अरुणाचल प्रदेश

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बांध के खिलाफ लगा एक मोर्चा
Posted on 31 Jan, 2012 10:06 AM

देश में आम जनता द्वारा प्राकृतिक संपदा के लूट और विनाशकारी परियोजना का इतना बड़ा विरोध शायद नर्मदा बांध के बाद सबसे बड़ा विरोध है लेकिन इस ओर न ही सरकारों का ध्यान जा रहा है और न ही बहुचर्चित अन्ना आंदोलन का। भ्रष्टाचार के खिलाफ शायद यह आंदोलन अन्ना द्वारा छेड़े जा रहे लोकपाल बिल लाने के आंदोलन से भी बड़ा है। लेकिन देश में इस तरह के आंदोलन की बहस नहीं हो पाती जो भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़े जाने वाले असली आंदोलन हैं, जो देश को विनाश से बचाने के आंदोलन हैं और जो आम गरीब, ग्रामीण, महिलाओं के नेतृत्व में लड़े जाने वाले आंदोलन हैं।

देश के उत्तर पूर्व के एक राज्य असम के लखीमपुर जिले में निर्माणाधीन लोअर सुबानसिरी को वहां के जनसंगठनों की तरफ से पिछले एक महीने से हजारों की संख्या में चक्का जाम कर बांध निर्माण को रोक दिया है। यह बांध असम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा में ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर बनाया जा रहा है जो कि अपने विकराल रूप के लिए सदियों से जानी जाती है। 14 जनवरी 2012 को असम की सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार द्वारा आंदोलनकारियों को तितर बितर करने के लिए गोली चलाई गई जिसमें 15 लोग घायल हो चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद भी आंदोलन अभी तक थमा नहीं है। इस कड़ाके की सर्दी में हजारों महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर सड़क पर टस से मस होने को तैयार नहीं है। कृषक मुक्ति संग्राम समिति एवं आल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में चला आ रहा यह आंदोलन अब बिल्कुल सड़क पर उतर आया है जिसका समर्थन असम के मध्यम वर्ग एवं बुद्धिजीवी वर्ग को भी मिल रहा है।
अरुणाचल : विकास और आदिम संस्कृति
Posted on 31 Mar, 2011 04:08 PM

हमारे पूर्वजों ने हमारी धरती के वनों, जानवरों और इस समृद्ध जैव विविधता को सहेजा है। हम इन तथाकथ

ब्रह्मपुत्र नदी के कटाव से असम में जबरदस्त भूक्षरण
Posted on 05 Feb, 2010 04:07 PM


असम में ब्रह्मपुत्र नदी के तट के इलाके जबरदस्त कटाव से प्रभावित हो रहे हैं। लगातार हो रहे कटाव से राज्य की करीब चार हजार वर्ग किलो मीटर भूमि का क्षरण हो चुका है और इससे करीब 2,500 गांवो में बसे 50 लाख से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए हैं। एक अनुमान के मुताबिक राज्य में होने वाला यह भूक्षरण करीब 80 वर्ग किलो मीटर प्रतिवर्ष के हिसाब से बढ़ रहा है। इस मामले में राज्य के जल संसाधन विभाग ने 25 संवेदनशील और अति क्षरणीय स्थलों की पहचान की है।

ब्रह्मपुत्र नदी में भूक्षरण
हिमालय के पानी के विरासत को बचाएं - कर्ण सिंह
Posted on 17 Mar, 2009 04:53 PM हिमालय सेवा संघ एवं उसकी सहयोगी संस्थाओं द्वारा हिमालय क्षेत्र में पानी के मुद्दों पर किए गये रचनात्मक एवं आंदोलनात्मक पहल को मजबूत करने की दृष्टि से एक तीन दिवसीय राष्ट्रीय बैठक का आयोजन 17-19 मार्च को नई दिल्ली, बाल भवन में हो रहा है।
पर्वतीय विकास का चश्मा बदलिए
Posted on 31 Jan, 2009 07:34 AM भारत डोगरा

