बोरवेल खुदाई करने वाले वेण्डर से सभी महत्वपूर्ण जानकारियाँ मांगिये, जैसे उस बोरवेल मशीन की लॉग शीट, भूजलस्तर का माप, गहराई, लगने वाले पाईप, केसिंग के मटेरियल, लगाये जाने वाले पम्प की पूरी जानकारी, उस पम्प से मिलने वाले पानी की सम्भावित मात्रा आदि। यदि बोरवेल ड्रिल करने वाली कम्पनी अच्छी है तो वह निश्चित ही यह सारी सूचनाएं आपको प्रदान करेगी। इन सभी सूचनाओं को सुरक्षित रखिये ताकि भविष्य में कभी काम आ सकें।2) यदि दुर्भाग्य से बोरवेल फ़ेल हो जाये अर्थात पानी नहीं निकले तब भी इन सूचनाओं को भविष्य के लिये संभालकर रखें, और उस स्थान को चिन्हित करें जहाँ पर बोरवेल फ़ेल हो गया है।3) बोरवेल ड्रिलर की तरफ़ से हमेशा मोटर पम्प लगवाने के सम्बन्ध में अनुशंसा आती है कि कौन सा पम्प लगवाना चाहिये, क्योंकि अधिक क्षमता का पम्प लगाने से भी कोई फ़ायदा नहीं होता, बल्कि पानी भी रुक-रुककर आता है। ऐसे में उचित क्षमता का पम्प ही लगवायें और उस पम्प की पूरी जानकारी, किस गहराई पर उसे फ़िट किया गया है, तथा किस कम्पनी एवं निर्माता का है, यह जानकारी भी सुरक्षित संभालकर रखें, भविष्य में काम आ सकती है।4) बोरवेल की बिजली हेतु अलग से मीटर लगवायें, साथ ही अच्छी क्वालिटी के फ़्यूज़, सर्किट ब्रेकर तथा पानी का मीटर भी फ़िट करवायें। इससे आपको बिजली की खपत और पानी की मात्रा के अनुपात की सही-सही जानकारी मिल सकेगी तथा पम्प भी सुरक्षित रहेगा।5) बोरवेल की खुदाई के पश्चात सबसे पहले पानी की टेस्टिंग करवायें तथा प्रत्येक 6 महीने में एक बार पानी की जाँच करवाते रहें। पानी की जाँच हमेशा BIS मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला में करवानी चाहिये क्योंकि BIS10500 के कड़े मानक पानी की सही जाँच प्रमाणित करते हैं तथा पानी में नाइट्रेट, TDS स्तर तथा माइक्रोबायोलॉजिकल प्रदूषण के बारे में सही-सही आँकड़े पेश कर सकते हैं।6) यह सुनिश्चित करें कि बोरवेल के आसपास गन्दा पानी जमा न हो, पम्प तथा पाइप लाइन में कोई लीकेज न हो तथा गन्दे पानी का कोई स्रोत बोरवेल के आसपास न हो। बोरवेल के पानी को लम्बे समय तक साफ़ और पीने योग्य रखने के लिये यह ध्यान रखना जरूरी है।7) बिल्डिंग के सीवेज टैंक तथा भूमिगत चेम्बर की लाइनें चेक करें, उनमें किसी प्रकार की रुकावट अथवा लीकेज नहीं होना चाहिये जिससे कि भूजल प्रदूषित होने की कोई सम्भावना हो। यदि मेनहोल में कोई रुकावट अथवा पाइप लाइन मे कोई लीकेज आदि है तो उसे तुरन्त नगर निगम में सूचित करें अथवा सम्बन्धित अधिकारियों से कहकर तुरन्त ठीक करवायें ताकि बोरवेल के पानी तक प्रदूषण न पहुँचे।8) बोरवेल हेतु रेनवाटर हार्वेस्टिंग तथा रीचार्जिंग सिस्टम एकदम उचित रूप से इस प्रकार डिजाइन किये जाने चाहिये, जिसमें बोरवेल के आसपास पानी एकत्रित न हो।9) बोरवेल में लगने वाली सभी बिजली की लाइनें, तार तथा पाइप उच्च क्वालिटी के तथा लीकप्रूफ़ होने चाहिये, जिससे शॉर्ट सर्किट अथवा लीकेज आदि की दुर्घटना न हो।10) रेनवाटर रीचार्जिंग का समूचा तंत्र बेहतरीन डिज़ाइन किया जाना चाहिये ताकि बोरवेल से मिलने वाले पानी की गुणवत्ता सुधरे तथा बोरवेल से भूजल का दोहन लम्बे समय तक किया जा सके।11) बोरवेल में सामान्यतः गाद जमना, कीचड़-कंकर फ़ँसना आदि की समस्याएं आती ही रहती है। वर्ष में दो बार हाइड्रो-जेटिंग तथा बोरवेल-पम्प की सफ़ाई इत्यादि करवाना चाहिये, ताकि बोरवेल की आयु और पानी की मात्रा बढ़े।12) बिल्डिंग के रहवासियों को पानी का उपयोग कम से कम करने, उपयोग किये गये पानी की “रीसाइक्लिंग” तथा पानी बचाने के साधनों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये, इससे बोरवेल की क्षमता और आयु बढ़ेगी।13) यदि नगर-निगम से नल का पानी उचित मात्रा में आ भी रहा हो, तब भी बोरवेल का उपयोग लम्बे समय तक बन्द नहीं रखें। एक-दो दिन के अन्तराल से उसे कम से कम 5 मिनट लगातार चलाना जरूरी है, वरना पम्प खराब होने या पाईप लाइन में रुकावट की समस्या आ सकती है।14) आज की तारीख में भारत की जल आवश्यकता का बड़ा प्रतिशत भूजल से ही प्राप्त हो रहा है, यह मानव सभ्यता के लिये एक “पाताल-गंगा” के समान है, लेकिन इस पाताल-गंगा का सीधा सम्बन्ध आकाशगंगा (अर्थात बादलों और बारिश) से भी है। अतः भूजल की इज्जत और रखरखाव करना सीखें ताकि मुश्किल वक्त में यह हमारे लिये अमृत का काम करे। अच्छी तरह से काम करने वाला एक बोरवेल हमें पानी के मामले में निश्चिंत और सुरक्षित करता है और पानी जैसी अनमोल वस्तु, जो कि दिनोंदिन कम होती जा रही है, को प्राप्त करने में हमारा मददगार होता है, ऐसे बोरवेल की थोड़ी सावधानी, थोड़ी चिन्ता और उचित रखरखाव हम नहीं करेंगे तो बाद में बहुत पछताएंगे…
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