अपशिष्ट जल (बेकार पानी) क्या होता है और यह कैसे उत्पन्न होता है?मनुष्यों द्वारा घरेलू, व्यवसायिक एवं औद्योगिक उपयोग के लिए स्वच्छ जल को इस्तेमाल करने के बाद जो जल उत्पन्न होता है वह अपशिष्ट जल होता है। यह दस्तावेज घरेलू इस्तेमाल के बाद निकलने वाले बेकार जल तक ही केन्द्रित रहेगा। कुल मिलाकर देखा जाय तो, स्वच्छ पानी धुलाई, नहाने एवं टॉयलेट में फ्लश आदि के लिए इस्तेमाल होता है। धुलाई के अतंर्गत खाना पकाने के लिए बर्तनों की धुलाई, सब्जियों एवं खाने की चीजों को धोने, नहाने, हाथों की धुलाई, कपड़ों की धुलाई आदि शामिल होते हैं। इन इस्तेमालों से जो पानी निकलता है उनमें वनस्पति पदार्थ, खाने में इस्तेमाल हुआ तेल, बालों का तेल, डिटर्जेंट, फर्श की धूल, मानव शरीर की धुलाई के बाद चिकनाई युक्त साबुन शामिल होते हैं। इस पानी को ‘‘ग्रे वाटर’’ या मैला पानी कहा जाता है। मानव मलमूत्र को फ्लश करने और धुलाई से निकलने वाले पानी को ‘‘ब्लैक वाटर’’ या सीवेज कहा जाता है। ब्लैक वाटर अर्थात सीवेज के मुकाबले ग्रे वाटर को शुद्ध करना आसान है। हालांकि, भारत में पहले से जारी व्यवस्था के अनुसार सार्वजनिक सीवरों में बहाने से पहले इन्हें मिला दिया जाता है या जिन भवनों/समुदायों की पहुंच सार्वजनिक सीवरों तक नहीं होती है वे अपने यहां निर्मित सीवेज उपचार संयंत्र में बहा देते हैं। एक आवासीय परिसर में कितना अपशिष्ट जल उत्पन्न होता है?केन्द्रीय सार्वजनिक पर्यावरणीय एवं अभियांत्रिकी संगठन (सेंट्रल पब्लिक हेल्थ इनवायर्मेंटल एंड इंजिनियरिंग ऑर्गनाइजेशन-सीपीएचईईओ) द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुसार, स्वच्छ पानी की खपत प्रति व्यक्ति 135 से 150 लीटर प्रतिदिन होनी चाहिए। इसे अधिकारिक तौर पर ‘‘लीटर प्रति व्यक्ति दैनिक’’ (एलपीसीडी) के तौर पर व्यक्त किया जाता है। कुल मिलाकर सार्वजनिक जल आपूर्ति एवं सीवेज संस्थाएं/प्राधिकार पूरे देश में संभावित पानी खपत के लिए पहले वाले आंकड़े का इस्तेमाल करती हैं। जहां पर सीवर कनेक्शन नहीं होता है वहां सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) द्वारा शोधित किए जाने वाले अपशिष्ट पानी की मात्रा इसी आंकड़े के आधार पर (अर्थात कुल निवासी गुणा 135 लीटर) जानी जाती है। हालांकि अधिकांश मामलो में वास्तविक रूप से उत्पन्न होने वाला अपशिष्ट पानी इस आंकड़े से ज्यादा होता है जिससे एसटीपी पर ज्यादा बोझ पड़ता है। यह नियमित तौर पर होता है क्योंकि आवासीय परिसरों/निर्धारित दायरे में रहने वाले समुदायों में पानी की खपत को जांचने के लिए अक्सर पानी के मीटर और प्रवाह मापक उपकरण नहीं लगाए जाते हैं। इसके फलस्वरूप, जब उपकरण लगाया जाता है और रीडिंग की निगरानी की जाती है तो खपत 135 लीटर प्रति व्यक्ति दैनिक के निर्धारित आंकड़े के मुकाबले दोगुना और कई बार तिगुनी होती है। व्यावसायिक परिसरों में उत्पन्न अपशिष्ट जल: इस प्रकार के भवनों में मानव द्वारा खपत केवल ‘‘कामकाजी समय’’ में होती है। यदि कहीं एक से ज्यादा शिफ्ट चलते हैं तो यह खपत करीब 8 से 10 घंटे प्रति शिफ्ट होती है। ऐसी स्थिति में प्रति व्यक्ति प्रति शिफ्ट पानी की खपत 135 लीटर प्रति व्यक्ति दैनिक के हिसाब से मानी जाती है। बेकार जल (सीवेज) के घटक क्या होते हैं?