पर्वतीय विकास की विसंगतियों की शुरुआत ही यहां से होती है कि इस अंचल को बाहरी असरदार लोगों ने या तो होटल के रूप में देखा है या संसाधनों के पिटारे के रूप में। अंगरेजों व राजे-रजवाड़ों के दिनों से लेकर आज तक यहां वनों की कटाई और खनिजों का दोहन बदस्तूर चलता रहा है। ऐसे पर्यटन स्थल बनते रहे, जो पहाड़ी लोगों से कटे हुए थे। इन वनों के साथ कितने गांव वासियों का अस्तित्व जुड़ा हुआ है,
जलवायु परिवर्तन निगरानी में मददगार हो सकती हैं शैक प्रजातियाँ
Posted on 04 Sep, 2018 05:08 PM


नई दिल्ली। भारतीय वैज्ञानिकों के एक ताजा अध्ययन में अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में पायी जाने वाली 122 शैक प्रजातियों को सूचीबद्ध किया गया है। इनमें से 16 शैक प्रजातियों का उपयोग जलवायु परिवर्तन की निगरानी के लिये जैव संकेतक के रूप में किया जा सकता है।

स्थायी निगरानी प्लॉट स्थापित करते हुए शोधकर्ताओं की टीम
रेतीली जमीन पर बसा जंगल
Posted on 27 Apr, 2012 11:25 AM इटानगर में ‘मुलई’ नाम से मसहूर जादव पायेंग (50) ने 30 सालों तक 550 हेक्टेयर इलाके में जंगल उगाने का काम किया है। इन्होंने 1980 में जंगल लगाने का काम शुरू किया था। जब गोलाघाट जिले के सामाजिक वानिकी प्रभाग के अरूण चपोरी ने इलाके में 200 हेक्टेयर की भूमि पर वृक्षारोपण की एक योजना शुरू की थी। यहां अर्जुन, वालकोल, इजर, गुलमोहर, कोरोई, मोज और हिमोलु के पेड़ लगाए जाते हैं। 300 हेक्टेयर भूमि में बांस के पेड़ है। प्रकृति के प्रेमी मुलई अपने छोटे से परिवार के साथ इसी जंगल के पास रहते हैं। गाय और भैस को पालकर इन्हीं से अपनी अजीविका भी चलाते हैं।
हिमालय को तबाह करती परियोजनाएं
Posted on 16 Oct, 2010 09:37 AM आज दुनिया-भर में जलवायु-परिवर्तन के कारण संकट के बादल मंडरा रहे हैं, लेकिन अन्य क्षेत्रों के मुकाबले हिमालय के पर्वतीय इलाकों में बढ़ते तापमान के असर साफ नजर आ रहे हैं।

एशिया और हिमालय की महानदियों- सिंधु, गंगा और नूं-के तेजी से पिघलते ग्लेशियर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। जलवायु-परिवर्तन से ग्लेशियर पिघलने, नदी का जलस्तर बढ़ने, बाढ़ आने और बादल फटने जैसी घटनाएं बढ़ जाएंगी। जैसे-जैसे पानी और नदियों की स्थिति में परिवर्तन आएगा, जलवायु और मौसम चक्र का पूर्वानुमान लगाना कठिन हो जाएगा।

दिसम्बर 2008 में छपी अपनी रपट
तबाही की योजनाएँ
अरूणाचल प्रदेश का भूजल परिदृश्य
Posted on 16 Jan, 2010 05:32 PM


* कुल भौगोलिक क्षेत्र: 83,743 वर्ग किमी
* कुल जिले: 13
* कुल ब्लॉक: 59

परशुराम कुण्ड पर कुण्डली
Posted on 06 Nov, 2009 10:41 AM संस्कृति, विरासत और परंपरा बलिदान करिए, द्रुत गति से विकास मार्ग पर चलिए। हमारे विकासवादियों का ये मंत्र अपना असर बखूबी दिखाने लगा है। अब बारी परशुराम कुण्ड की है। अरूणाचल प्रदेश में लोहित नदी पर बन रहे एक बांध के चलते परशुराम कुण्ड अस्तित्वविहीन होने जा रहा है।
परशुराम कुण्ड
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