टीडीएस संबंधी सवाल

इंडिया वाटर पोर्टल पर टीडीएस से संबंधित प्रश्नों के जवाबों का नीचे संपादन किया गया है। टीडीएस संबंधी सवालों का जवाब देने में निम्न समूह शामिल हैं:

श्री एस.एस. रंगनाथन

डॉ. जगदीश्वर राव

प्रो. शिवाजी राव

श्री तरल कुमार

श्री चेतन पंडित

सभी जवाब देने वालों को आईडब्ल्यूपी की ओर से शुक्रिया.

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1.) टीडीएस क्या है ?

टीडीएस का मतलब कुल घुलित ठोस से है।
पानी में मिट्टी में उपस्थित खनिज घुले रहते हैं। भूमिगत जल में ये छन जाते हैं। सतह के पानी में खनिज उस मिट्टी में रहते हैं जिस पर पानी का प्रवाह होता है (नदी/धारा) या जहां पानी ठहरा रहता है(झील/तालाब/जलाशय)। पानी में घुले खनिज को आम तौर पर कुल घुलित ठोस, टीडीएस कहा जाता है। पानी में टीडीएस की मात्रा को मिलीग्राम/लीटर (एमजी/ली) या प्रति मिलियन टुकड़े (पीपीएम) से मापा जा सकता है। ये इकाइयां एक समा हैं। खनिज मूलतः कैल्शियम (सीए), मैग्नीशियम (एमजी) और सोडियम (एनए) के विभिन्न अवयव होते हैं। पानी में खारापन सीए और एमजी के विभिन्न अवयव मसलन कैल्शियम या मैग्नीशियम क्लोराइड, कैल्शियम और मैग्नीशियम सल्फेट( CaSo4, MgCl, etc) के कारण होता है। कम मात्रा के बावजूद कुछ घुले हुए ठोस पदार्थ ख़तरनाक होते हैं। मसलन आर्सेनिक, फ्लूराइड और नाइट्रेट। पानी में इन पदार्थों की स्वीकृत स्तर के कुछ तय मानक हैं। हालांकि फ्लूराइड के सुरक्षित मात्रा के बारे में कुछ असहमतियां भी हैं।

फ्लूराइड और आर्सेनिक जैसे नुकसानदायक रसायनों को छोड़ दिया जाए तो पीने के पानी में कुछ मात्रा में खनिज (टीडीएस) रहने चाहिए लेकिन इनकी मात्रा ज़रूरत से अधिक न हो।

2.) टीडीएस के मानक क्या हैं ?

भारत में बीआईएस10500-1991 मानक लागू हैं। यह मानक विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के मानक के आधार पर बना है। हालांकि इसमें समय-समय पर काफी संसोधन किए गए हैं। इसका कारण है कि हमारे यहां आपूर्ति किया जाने वाले पीने का पानी इतना दूषित हो गया है कि इसमें टीडीएस, कठोरता, क्लोराइड जैसे पदार्थों की मात्रा तय मानक से बहुत अधिक हो चुकी है। ऐसे में इनकी उपस्थिति की स्वीकार्य सीमा बढाई गई। आमतौर पर अगर पीने के पानी में टीडीएस की मात्रा 500एमजी/लीटर से अधिक हो जाती है तो यह अरुचिकर हो जाता है। लेकिन पानी को कोई अन्य बेहतर स्रोत नहीं होने के कारण लोग इस पानी के आदी हो जाते हैं। बीआईएस मानक मानव के लिए पीने के पानी की स्वीकार्य गुणवत्ता तय करता है। व्यावहारिक तौर पर सभी औद्योगिक और कुछ पेशेवर इस्तेमाल के लिए पानी का शुद्धता स्तर काफी अधिक होना चाहिए। अधिकतर मामलों में एक तरह से कोई भी ठोस घुला नहीं होना चाहिए