बेकार पानी में वे सभी विघटित खनिज होते हैं जो कि स्वच्छ जल में मौजूद होते हैं और साथ ही ऊपर बताए गए प्रदूषक भी मौजूद होते हैं। ये प्रोटीन, कार्बोहाइट्रेड, तेल एवं वसा होते हैं। ये प्रदूषक सड़ने योग्य होते हैं और सड़ने की प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन खपत करते हैं। इस तरह, ऑक्सीजन की खपत के संदर्भ में इनकी गणना की जाती है, जिन्हें निर्धारित प्रयोगशाला परीक्षण के द्वारा स्थापित किया जाता है। इसे ‘‘बायो डिग्रेडेबल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी)’’ कहा जाता है। कुछ केमिकल जो घरेलू उपयोग के दौरान पानी में मिल जाते हैं वे भी नष्ट होते हैं और ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हैं। यह एक परीक्षण के द्वारा तय किया जाता है जिसे केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) कहा जाता है। आमतौर पर घरेलू सीवेज में औसतन 300 से 450 मिलीग्राम प्रति लीटर बीओडी और सीओडी होता है। सीवेज में कोलीफार्म बैक्टिरिया (ई कोली) भी होते हैं, यदि इस बैक्टीरिया से युक्त पानी का सेवन किया जाता है वह मानव शरीर के लिए नुकसानदेह होता है। ई कोली ऐसा बैक्टिरिया होता है जो कि मानव, पशुओं और पक्षियों जैसे गर्म खून वाले जीवों के आंत में पनपता है। सीवेज की दूसरी विशेषता होती है टीएसएस (टोटल सस्पेंडेड सालिड्स) का ऊच्च स्तर। इसी वजह से सीवेज का रंग काला हो जाता है, इस तरह उसे ‘‘ब्लैक वाटर’’ कहा जाता है। यदि सीवेज को सैप्टिक में डाला जाता है तो उससे बहुत असहनीय बदबू निकलती है। बेकार पानी का उपचार क्यों करें?अधिकतर घरेलू उपयोग के लिए पेयजल गुणवत्ता वाले पानी की जरूरत नहीं होती है। उदाहरण के तौर पर टॉयलेट में फ्लश करने के लिए या फर्श, बाड़े या सड़कों की धुलाई और बागों में सिंचाई के लिए पीने योग्य पानी की जरूरत नहीं होती है। ऐसी स्थिति में जहां स्वच्छ जल की लगातार कमी हो रही है और देश में भारी मात्रा में उत्पन्न होने वाले सीवेज का उपचार नहीं किया जा रहा है, बल्कि वे बिना रूकावट झीलों, नदियों और भूजल को प्रदूषत कर रहे हैं, उनका अवश्य उपचार किया जाना चाहिए। भूमिगत सीवेज प्रणाली के अलावा किसी भी सीवेज को बगैर उपचार के किसी नाली में या खुली जमीन में डाला जाता है तो वह कानूनन अपराध है और इसके लिए देश के सभी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कानूनों के अनुसार मुकदमा चलाया जा सकता है। इसलिए, सीवेज को आवश्यक रूप से ठीक तरीके से उपचार किया जाना चाहिए और फिर उन विभिन्न कामों के लिए पुनः उपयोग/रिसाइकिल किया जाना चाहिए जिनके लिए पीने योग्य पानी की जरूरत नहीं होती है। रिसाइकलिंग/पुनः प्रयोग से स्वच्छ जल की जरूरत में लगभग 50 से 60 फीसदी तक की कमी आ सकती है। ऐसे परिदृश्य में जहां स्वच्छ जल की उपलब्धता ही संदेह में वहां यह काफी अहम है। उपचार किया गए सीवेज को कैसे पुनः प्रयोग/रिसाइकिल किया जा सकता है?इसके लिए इस तरह से पाइपलाइन डालने की जरूरत होती है जो कि किसी आवासीय/वाणिज्यिक भवन के छत पर स्थित दो तरह के भंडारण टंकी से जल आपूर्ति करे। एक भंडारण टंकी में स्वच्छ जल भरा जाय जो कि बाथरूम और रसोई के लिए पानी आपूर्ति करे जहां उसे पीने, पकाने, धुलाई करने और नहाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। दूसरी टंकी में उपचार किया गया सीवेज जल भरा जाय जिसे सभी टॉयलेटों में फ्लश टंकी से और उन जगहों पर जोड़ दिया जाय जहां पानी को बाड़े, फर्शों की धुलाई और बागवानी के लिए उपयोग किया जा सके। बेकार पानी का कैसे उपचार किया जाता है?मैला पानी (ग्रे वाटर) को यदि अलग टंकी में भंडारण किया जाता है तो उसका उपचार करके उसे सैप्टिक में डालने से रोका जा सकता है, और फिर उसका क्लोरीनीकरण करके कार्बन फिल्टर से निर्धारित तरीके से छानकर उसे अलग टंकी में भरा जा सकता है, जहां से उसे टॉयलेटों में फ्लश करने और अन्य ऐसे उपयोग में लाया जा सकता है जिसके लिए स्वच्छ या पेयजल की जरूरत नहीं होती है। हालांकि, मौजूदा व्यवस्था यह है कि ग्रे वाटर और ब्लैक वाटर को एक साथ मिलाकर सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) में उपचार किया जाता है। यह व्यवस्था इसलिए प्रचलन में है क्योंकि इससे दो अलग टंकी बनाने के खर्च में कमी आती है क्योंकि किसी भी भवन में जगह का ज्यादा महत्व होता है। अतिरिक्त जगह की जरूरत के बावजूद ग्रे वाटर उपचार को गंभीरता से क्यों नहीं लिया जाता है?