ऊषा दुबे

ऊषा दुबे
बूँदों में गाँधी दर्शन ‘बूंदों की मनुहार’
Posted on 27 Jan, 2010 06:16 PM
भारत का लम्बा इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संवर्द्धन की जिम्मेदारी समाज खुद ही वहन करते आया है। रियासतों का काल हो या लोकतांत्रिक सरकारों का दौर, ग्रामीण समाज अपने परिवेश के लिए सत्ता संस्थानों पर आश्रित नहीं रहते आया है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो से समाज में यह धारणा घर करती गई कि जो कुछ भी करना है, सरकार ही करेगी। गाँव के काम को हम अपना काम क्यों समझे?
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