बीआईएस मानक कहता है कि अधिकतम इच्छित टीडीएस की मात्रा 500एमजी/लीटर और पानी के किसी बेहतर स्रोत के अभाव में अधिकतर अनुमन्य स्तर 2000एमजी/लीटर है। इसी तरह कठोरता यानि कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) का अधिकतम इच्छित स्तर ३00एमजी/लीटर और अधिकतम अनुमन्य स्तर 600एमजी/लीटर है।

संदर्भ
[url=http://www.indiawaterportal.org/tt/wq/courses/Advanced Course on Water Quality.doc][/url]

डब्ल्यूएचओ मानक:

'1000एमजी/लीटर से कम टीडीएस सघनता के स्तर का पानी आमतौर पर पीने के लिए उचित है। हालांकि इस स्वीकार्यता में परिस्थितियों के अनुसार फर्क हो सकता है। पानी, टीडीएस के उच्च स्तरीय स्वाद के कारण पीने योग्य नहीं होता। साथ ही इससे पाइपों, हीटरों, बॉयलरों और घरेलू उपकरणों के ख़राब होने का ख़तरा बढ़ जाता है। (कठोरता का खंड भी देखें)

बेहद कम टीडीएस सघनता वाला पानी भी अपने फीके स्वाद की वजह से पीने लायक नहीं होता है। साथ ही यह अक्सर यग जलापूर्ति प्रणाली के लिए नुकसानदायक भी होता है।

संदर्भ
[url]http://www.who.int/water_sanitation_health/dwq/chemicals/tds.pdf[/url]

यूएस ईपीए मानक:

अमेरिका की पर्यावरणीय संरक्षण एजेंसी (ईपीए) मोटे तौर पर पीने के पानी के दो मानक स्वीकार करती है। इन्हें अधिकतम प्रदूषण स्तर लक्ष्य (एमसीएलजी) और द्वितीयक अधिकतम प्रदूषण स्तर(एसएमसीएल) कहा जाता है। एमसीएलजी सघनता का एक ऐसा स्तर है जिसका मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर नहीं पड़ता। इसमें सुरक्षा का पर्याप्त ध्यान रखा जाता है। दूसरी ओर एसएमसीएल का स्तर एक स्वैच्छिक दिशानिर्देश है जिससे मानव स्वास्थ्य पर कोई ख़तरा नहीं है। ईपीए ने जहां एमसीएलजी के तहत कोई सीमा नहीं तय की है वहीं एसएमसीएल के लिए ऊपरी सीमा 500एमजी/लीटर है। यह सीमा इसलिए तय की गई है ताकि पानी की गंध, स्वाद और रंग में ऐसा प्रभाव न पड़े कि वह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो या पानी की पाइपलाइन या अन्य उपकरणों में जंग, काई, क्षरण जैसी कोई समस्या न पैदा हो। हालांकि एमसीएलजी के तहत टीडीएस की कोई सीमा तय नहीं की गई है लेकिन अधिक टीडीएस वाले पानी में कई हानिकारक पदार्थ हो सकते हैं जिनका स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

बेहद कम टीडीएसः

फीके या बेस्वाद और उपयोगी खनिज की कमी के कारण बहुत कम टीडीएस स्तर वाला पानी भी कई तरह की समस्याएं खड़ी करता है। 80एमजी/लीटर से कम स्तर वाले पानी को आमतौर पर उपयोग के लिए ठीक नहीं समझा जाता।

3.) मापन:

एक सस्ते उपकरण टीडीएस मीटर की मदद से बहुत आसानी से पानी के टीडीएस स्तर को मापा जा सकता है। इसकी कीमत बमुश्किलन 2000 रुपये है और बाद में केवल बैटरी बदलने का ख़र्च आता है। इसका इस्तेमाल कुएं, पाइप या पैकेज्ड पानी और बारिश के पानी के टीडीएस स्तर को मापने में किया जा सकता है। ध्यान रहे कि बारिश के पानी का टीडीएस बेहद कम होता है। पानी के टीडीएस में अचानक आया बदलाव संकेत देता है कि पानी उच्च टीडीएस वाले पानी से प्रदूषित हो रहा है।