एक निवासी की दृष्टि से यह काफी उपयोगी है क्योंकि इससे निवासी की जल सुरक्षा बढ़ती है। एक बिल्डर की प्राथमिकता बिल्कुल अलग होती है, क्योंकि उपचार व्यवस्था में लगने वाले जगह को खरीददार को नहीं बेचा जा सकता, तो वह उस पर विचार नहीं करेगा, इसके बजाय बिल्डर ग्रे वाटर और सीवेज को एक ही एसटीपी में डाल देगा। इससे बिल्डर की लागत बचती है। जबकि यदि निवासियों के दृष्टिकोण से देखा जाए तो एसटीपी के काम न करने की स्थिति में अलग ग्रे वाटर उपचार प्रणाली ज्यादा सुविधाजनक होता है। जब आप इसे पढ़ें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि एसटीपी असफल क्यों होते हैं। सीवेज उपचारसीवेज का उपचार प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक विधि पर आधारित होता है, अर्थात सूक्ष्म जैविक क्रिया के माध्यम से। जब सीवेज से भरी टंकी में तैरते हुए गादों और अघुलनशील तत्वों की छंटाई करने के लिए लगातार हवा पंप किया जाता है तो उसमें मौजूद सूक्ष्म जीव सक्रिय हो जाते हैं। ये जीवाणु कीचड़ में मौजूद होते हैं जो कि सीवेज का काफी हिस्सा बनाते हैं, और वे सीवेज में प्रदूषकों का खपत करते हैं, जबकि अंदर डाले जाने वाले हवा से वे जीवित रहते हैं और बढ़ते रहते हैं। यह एक समय प्रमाणित प्रणाली (टाइम टेस्टेड सिस्टम) होती है जिसे दुनिया भर में ‘‘एक्टिवेटेड स्लज प्रोसेस (एएसपी)’’ अर्थात ‘‘सक्रिय कीचड़ प्रक्रिया’’ कहा जाता है। यह दुनिया भर में सबसे पुरानी पद्धति है और दुनिया भर में इसी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। इस एरोबिक प्रक्रिया पर आधारित एसटीपी में उपचार के निम्नलिखित प्रमुख चरण शामिल होंगे: क) प्राथमिक उपचार:इस चरण में, गंदे सीवेज से प्लास्टिक बैग, पत्तियों, डंडियों, कागज आदि तैरते हुए गाद/अघुलनशील गंदगी की छंटाई की जाती है। ख) द्वितीयक उपचार:इस चरण में, जीवाणुओं को सक्रिय करने के लिए सीवेज में ऑक्सीजन मिलाया जाता है, जो कि प्रदूषण लोड का उपभोग कर लेते हैं और तब वह कीचड़ (बायोमास) बन जाता है। अब हवा युक्त सीवेज और कीचड़ को अलग कर लिया जाता है ताकि कीचड़ को अलग करके फेंकने के लिए सुखाया जा सके। इस कीचड़ को खेतो में कंपोस्ट के तौर पर उपयोग किया जा सकता है। कीचड़ से अलग हुए पानी को क्लियर वाटर टैंक (अर्थात साफ पानी की टंकी) में भेजा जाता है। ग) तृतीयक उपचार:साफ हुए पानी में बचे हुए अन्य अशुद्धता एवं बीओडी व सीओडी के अधिकांश हिस्से को निकालने के लिए प्रेसर सैंड फिल्टर एवं सक्रिय कार्बन फिल्टर के माध्यम से पानी को छाना जाता है। अंततः क्लोरीनीकरण या पराबैगनी प्रकाश युक्त ओजोनीकरण के माध्यम से पानी में मौजूद जीवाणु को समाप्त किया जाता है। तब तृतीयक स्तर पर उपचार हुए पानी को निर्धारित भंडारण टंकी में भरा जाता है जहां से उसे टॉयलेट में फ्लश करने, सड़कों व बाड़े की धुलाई करने व बागवानी के लिए इस्तेमाल किया जाता सकता है। भारत में ज्यादातर एसटीपी अपने बुनियादी स्वरूप में एएसपी व्यवस्था पर आधारित हैं। ऐसे एसटीपी में अत्यधिक उतार चढ़ाव की संभावना (जो कि भारत में अक्सर होता है) रहती है और इसके फलस्वरूप गैर-उपचारित सीवेज और अन्य संबंधित समस्याएं पैदा होती हैं। क्या सीवेज उपचार करने की कोई अन्य प्रक्रिया भी उपलब्ध है?