Posted on 15 May, 2013 10:25 AM आज पूरी दुनिया, नई, पुरानी, पढ़ी-लिखी, अनपढ़ दुनिया भी इन्हीं प्लास्टिक की थैलियों को लेकर एक अंतहीन यात्रा पर निकल पड़ी है। छोटे-बड़े बाजार, देशी-विदेशी दुकानें हमारे हाथों में प्लास्टिक की थैली थमा देती हैं। हम इन थैलियों को लेकर घर आते हैं। कुछ घरों में ये आते ही कचरे में फेंक दी जाती हैं तो कुछ साधारण घरों में कुछ दिन लपेट कर संभाल कर रख दी जाती हैं, फिर किसी और दिन कचरे में डालने के लिए। इस तरह आज नहीं तो कल कचरे में फिका गई इन थैलियों को फिर हवा ले उड़ती है, एक और अंतहीन यात्रा पर। फिर यह हल्का कचरा जमीन पर उड़ते हुए, नदी नालों में पहुंच कर बहने लगता है। पिछले दिनों देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि हमारा देश प्लास्टिक के एक टाईम बम पर बैठा है। यह टिक-टिक कर रहा है, कब फट जाएगा, कहा नहीं जा सकता। हर दिन पूरा देश कोई 9000 टन कचरा फेंक रहा है! उसने इस पर भी आश्चर्य प्रकट किया है कि जब देश के चार बड़े शहर- दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता ही इस बारे में कुछ कदम नहीं उठा रहे तो और छोटे तथा मध्यम शहरों की नगरपालिकाओं से क्या उम्मीद की जाए? कोई नब्बे बरस पहले हमारी दुनिया में प्लास्टिक नाम की कोई चीज नहीं थी। आज शहर में, गांव में, आसपास, दूर-दूर जहां भी देखो प्लास्टिक ही प्लास्टिक अटा पड़ा है। गरीब, अमीर, अगड़ी-पिछड़ी पूरी दुनिया प्लास्टिकमय हो चुकी है। सचमुच यह तो अब कण-कण में व्याप्त है - शायद भगवान से भी ज्यादा! मुझे पहली बार जब यह बात समझ में आई तो मैंने सोचा कि क्यों न मैं एक प्रयोग करके देखूं- क्या मैं अपना कोई एक दिन बिना प्लास्टिक छूए बिता सकूंगी। खूब सोच समझ कर मैंने यह संकल्प लिया था। दिन शुरू हुआ। नतीजा आपको क्या बताऊं, आपको तो पता चल ही गया होगा। मैं अपने उस दिन के कुछ ही क्षण बिता पाई थी कि प्लास्टिक ने मुझे छू लिया था!