4.) शुद्धिकरण

पानी की अशुद्धता को दूर करने के यूवी, यूएफ और अन्य पारंपरिक तरीकों का टीडीएस पर असर नहीं पड़ेगा। इसके लिए केवल रिवर्स ऑसमोसिस ही कारगर होता है।

रिवर्स ऑसमोसिस

रिवर्स ऑसमोसिस यानी आरओ घरों में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाली पानी को स्वच्छ करने की एक मात्र ऐसी प्रणाली है जो घुली हुई अशुद्धता को खत्म कर देती है। अगर टीडीएस की मात्रा एक ख़ास स्तर से बढ़ जाती है तो आरओ की ज़रूरत होती है। (टीडीएस की ऊपरी स्तर क्या है ? इस पर आईडब्ल्यूपी पर हुई चर्चा देखें) अगर आपको लगता है कि सीवेज़,कीटनाशक,भारी धातु या औद्योगिक उत्सर्जन से आपका पानी दूषित हो गया है तब भी आरओ का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

आरओ के साथ एक परेशानी यह है कि इसके लिए काफी पानी की ज़रूरत होती है। यह गंदे पानी को दो भागों में बांटता है और घुले हुए ठोस पदार्थों को एक हिस्से से दूसरे हिस्से में फेंकता है। ऐसे में आरओ से पानी की दो धाराएं निकलती हैं। एक ‘साफ़’ पानी की जिसमें कम टीडीएस और अन्य अशुद्धियां होती हैं। दूसरी गंदे पानी की जो पहले से भी कहीं अधिक गंदा होता है। आमतौर पर आरओ में डाले गए ३ लीटर पानी में एक लीटर साफ़ और दो लीटर गंदा पानी बाहर निकलता है। वैसे आरओ से निकले गंदे पानी का इस्तेमाल फर्श पर पोछा लगाने में किया जा सकता है। लेकिन बहुत कम लोग ही ऐसा करते हैं।

टीडीएस की कमी से पानी का स्वाद और पीएस बदल जाता है। टीडीएस बहुत कम कर देना भी अच्छा नहीं है। कुछ कंपनियां एक मिश्रित मशीन बनाते हैं जिसमें आरओ के साथ-साथ यूएफ या यूवी के गुण भी होते हैं। पानी की भारी मात्रा से घुले ठोस पदार्थों को निकालने के लिए आरओ का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा सूक्ष्म जीवाणुओं को मारने के लिए यूएफ या यूवी का इस्तेमाल किया जाता है लिए इसे घुले ठोस पदार्थ रह जाते हैं। इन दोनों प्रणालियों के मिश्रण से घुले ठोस पदार्थों का निम्न स्तर बनाए रखा जा सकता है। इन दोनों के अनुपात को नियंत्रित किया जा सकता है।

आरओ की कीमत 10,000 से 15,000 रुपये के बीच होती है। आरओ दबाव के साथ काम करता है जिसे एक आंतरिक पंप से पैदा किया जाता है। ऐसे में आरओ के लिए बिजली की ज़रूरत होती है।

अगर पानी में टीडीएस का स्तर 1000 से अधिक हो तो पारंपरिक घरेलू आरओ उतने प्रभावी नहीं भी होते हैं। ऐसे में बारिश के पानी का संरक्षण यानी रेन हार्वेस्टिंग एक स्थायी विकल्प है। ख़ासकर जहां पानी में टीडीएस या कठोरता की मात्रा बहुत ज़्यादा हो। बारिश के पानी में टीडीएस केवल 10-50 मिग्रा/लीटर होता है। पानी को मृदु बनाने से उसके टीडीएस नहीं कम होते। पानी को मृदु बनाने की प्रक्रिया में घुले हुए ठोस में सोडियम का स्थान कैल्शियम या मैग्नीशियम ले लेते हैं जिससे टीडीएस की मात्रा में मामूली कमी होती है।

