बांध की शुरुआत
Posted on 02 Dec, 2011 10:28 AM गाँव के दोनों टोलों को बाढ़ से हमेशा के लिए मुक्ति दिलवाने के लिए ब्रह्मचारी जी ने एक योजना बनवाई जिसमें 8.5 किलोमीटर लम्बा रिंग बांध बनाने का प्रस्ताव किया गया। बिहार के कैबिनेट में 1980 में चानपुरा रिंग बांध की योजना पास हुई। 1981 में सिंचाई विभाग के झंझारपुर डिवीजन को इसके निर्माण कार्य को चालू करने के लिए सूचित किया गया था मगर झंझारपुर डिवीजन ने इस योजना को हाथ में लेने से इसलिए इनकार कर दिया
इन्दिरा गांधी के योग गुरु-स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी
Posted on 02 Dec, 2011 09:46 AM ऐसी पृष्ठभूमि के गाँव चानपुरा में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी के योगगुरु स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जन्म हुआ था। उनका असली नाम धीरचन्द्र चौधरी था और वे स्वर्गीय बमभोल चौधरी के बेटे थे। 14-15 साल की उम्र में वे गाँव छोड़ कर चले गए थे और लम्बे समय तक उनका कोई अता-पता नहीं लगा था। गाँव और परिवार वालों को यह विश्वास हो चला था कि वे मर गए होंगे।
बिहार में बागमती नदी
Posted on 02 Dec, 2011 09:43 AM

बिहार में इस नदी की कुल लम्बाई 394 किलोमीटर तथा जल ग्रहण क्षेत्र लगभग 6,500 वर्ग किलोमीटर होता है। इस तरह नदी उद्गम से गंगा तक कुल लम्बाई लगभग 589 किलोमीटर और कुल जल ग्रहण क्षेत्र 14,384 वर्ग किलोमीटर बैठता है। बिहार के द्वितीय सिंचाई आयोग की रिपोर्ट (1994) के अनुसार बागमती के ऊपरी क्षेत्र काठमाण्डू के आस-पास सालाना औसत बारिश लगभग 1460 मिलीमीटर होती है जबकि चम्पारण में 1392 मि.मी., सीतामढ़ी में 1184 मि.मी., मुजफ्फरपुर में 1184 मि.मी., दरभंगा में 1250 मि.मी. और समस्तीपुर में 1169 मि.मी. होती है।

बिहार में बागमती से संबंधित पौराणिक या लोक-कथाएं प्रचलन में नहीं हैं मगर यहाँ इसके पानी की अद्भुत उर्वरक क्षमता का लोहा सभी लोग मानते हैं। यहाँ इस नदी को तीन अलग-अलग खण्डों में देखा जा सकता है- उत्तर बागमती, मध्य बागमती और दक्षिण-पूर्व बागमती।

उत्तर बागमती


नेपाल में लगभग 195 किलोमीटर की यात्रा तय कर के यह नदी बिहार के सीतामढ़ी जिले में समस्तीपुर-नरकटियागंज रेल लाइन पर स्थित ढेंग रेलवे स्टेशन के 2.5 किलोमीटर उत्तर में भारत में प्रवेश करती है (चित्रा-1.3)। नेपाल में इस नदी का कुल जल ग्रहण क्षेत्र 7884 वर्ग किलोमीटर है। ढेंग और बैरगनियाँ स्टेशन को जोड़ने वाली रेल लाइन पर बने पुल संख्या 89, 90, 91, 91A और 91B से होकर यह नदी दक्षिण दिशा में चलती है
चानपुरा रिंग बांध
Posted on 02 Dec, 2011 09:20 AM

8.1 चानपुरा-परिचय

पुराणों में बागमती
Posted on 30 Nov, 2011 05:33 PM पौराणिक कथाओं और बौद्ध साहित्य में बागमती का नाम बड़ी प्रमुखता से उभरता है। स्कंदपुराण के हिमवत्खंड के नेपाल महात्म्य में बागमती के बारे में बहुत सी कहानियाँ मिलती हैं।

प्रह्लाद की तपस्या और शंकर के अट्टहास से उत्पन्न बागमती

बागमती कथा
Posted on 17 Nov, 2011 09:08 AM

परिचय

समाधान हेतु उपयुक्त जल नीति
Posted on 09 Mar, 2010 08:27 AM चूँकि जल का स्वभाव ही स्थलाकृति के अनुरूप अपना आकार बदल लेना तथा ऊपर से नीचे की ओर बहना है इसलिए उसके स्वभाव के विपरीत उसपर नियंत्रण कायम करना आंशिक तौर पर ही संभव हो पाता है। ऐसी स्थिति में वर्चस्वशाली व्यक्ति अथवा समूह जल पर इस प्रकार नियंत्रण स्थापित करते हैं कि उसका लाभ तो उन्हें मिले लेकिन नुकसान दूसरों को झेलना पड़े। उदाहरणस्वरूप जलस्रोत के समीप ऊपर की ओर रहने वाले लोग पानी की कमी के दिनों म
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