क- अभी एक नयी पद्धति जिसे एमबीआर प्रणाली (मेंब्रेन बायो रिएक्टर प्रणाली) कहा जाता है, जो कि बेहतर प्रणाली है और यह काफी लोकप्रिय हो रहा है। यह एक कॉम्पैक्ट अपशिष्ट उपचार प्रणाली है जो कि कीचड़ (बायोमास) का मेंब्रेन अलगाव के साथ जैविक सड़न प्रक्रिया दोनो करता है। ऊपर बताए गए एएसपी प्रणाली से ज्यादा कॉम्पैक्ट करने के लिए मेंब्रेन कीचड़ को कॉम्पैक्ट और गाढ़ा करता है (यह द्वितीयक और तृतीयक उपचार एक ही चरण में पूरा कर लेता है)। इसके बाद यह बहुत कम कीचड़ भी उत्पन्न करता है। सबसे अच्छी बात है कि यह इनपुट लोड उतार चढ़ाव के मामले में एएसपी प्रणाली की तरह ज्यादा संवेदनशील नहीं है। एक एमबीआर प्रणाली के लिए कुशल ऑपरेटर (संचालक) की जरूरत होती है। जबकि, ऑपरेटर की गलती और खराब संचालन को रोकने के लिए इसे स्वचालित किया जा सकता है। ख- दूसरा दिलचस्प प्रणाली जर्मनी में विकसित हुआ है जिसे डेवाट्स (विकेंद्रित जल उपचार प्रणाली) कहा जाता है। यह एरोबिक और एनारोबिक उपचार दोनों का संयोजन होता है। यह कम लागत वाली प्रणाली है और इसमें एएसपी की तरह ऑपरेटर की जरूरत नहीं पड़ती है। इस प्रक्रिया में कोई सचल हिस्सा नहीं होता है और यह प्रणाली के एनारोबिक हिस्से से मिथेन गैस प्रदान कर सकता है जिसे खाना पकाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। डेवाट्स प्रणाली का विकास विकासशील अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखकर किया गया है जहां पारंपरिक एएसपी आधारित एसटीपी के संचालन के लिए कुशल ऑपरेटर रखना कठिन होता है। डेवाट्स से उपचार किए गए पानी को पुनः प्रयोग/रिसाइकिल करने के लिए फिर भी तृतीयक उपचार की जरूरत पड़ती है, और प्रणाली के इस हिस्से (तृतीयक उपचार) के लिए ऑपरेटर की जरूरत होती है। ग- रेड बेड सीवेज उपचार प्रणाली: यह बहुत ही इको फ्रेंडली प्रणाली है। इसमें सीवेज को एक निर्मित नमभूमि में डाला जाता है जहां कुछ खास किस्म के जलीय पौधे रोपे जाते हैं और वे हवा से ऑक्सीजन अवशोषित करके अपने जड़ों के माध्यम से निकालते हैं और इससे जीवाणु जीवित रहकर सीवेज को साफ करते हैं। सामान्यतया, अंतिम शोधन प्रक्रिया के लिए इसे डेवाट्स प्रणाली के साथ जोड़ दिया जाता है। जबकि यदि उपचारित सीवेज को बागवानी के बजाय अन्य उपयोग करना हो तो इस प्रणाली में एक तृतीयक उपचार प्रणाली की जरूरत पड़ती है। इसमें एक दोष यह है कि इसे कार्य करने के लिए काफी जमीन की जरूरत होती है और जब जगह की इतनी कमी है तो वहां इसे स्थापित करना कइिन होता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यदि गंदा पानी ढलान युक्त बहाव के साथ ले जाया जाता है तो इसे संचालित करने के लिए कोई बिजली की जरूरत नहीं होती है। सीवेज उपचार की प्रक्रिया में ‘‘एरोबिक’’ और एनारोबिक प्रक्रियाओं के बीच क्या अंतर है?जैसा कि ऊपर बताया गया है कि एरोबिक प्रक्रिया वह होती है जहां जीवाणु सीवेज की सफाई करते हैं जिसे कार्य करने के लिए और बढ़ने के लिए हवा (ऑक्सीजन) की आपूर्ति करनी पड़ती है, ताकि सीवेज को साफ किया जा सके। एनारोबिक प्रक्रिया वह होती है जिसमें विभिन्न किस्म के जीवाणु सक्रिय हो जाते हैं। ये ऐसे बैक्टिरिया/जीवाणु होते हैं जिन्हें हवा की जरूरत नहीं होती है और बगैर हवा वाले वातावरण में संचालित होते हैं (इसलिए इन्हें एनारोबिक कहा जाता है)। इस प्रकार के बैक्टीरिया मीथेन उत्पन्न करते हैं और अपशिष्ट/पर्यावरणीय अभियांत्रिकी उद्योग में इन्हें ‘‘मीथेनोजेंस’’ कहा जाता है। ज्यादातर, एनारोबिक उपचार में सामान्यतया एरोबिक प्रक्रिया का पालन किया जाता है और जहां अपशिष्ट जल में बीओडी और सीओडी का स्तर बहुत ज्यादा होता है वहां यह संयोजन इस्तेमाल होता है। ऐसी परिस्थिति में, एनारोबिक प्रणाली बीओडी और सीओडी को एक स्तर तक कम करता है जबकि एरोबिक प्रक्रिया उसे उस स्तर तक कम करता है जहां से तृतीयक उपचार चरण के माध्यम से उपचारित पानी का अंतिम शोधन किया जा सके। एक स्थापित एसटीपी में किस प्रकार की समस्याएं आ सकती हैं?