सरोज कुमार

सरोज कुमार
पर्यावरण का अनुपम प्रहरी
Posted on 12 Nov, 2011 09:24 AM

अनुपम मिश्र ने काम को परियोजना और बजट से कभी नहीं जोड़ा। उन्होंने काम को समाज से जोड़ा। यही कारण है कि समाज ने उनके काम को सिर माथे चढ़ाया, उसे आगे बढ़ाया। मिश्र ने कुल 17 पुस्तकें लिखी हैं लेकिन जिस एक पुस्तक ने उन्हें अनुपम बनाया, वह है 'आज भी खरे हैं तालाब' पानी के प्रबंधन के लिए इस पुस्तक में सुझाए गए तरीके के अलावा दूसरा कोई शाश्वत तरीका है ही नहीं।

नाम होना और नाम को चरितार्थ करना दो अलग बातें होती हैं। अनुपम मिश्र ने नाम को चरितार्थ किया है। पर्यावरण के लिए वह तब से काम कर रहे हैं, जब देश में पर्यावरण का कोई विभाग नहीं खुला था। गांधी शांति प्रतिष्ठान में उन्होंने पर्यावरण कक्ष की स्थापना की। पर्यावरण कक्ष क्या, एक छोटा-सा कमरा। न कोई सहयोगी, न कोई बजट लेकिन उसी छोटे से कमरे के एकांत में बगैर बजट के बैठकर मिश्र ने देश और दुनिया के पर्यावरण की जिस बारीकी से खोज-खबर ली है, वह करोड़ों रुपए बजट वाले विभागों और परियोजनाओं के लिए संभव नहीं हो पाया है। हां, देश में सरकारी विभाग खुलने के बाद तमाम पीएचडी और डीलिट वाले पर्यावरणविद जरूर पैदा हुए हैं। लेकिन पर्यावरण के लिए इन सबके होने का अर्थ अंग्रेजी शब्द के 'डीलिट' से अधिक कुछ नहीं है।
रक्षा कवच की रक्षा का सवाल
Posted on 16 Sep, 2010 10:57 AM

आज हमारी राजनीति से लेकर समाज, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण तक सब कुछ छलनी हो चला है। और तो और हमने ओजोन की उस छतरी में भी छेद कर डाला है, जो सूर्य की घातक किरणों से हमें बचाती है।
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