शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
नर्मदा की कुमुदनी
Posted on 09 Sep, 2013 01:22 PM
होशंगाबाद का अभूतपूर्व पर्व बनी
नर्मदा के तट की बास्वानी व्याख्यानमाला,
तिरती तरंगों पर
कान्हा की वंशी की
सम्मोहक मूर्च्छनाएँ
दूरागत दीपों की
क्वाँरी आकांक्षाएँ
गलबहियाँ डाले
रास रचतीं शरदोत्सव का।
गर्वा की तालों पर
करतीं अठखेलियाँ
तट के नितंबों से
लहरों की करधनियाँ।
नयन श्रवण, श्रवण नयन
एक बरन, एक बयन
गंगा-दशहरा
Posted on 08 Sep, 2013 01:10 PM
बाप ने बहल बनावाई थी
सैलानी सैर हेतु
(बैलगाड़ी भूसा-खाद-
लकड़ी ढोने में व्यस्त)
रंग-बिरंगी सुतलियों से
बिनी खटोलिया के
चारों ओर टनटनातीं
रशना-सी घंटियाँ,
बैलों की मरोड़ पूँछ
टिटकार करते ही
अंग-अंग लहराते
दचकों के दोला में।
बीघापुर स्टेशन से
उसी में बिठाकर तुम्हें
विदा करा लाया था।
माँ ने हर्षाश्रुओं से
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