सबसे आम समस्या जो आती है वह निम्नलिखित है और यह पिछले चार सालों में एसटीपी के अनौपचारिक सर्वेक्षण (जल उपचार संयंत्र सहित) पर आधारित है। क. एक एसटीपी चालू करने के प्रारम्भ में सीवेज उपचार में असफल रहता हैएक एसटीपी को उस पूरे सीवेज के लिए डिजाइन किया जाता है जब एक भवन या परिसर सभी लोग रहने लगे। सब लोगों के रहने की प्रक्रिया में साल या उससे कहीं ज्यादा लग जाते है। इस अवधि में जब रहने वाले लोगों की संख्या 30 फीसदी से भी कम हो सकती है और साल भर में या उससे ज्यादा समय में लोग धीरे-धीरे रहने लगते हैं। इसके फलस्वरूप शुरूआत में आने वाला सीवेज एसटीपी के संचालन के लिए आवश्यक न्यूनतम लोड प्रदान नहीं करता है। इससे ऐसी परिस्थिति पैदा होती है जिसे सिर्फ ‘‘सीवेज अंदर और सीवेज बाहर’’ कहा जाता सकता है। कई एसटीपी जो इस प्रकार की परिस्थिति का सामना करते हैं उन्हें स्थापित होने में और उपचारित सीवेज प्रदान करने में काफी समय लग जाता है। कई बार तो कमजोर या गलत संचालन के कारण एसटीपी स्थापित ही नहीं हो पाते हैं। ख. एसटीपी का खराब डिजाइन/गलत डिजाइनअक्सर एसटीपी ऊपर बताई गई पहली समस्या से निपटने के बाद भी कार्य नहीं कर पाता है क्योंकि (क) संतुलन टंकी का आकार छोटा हो या; (ख) हवा वाली टंकी छोटी हो या साफ करने वाला यंत्र गलत डिजाइन किया गया हो या; ग) एसटीपी की डिजाइन की गई मात्रा से ज्यादा सीवेज का प्रवाह हो। ऊपर (क) एवं (ख) में वर्णित हिस्से एएसपी प्रणाली के प्राथमिक और द्वितीयक उपचार के हिस्से होते हैं। ग. एसटीपी का लगातार खराब संचालनदूसरी आम विशेषता यह होती है कि संयंत्र के संचालन एवं रखरखाव में लगी एजेंसियों द्वारा संयंत्र को संचालित करने के लिए रखे जाने वाले वाले अधिकांश कर्मचारी अनपढ़, अप्रशिक्षित होते हैं। इसके अलावा संयंत्र की निगरानी करने वाले लोगों को संचालन एवं रखरखाव के बारे में जानकारी नहीं के बराबर या बहुत कम होती है। ऐसी एजेंसियां संचालन एवं रखरखाव के लिए सामान्यतया निवासियों से उतना की कीमत वसूलती है हैं जितना वे सहन कर सकें। अच्छी तरह प्रशिक्षित कर्मचारियों एवं अनुभवी सुपरवाइजरों वाली कंपनियों द्वारा अपनी विशेषज्ञता के लिए वसूले जाने वाले खर्च को निवासी एसोसिएशन के लोग नहीं देना चाहते हैं। इस तरह वे अच्छी तरह संचालित किए जाने वाले जल संयंत्रों की सेवा से वंचित रह जाते हैं। लोग अक्सर यह महसूस नहीं करते कि जिस खर्च को वे सस्ता समझते हैं वह बेकार ही जाता है क्योंकि सीवेज का अधूरा ही उपचार हो पाता है। घ. एसटीपी से बहुत खराब गंध/बदबू निकलनातमाम आवासीय समुदायों और यहां तक की व्यावसायिक भवनों जहां पर एक एएसटीपी का संचालन होता है वहां यह शिकायत आम होती है। अक्सर यह बदबू बहुत ज्यादा और असहनीय होती है। यह उपरोक्त बताए गए समस्याओं में किसी एक या सभी (1 से 3) की वजह से होती है। ङ. एसटीपी में शोर का ऊंचा स्तर होनाअक्सर कई बार आवासीय भवनों के लोग एसटीपी से निकलने वाले ज्यादा शोर को कम करने के लिए विशेषज्ञों की मदद लेते हैं जिससे उन्हें पूरे दिन परेशानी होती है और खासकर रात में उससे उनकी नींद खराब होती है। इन समस्याओं को कैसे ठीक किया जा सकता है या उनसे बचा जा सकता है?