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इस विषय पर लोगों की टिप्पणियां

 


29 फरवरी, 2008 | जगदीश्वर

प्राकृतिक पानी में घुलित और अघुलित दोनों तरह के ठोस पदार्थ होते हैं। घुले हुए ठोस पदार्थ 0.45 माइक्रोमीटर की छन्नी के पार निकल जाते हैं जबकि अघुलित ठोस पदार्थ रह जाते हैं। टीडीएस को मिग्रा/लीटर या पीपीएम (पार्ट्स प्रति १० लाख) में मापा जाता है। मिग्रा/लीटर एक लीटर पानी में घुले ठोस पदार्थ का भार होता है। दूसरी ओर पीपीएम १० लाख समान भार वाले द्रव में घुले पदार्थ का भार होता है (जो मिलीग्राम प्रति किलोग्राम होता है)

टीडीएस में पीपीएम को जल सघनता से गुणा करने पर एमजी/लीटर में टीडीएस निकाली जाती है। पीपीएम में टीडीएस के सही निर्धारण में पानी के तापमान का भी ख़्याल रखना पड़ता है क्योंकि पानी में घुले पदार्थों की सघनता का तामपान से भी संबंध होता है।

मीठे पानी पर काम करने वाले कार्यकर्ता टीडीएस को एमजी/लीटर में व्यक्त करते हैं। वहीं समुद्री वैज्ञानिक टीडीएस के बजाए खारेपन का इस्तेमाल करते हैं और उसे पीपीएम में व्यक्त करते हैं। चूंकि मीठे पानी की सघनता करीब 1 होती है ऐसे में उसे टीडीएस या मिग्रा/लीटर में व्यक्त करने पर कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता है। जबतक टीडीएस का स्तर 7,000मिग्रा/लीटर तक हो तक तक सुधार की कोई ज़रूरत नहीं होती है क्योंकि यह प्रायोगिक ग़लती के दायरे में आता है। लेकिन अगर टीडीएस इससे अधिक है तो निश्चित रूप से सुधार की ज़रूरत होती है। ऐसे में 1.028 सघनता वाले समुद्री पानी की 35,000 पीपीएम टीडीएस का मान 35,980 मिग्रा/लीटर होगा।

पीने के पानी की मानक तय करने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों मसलन विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ), यूरोपियन यूनियन(ईयू) और अमेरिका की पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी (ईपीए) ने टीडीएस के लिए कोई स्वास्थ्य आधारित दिशा-निर्देश तय नहीं किए हैं। शायद वे मानकर चलते हैं कि उच्च टीडीएस वाली पानी पीने से मानव स्वास्थ्य पर असर नहीं पड़ता। दूसरी ओर स्वाद को ध्यान में रखते हुए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) और भारतीय आयुर्विज्ञान शोध परिषद(आईसीएमआर) जैसी एजेंसियों ने पीने के पानी के लिए 500 मिग्रा/लीटर की सीमा तय की है। किसी वैकल्पिक स्रोत के अभाव में बीआईएस मानक के अनुसार टीडीएस की ऊपरी सीमा 2000 मिग्रा/लीटर है। जबकि आईसीएमआर के मुताबिक यह सीमा 3000 मिग्रा/लीटर है। हालांकि बहुत से लोगों को उच्च टीडीएस वाला पानी ख़राब स्वाद वाला नहीं लगता है। यह बात बहुत कम टीडीएस वाले पानी के साथ भी सही है। अत्यधिक खनिज वाला पानी पीने के आदी लोगों को 500 मिग्रा/लीटर टीडीएस वाला पानी भी बेस्वाद लगता है। पानी के टीडीएस से अधिक इसमें होने वाला बदलाव पेट की गड़बड़ियों का कारण बनता है।

