श्रीमति रमा सिंघल

श्रीमति रमा सिंघल
कहीं पपीहा प्यासा है
Posted on 18 Jan, 2016 01:04 PM

बादल अब तो बरस पड़ो,
यहाँ चारों ओर निराशा है।

बरखा की बूँदों के बिन,
कहीं पपीहा प्यासा है।।

ताल-तलैया, नदियाँ-नाले,
सूख रहे, हौले-हौले।

प्यासी धरती तड़प-तड़प कर,
मांग रही जल, मुँह खोले।।

जीव-जन्तु, मानव का तन,
भीषण गर्मी से झुलस रहा।

बादल की गर्जन सुनने को,
प्राणी-प्राणी किलस रहा।।
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