क. पानी एवं अपशिष्ट जल के उपचार के क्षेत्र में प्रमुख कंपनियों के पास हिस्सों वाले आधुनिक डिजाइन वाले एसटीपी संयंत्र उपलब्ध होते हैं। ऐसी कंपनियों के डिजाइन मानक होते हैं, उदाहरण के तौर पर जिस एसटीपी की क्षमता 150 किलोलीटर प्रतिदिन (केएलडी) सीवेज उपचार करने की है वह तीन ईकाई वाली एसटीपी हो सकती है जिसमें से हरेक की क्षमता 50 केएलडी होगी। ऐसे संयंत्र शुरूआत में निकलने वाले कम लोड को एक ईकाई चलाकर संभालने में सक्षम होंगे। जबकि बाद में सीवेज का लोड बढ़ने पर अन्य ईकाइयों को चालू किया जा सकता है। कई इकाईयों वाले (मॉडूलर) संयत्रों की यह भी अवधारणा होती है कि यदि कोई एसटीपी बंद हो जाए तो भी सीवेज उपचार का काम चलता रहेगा, जबकि ऐसा शायद ही कभी होता है जब सभी इकाईयां एक साथ बंद हो जाएं। संक्षेप में कहा जाए तो हमेशा विकल्प मौजूद रहता है। अब कई सालों से, कुछ कंपनियां जैविक एजेंट प्रस्तुत कर रही हैं जिससे यदि आने वाले सीवेज में जैविक एजेंट मिला दिया जाए तो इन समस्याओं को सुलझाने में मदद हो सकती है। तो मॉडूलर एसटीपी लगाए जाएं और नियमित जैविक एजेंट इस्तेमाल किया जाए। ख. यह भी उतना ही अहम है कि समुदायों द्वारा स्वच्छ पानी इस्तेमाल में नियंत्रण रखा जाए, ताकि एसटीपी पर निर्धारित क्षमता से ज्यादा बोझ न पड़े। इसमें हरेक महत्वपूर्ण बिंदुओं पर पानी का प्रवाह (खपत) मापने के लिए पानी का मीटर लगाया जाए और इस तरह एसटीपी पर लोड बढ़ने से रोकने के लिए ज्यादा स्वच्छ पानी इस्तेमाल करने पर कार्यवाही की जाए। स्वच्छ पानी के अधिक खपत पर नियंत्रण रखा जाए और इस तरह एसटीपी को ओवरलोड होने से बचाया जाय। ग. बिल्डरों से पानी या सीवेज उपचार संयत्र के डिजाइन या निर्माण में विशेषज्ञता की उम्मीद नहीं की जाती है। जबकि अपनी जानकारी को ठीक करने के लिए वे अच्छी तकनीकी अनुभव वाले और अच्छे ट्रैक रिकार्ड वाली प्रतिष्ठित पर्यावरणीय अभियांत्रिकी कंपनियों से गठबंधन कर सकते हैं। ऐसा शायद ही होता है क्योंकि बिल्डर की रुचि तैयार प्रोजेक्ट को बेचने में और प्रोजेक्ट को निवासी एसोसिएशनों को जल्द से जल्द सौंपने में होती है। ऐसे में अक्सर पानी के संरचनाओं का वास्तविक एवं सफल संचालन का प्रदर्शन नहीं किया जाता है। अधिकांश बिल्डर छोटी, स्थानीय कंपनियों से गठबंधन कर लेते हैं जिनके पास अपशिष्ट जल उपचार बहुत कम जानकारी व विशेषज्ञता होती है, लेकिन वे बहुत ही कम कीमत पर कुछ संरचना लगा देते हैं। फलस्वरूप एसटीपी का खराब/गलत संचालन होता है और सीवेज बिना उपचार के ही रह जाता है और उनसे असहनीय बदबू आती है। किसी प्रतिष्ठित आपूर्तिकर्ता से ही एसटीपी लगवाया जाए और उनका संचालन एवं रखरखाव कुशल प्रशिक्षित पेशेवर टीम को ही सौंपा जाए। घ. इनपुट लोड में उतार चढ़ाव होना भी एसटीपी ठीक से काम नहीं करने का एक प्रमुख कारण होता है। आवासीय समुदायों में सीवेज का प्रवाह हमेशा एक समान नहीं होता है। उनमें सुबह के समय ज्यादा प्रवाह (जब निवासी कामकाज में जाने की तैयारी करते हैं) होता है, बाद में दिन में बहुत कम या नगण्य प्रवाह होता है और फिर शाम को फिर से प्रवाह बढ़ जाता है। कच्चा सीवेज को संतुलन टंकी (ऊपर बताया गया) में एकत्र किया जाता है, जिसका आकार 6 से 8 घंटे के सीवेज प्रवाह को समाये रखने की होनी चाहिए। इससे संतुलन टंकी में एकत्र सीवेज को एकसमान रूप से छोड़ा जाता है, इस तरह एसटीपी पर इनपुट लोड के उतार चढ़ाव को रोका जा सकता है। कच्चे सीवेज के संतुलन टंकी के मामले में कोई समझौता न किया जाए। ङ. एसटीपी में ज्यादा शोर पंप, वायु ब्लोअर, वायु कंप्रेसर आदि जैसे बिजली के मोटर से चलने वाले उपकरणों के संचालन की वजह से होता है। आज भी बाजार में पुराने डिजाइन वाले पंप, ब्लोअर, कंप्रेसर आदि बहुत ही कम कीमत पर उपलब्ध हैं और ज्यादातर एसटीपी में इन्हीं उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। आधुनिक और विश्व स्तरीय पंपो एवं रोटरी मोटर वाले उपकरणों के मुकाबले ऐसे उपकरणों में शोर का स्तर काफी ज्यादा होता है। ऐसे आधुनिक उपकरण अब भारत में भी उपलब्ध हैं, जो कि बगैर शोर वाले और बहुत ही कार्यक्षम होते हैं। पुराने डिजाइन वाले उपकरण ज्यादा शोर करने के साथ-साथ ज्यादा बिजली की भी खपत करते हैं। भारत में लागू कानून के अनुसार आवासीय इलाकों में दिन के समय (सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक) 55 डेसिबल तक का शोर मान्य है, और रात के समय (रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक) यह 45 डेसिबल तक होना चाहिए। इन सीमाओं के मुकाबले वास्तविक शोर का स्तर ज्यादा ही रहता है, जो कि करीब 75 डेसिबल या ज्यादा हो जाता है। शोर का स्तर और बिजली की खपत कम करने के लिए जरूरी है कि पुराने उपकरणों को बदलकर नवीनतम आवाजहीन उच्च क्षमता व रोटरी मोटर वाले उपकरणों को लगाया जाए। च. यह सुझाव दिया जाता है कि सीवेज/अपशिष्ट जल उपचार के लिए एसटीपी खरीदने के लिए प्रतिष्ठित कंपनियों को चुना जाए। ऐसी कंपनियां अपने उपकरणों द्वारा कम जगह घेरने के लिए और बहुत ही मामूली लागत में बिजली की खपत घटाने के लिए अपने डिजाइन में लगातार सुधार करती रहती हैं। दुर्भाग्यवश, ऐसे मामलों में निवासियों का कोई दखल नहीं होता है और उनका इस कड़ी सच्चाई से सामना तब होता है जब एसटीपी का आर्डर दिया जा चुका होता है। शायद यहां तक कि निवासियों द्वारा संपत्ति खरीदने से पहले ही ऐसा हो जाता है। 13) विभिन्न क्षमताओं वाले एसटीपी की क्या लागत होती है?यहां दिए जा रहे कीमत सिर्फ सांकेतिक हैं और अनुमान लगाने के लिए हैं। सभी क्षमताएं केएलडी (किलोलीटर प्रतिदिन = 1000 लीटर प्रतिदिन) में हैं। एमबीआर के लिए कीमत नहीं दी गई है क्योंकि उसमें काफी हिस्से आयात करने पड़ते हैं इसलिए इसके लिए उन कंपनियों से सीधे संपर्क करना चाहिए जो ऐसे संयंत्र उपलब्ध कराते हैं। 5 केएलडी क्षमता का एसटीपी = रुपये 5.00 लाख10 से 15 केएलडी क्षमता का एसटीपी = रुपये 8.00 लाख25 केएलडी क्षमता का एसटीपी = रुपये 15.00 लाख35 केएलडी क्षमता का एसटीपी = रुपये 18.00 लाख50 केएलडी क्षमता का एसटीपी = रुपये 35.00 लाख75 केएलडी क्षमता का एसटीपी = रुपये 40.00 लाख100 केएलडी क्षमता का एसटीपी = रुपये 30.00 लाख (यदि इस आकार के सभी सिविल कार्य खरीददार द्वारा किया जाए) नोट: ऊपर दिए गए कीमतों में टैक्स एवं उत्पाद शुल्क (यदि लागू हो तो) शामिल नहीं है। आपूर्तिकर्ता स्थापना और शुरू करने का खर्च अलग से लेगा। इसके लिए 5 से 10 प्रतिशत अतिरिक्त लागत आ सकती है। एक एसटीपी की संचालन लागत क्या आती है?एक 75 केएलडी क्षमता वाले या उससे बड़े एसटीपी का रखरखाव सहित संचालन लागत प्रति लीटर सीवेज उपचार के लिए 1.2 पैसे पड़ेगी। 50 केएलडी या उससे कम क्षमता वाले एक एसटीपी द्वारा सीवेज उपचार की लागत 1.5 पैसे प्रति लीटर पड़ेगी। इसमें संयंत्र को चलाने वाले कर्मचारी का खर्च शामिल नहीं है। यदि संचालन एवं रखरखाव किसी प्रतिष्ठित कंपनी द्वारा प्रदान किया जाता है तो वे एक शिफ्ट के लिए एक प्रशिक्षित संचालक और एक सुपरवाइजर नियुक्त करेंगे, इसके लिए वे रुपये 60,000 प्रति महीना चार्ज करेंगे। जबकि संचालन एवं रखरखाव करने वाली अन्य छोटी मोटी एजेंसियां उतने ही व्यक्तियों के लिए रुपये 20,000 से 30,000 चार्ज करेंगे, लेकिन वे ठीक तरह से प्रशिक्षित नहीं होंगे। क्या यह सही है कि अमूमन किसी अपार्टमेंट या भवन के मालिक/निवासी के लिए सीवेज उपचार की प्रक्रिया को समझना जटिल है?हां, दुर्भाग्यवश यह सच है। यदि सीवेज उपचार इतना सरल और आसान हो कि सब समझ सकें तो इन सवालों का जवाब बहुत छोटा होगा और उसे आसानी से पालन किया जा सकेगा। तो ठीक है, यदि सीवेज उपचार के की समस्याओं के हल लिए किसी विशेषज्ञ की जरूरत पड़े तो रेजीडेंट एसोसिएशन क्या कर सकते हैं?इसके लिए इंडिया वाटर पोर्टल में लॉग करें और ‘‘सवाल पूछें’’ सेवा में जाएं तो आपको भारत के विभिन्न शहरों में रहने वाले आवश्यक विशेषज्ञता वाले कई लोग मिलेंगे। उनसे सम्पर्क करें और उनसे सहायता करने के बारे में पूछें और यह भी पूछें कि यदि उन्हें आपके स्थान पर आना पड़े तो वे किन शर्तों पर आ सकते हैं। आप उनमें से किसी एक से सम्पर्क करें और वे निश्चित रूप से आपसे मदद की पेशकश करेंगे। सीवेज उपचार संयंत्र के लिए करने या न करने वाली कई आवश्यक बातें?