आम प्रयोग में ‘उच्च-टीडीएस जल’ को ‘कठोर जल’ के समानर्थी के रूम में इस्तेमाल किया जाता है। वैज्ञानिक प्रयोग में उच्च टीडीएस जल का मतलब उसमें घुले सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, कार्बोनेट. बाईकार्बोनेट, क्लोराइड, सल्फेट जैसे पदार्थों की घुली मात्रा से है। दूसरी ओर जल की कठोरता से मतलब कैल्शियम और मैग्नीशियम से है जिसे एमजी/लीटर सीएसीओ३ से व्यक्त किया जाता है। कठोरता की मात्रा के अनुसार अगर इसकी मात्रा 60 से कम होती है तो उसे मृदु जल कहा जाता है। 61 से 120 के बीच होने पर थोड़ा कठोर और 121 से 180 के बीच होने पर कठोर और 180 से अधिक होने पर बहुत कठोर कहा जाता है। ऐसे में कठोरता और उच्च टीडीएस को समानार्थक के रूप में न इस्तेमाल करना ही बेहतर है ताकि भ्रम की स्थिति से बचा जा सके। उच्च टीडीएस वाले पानी के मुकाबले बारिश के पानी या कम टीडीएस वाले पानी में पौधे कहीं अच्छी तरह पनपते हैं। सिंचाई के लिए उच्च टीडीएस वाले पानी को कम टीडीएस वाले पानी में बदलना आर्थिक रूप से फ़ायदेमंद नहीं है। समुद्र वैज्ञानिकों की तरह कृषि वैज्ञानिक भी खारेपन को टीडीएस के समानार्थक के रूप में इस्तेमाल करते हैं। अगर सिंचाई के लिए केवल उच्च टीडीएस वाला पानी उपलब्ध हो तो कठोर जल को मृदु जल के ऊपर प्राथमिकता देनी चाहिए। उच्च क्षारीयता और सोडियम, कैल्शियम के उच्च अनुपात वाले पानी से बचना चाहिए क्योंकि यह मिट्टी का पीएच बढ़ाने के साथ उपजाऊपन कम होता है। इससे पौधे के विकास पर असर पड़ता है।

उच्च कैल्शियम वाला पानी पत्तियो पर नहीं छिड़कना चाहिए क्योंकि कैल्शियम कार्बोनेट पत्तियों के रंध्रों को बाधित कर देता है और पत्तियां नष्ट हो जाती हैं। अगर इस तरह के पानी से छिड़काव करना ही हो तो ड्रिपर के मुंह को नियमित रूप से साफ़ किया जाना चाहिए ताकि यह कैल्शियम कार्बोनेट से बाधित न हो। यही बात घरेलू पाइपलाइन औऱ उपकरणों पर भी लागू होती है।

औद्योगिक क्षेत्रों में टीडीएस को लेकर अलग-अलग राय है। लेकिन कुछ उद्योग 1000 मिग्रा/लीटर टीडीएस का इस्तेमाल करते हैं। सिंचाई के उलट बहुत से उद्योग मृदु जल के बजाए भारी जल को वरीयता देते हैं। हालांकि घरेलू या कृषि इस्तेमाल के लिए जल शोधन शायद ही कभी किया जाता हो। लेकिन बहुत सी औद्योगिक प्रक्रियाओं में आयन अदला-बदली के माध्यम से कठोर जल को मृदु जल में और रिवर्स ऑस्मोसिस के ज़रिए उच्च टीडीएस को निम्न टीडीएस वाले जल में बदला जाता है।

डॉ.आर जगदीश्वर राव
पूर्व भूविज्ञान प्रोफेसर
श्री वेंकटश्वर विश्वविद्यालय
तिरूपति, आंध्र प्रदेश 517502
rjagadiswara@gmail.com

28 फरवरी, 2008 |
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