विनोद कुमार
विनोद कुमार
जलवायु परिवर्तन - एक विकट समस्या | Climate Change in Hindi
Posted on 12 Apr, 2018 06:56 PMग्रीनहाउस गैसों का सान्द्रण विशेषकर कार्बन डाइऑक्साइड का सान्द्रण बीते कई दशकों के दौरान विद्युत उत्पादन जैसे ताप विद्युत उत्पादन में कोयले का अधिक प्रयोग और जीवाश्म ईंधन का अधिक प्रयोग होने के कारण बढ़ गया है। 18वीं सदी में औद्योगिक क्रान्ति के समय से वातावरण में इसकी मात्रा लगातार बढ़ रही है। जो वर्तमान समय में बढ़कर 390 ppm हो गई है। मीथेन गैस की मात्रा भी मवेशियों के उत्पादन, चावल की उपज, र
तबाही के कारखाने
Posted on 23 Feb, 2014 04:10 PMआदिवासियों को आज भी मनुष्य से एक दर्जा नीचे का जीव माना जाता है। वे तो शुरू से विकास की खाद बनते रहे हैं। अंग्रेजों ने यही किया। देशी हुक्मरानों ने यही किया और अलग राज्य बनने के बाद आदिवासी मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में चल रही सरकारें भी यही कर रही हैं। इसे ही समाजशास्त्री के नेतृत्व में चल रही सरकारें भी यही कर रही हैं। इसे ही समाजशास्त्री आंतरिक उपनिवेशवादी शोषण कहते हैं और इससे लगता है कि आदवासी जनता को अभी मुक्ति नहीं। पूर्वी सिंहभूम के हरे-भरे चांडिल क्षेत्र में स्पंज आयरन कारखानों की चिमनियों से निकलता खतरनाक धुआं वहां के जन-जीवन पर घने कोहरे की तरह छाता जा रहा है। स्पंज आयरन कारखानों की चिमनियों से निकलने वाली गैसों में सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रमुख हैं।इसके अलावा उन गैसों में केडियम, क्रोमियम, आर्सेनिक, मैगनीज, सीसा, पारा जैसे खतरनाक तत्वों के बारीक कण भी मौजूद होते हैं, जो हवा के साथ मिल कर जहरीली गैसों में बदल जाते और बहुत आसानी से सांस के साथ मानव शरीर में पहुंच जाते हैं। वे युद्ध में प्रयुक्त होने वाले रासायनिक जहरीली गैसों से कम खतरनाक नहीं होते, फर्क सिर्फ इतना है कि उससे मौत तत्काल नहीं होती, लोग तिल-तिल कर मरते हैं। लेकिन इसकी चिंता न कारखाना मालिकों को है और न सरकार को।