हां, ऐसे कुछ हैं। दुर्भाग्यवश, रेजीडेंट एसोसिएशनों को कुछ कर पाने में काफी देर हो जाती है क्योंकि उन्हें सम्पत्ति पर तब कब्जा मिलता है जब सब कुछ हो चुका होता है। तो बिल्डरों को इस हिस्से को पढ़ना चाहिए और जो सुझाया गया है वह करना चाहिए क्योंकि इसमें उनके खरीददार का हित जुड़ा हुआ है। क) किसी अपार्टमेंट/परिसर में रहने वाले निवासियों के लिए सीवेज उपचार एक बहुत महत्वपूर्ण विशेषता होती है। इसे ऐसे परिसर व स्थान पर स्थापित करना चाहिए जो कि जमीन के ऊपर हो और उसे ठीक से कार्य करने एवं आसान रखरखाव के लिए उसमें आवश्यक हवा आसानी से जा सके। एसटीपी को कभी भी बेसमेंट में स्थापित न करें। ख) लगभग अधिकांश बहुमंजिले भवनों वाले अपार्टमेंट में एसटीपी जितना हो सके उतना जमीन के नीचे लगाया जाता है! जो एजेंसी इसे बनाती है, स्थापित करती है और शायद संचालित करती है उसकी दृष्टि से भूमिगत एसटीपी काफी अप्रिय होता है! यदि वह काम करना बंद कर दे तो उसे मरम्मत के लिए भरे हुए सीवेज को खाली करना बहुत ही थकाऊ काम होता है। उतना ही अहम उस कीचड़ को संभालना होता है जो कि एसटीपी के सामान्य संचालन के दौरान भारी मात्रा में निकलता है। चूंकि यह कीचड़ बेसमेंट से निकालना होता है इसलिए हाथों से ही निकालना पड़ता है। इस तरह संचालन एवं रखरखाव वाले दल के लिए नियमित रखरखाव काफी कठिन हो जाता है। यह एक प्रमुख कारण है जिस वजजह से एसटीपी को बेसमेंट में नहीं होना चाहिए। ग) कुछ ऐसे अहम काम जो कभी नहीं किए जाते हैं और फिर काफी देर हो जाती है। रेजीडेंट एसोसिएशन की जिम्मेदारी है कि वे बिल्डर से सम्पत्ति में स्थापित सभी कामों के दस्तावेज मांगें। इनमें डिजाईन के लिए इस्तेमाल के तरीके सहित संपत्ति का नक्शा, बिजली संबंधी सुविधा स्थापना के लिए विस्तृत तकनीकी विशिष्टताएं, बिजली पैदा करने वाले उपकरण, पानी का पूरा ढांचा, स्वच्छ जल एवं अपशिष्ट जल को लाने व ले जाने वाले पाइपों का नक्शा जिसमें एसटीपी में अपशिष्ट जल ले जाने एवं शोधित पानी आने का नक्शा भी शामिल हो। सभी पंपो एवं मोटर पर आधारित घूमने वाले उपकरण का विवरण कि उन्हें स्थापना के लिए कैसे चयन किया गया, क्योंकि ये बिजली खपत की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होते हैं। संपत्ति से जुड़े सभी अभियांत्रिकी संयंत्रों व उपकरणों का सही दस्तावेजीकरण जरूरी है। इन्हें नजरअंदाज करने से कोई सुख नहीं मिलेगा और निरंतर आपदा का सामना करना होगा! इसके बगैर, निर्धारित रखरखाव के लिए उपकरणों के बारे में जानकारी न रहने से रखरखाव/मरम्मत करने में बहुत परेशानी हो सकती है। इस बात पर कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी आवासीय परिसर में एक घर खरीदने वाला सबसे ज्यादा नुकसान में होता है, तो इसे सुधारने के लिए एवं घर खरीदने वालों की सुरक्षा के लिए क्या किया जा सकता है? सरकार (चाहे राज्य सरकार या केन्द्र सरकार) के लिए विकल्प यह है कि वह घर खरीददारों की सुरक्षा के लिए कानून लाए। बिल्डरों के विभिन्न्न एसोसिएशनों के लिए दूसरा विकल्प यह है कि वे स्वयं ऐसा सिद्धांत बनाएं जो पूरी पारदर्शिता के साथ जल आपूर्ति की सुरक्षा प्रदान करे। इनमें से कुछ भी जल्द नहीं होने वाला है, इसलिए पूरे देश के रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन एक साथ मिलकर ‘अधिनियम को दुरूस्त करने’ के लिए और जल सुरक्षा से जुड़े अहम मामलों पर ज्यादा पारदर्शी तरीके से काम करने के लिए सरकार पर दबाव बनाएं।
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