औद्योगिक क्षेत्रों में भूजल पर बढ़ती निर्भरता के कारण एक ओर यहां का भूजल का स्तर नीचे सरक रहा है,वहीं दूसरी ओर भूजल भी प्रदूषित हो रहा है। हरियाणा औद्योगिक क्षेत्र में कारखानों की बढ़ती संख्या से भूजल के काफी स्रोत सूख चुके हैं और कारखाने के मालिक नए- नए बोरवेल खोदते-खोदते थक चुके हैं।
Posted on 22 Dec, 2009 01:13 PMगावों में आमतौर पर शहरी आवासों के विपरीत छोटे घर होते हैं। यहां के घरों की छत अपेक्षाकृत छोटी होती है। यहां वर्षाजल संग्रहण के लिए शहरों से भिन्न तकनीकी का उपयोग किया जाता है। अत: गांवों में प्रत्येक घर की छत, आंगन एवं बाड़े में होने वाली बारिश के पानी का सोख्ता गड्ढा और टांका जैसे ढांचों में रोका जा सकता है।
Posted on 22 Dec, 2009 01:07 PMदेश के अन्य प्रांतों की तरह पर्वतीय भू-भागों में भी जल संरक्षण, संग्रहण और उपयोग की काफी भव्य परम्परा रही है। पहाड़ों में जल संग्रहण की प्राचीन व्यवस्था के तहत अनेक ढांचों का निर्माण किया गया। यहां इन्हें नौला, चपटौला, नौली, कुय्यो, धारा, मूल, कूल, बान आदि अनेक नामों से जाना जाता है। यहां अपना पानी अपना प्रबंध की सामूहिक भावना से पानी की शुद्धता और निरंतरता बनाए रखी जाती है।
Posted on 22 Dec, 2009 01:04 PMकिसी संगठन की सफलता में सही लक्ष्य की पहचान, उस लक्ष्य तक पहुंचने की सही रणनीति और लोगों के जुड़ाव और उनकी प्रतिबद्धता का काफी महत्व होता है। इस मायने में देखें तो महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित एक गैर सरकारी संगठन वॉटरशेड ऑरगेनाइजेशन ट्रस्ट (डब्ल्यूओटीआर) ने इस क्षेत्र के दर्द को समझा और उसी के मुताबिक इस क्षेत्र के उद्धार के लिए काम करती है। अपने इस प्रयास में डब्ल्यूओटीआर ग्रामीण समुदायों
Posted on 22 Dec, 2009 12:57 PMनोर्फेल पेशे से एक इंजीनियर हैं। इन्होंने सन् 1995 में ग्रामीण विकास विभाग से अवकाश प्राप्त कर लेने के उपरांत लोगों को सहयोग करने में रुचि लेना आरंम्भ किया। सरकारी विभाग में काम करते हुए और लेह वासियों के जीवन में कृषि के महत्व को देखते हुए नोर्फेल ने ‘लेह न्यूट्रिशियन प्रोजेक्ट’(एलएनपी) के जरिए लोगों को सहयोग करने का निर्णय लिया। लेह की 98 प्रतिशत आबादी पारंपरिक रूप से कृषि कार्य में जुटी हुई है।
Posted on 21 Dec, 2009 03:53 PMपोपटराव पवार हमारे युवा पीढ़ी के सबसे अग्रणी जल योद्धाओं में से एक हैं। वैसे तो पवार का मूल निवास स्थान महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का हिवरे बाजार गाँव है, लेकिन इनकी शिक्षा पुणे शहर में हुई,जहां के विश्वविद्यालय से उन्होंने एम कॉम की परीक्षा उत्तीर्ण की। किस प्रकार पवार गांव के विकास और समृद्धि के लिए समर्पित हुए, यह भी एक मजेदार घटना है।
Posted on 21 Dec, 2009 03:41 PMकर्नाटक स्थित अनावट्टी के भीमा भट हर्डीकार के पास 25 गुंटा जमीन है। ये नर्सरी के अलावा खेती भी करते हैं। बागवानी के लिए पानी के छिड़काव की जरूरत तो पड़ती है, लेकिन उनके पास इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए 5 फीट व्यास और 40 फीट गहरा कुंआ ही एकमात्र स्रोत था। इस कुंए में एक हॉर्स पावर का मोटर लगा था। सुबह के समय इससे 5 फीट पानी ऊपर खिंचता था। इस समय तक कुंए का पानी सूख जाया करता था। वे शाम को भी इसस
Posted on 21 Dec, 2009 03:35 PMआपको भी यह जानकर आश्चर्य होगा कि किस प्रकार टोरनी गांव भूख,प्यास,गरीबी और बेकारी के दलदल से बाहर निकलते हुए समृद्धि और खुशहाली की ओर अग्रसर हो रहा है और आज हम सभी के लिए एक आदर्श गाँव के रूप में उभर रहा है। यहां पानी का सही प्रबंधन किया जाता है। यहां पानी की उपलब्धता के साथ-साथ फसलों की भी चौगुनी पैदावार हो गई है और यहां से पलायन कर गए लोग वापस लौट आए हैं। टोरनी गांव खंडवा से 28 किलोमीटर की दूरी प
Posted on 21 Dec, 2009 03:29 PMकर्नाटक में डिग्री कॉलेज के प्रधानाचार्य शिवानाजय्या को प्राकृतिक खेती करने वाले किसान और एक लेखक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने प्राकृतिक खेती पर दो पुस्तकें भी लिखी हैं, जिसे लोगों ने काफी सराहा है।
Posted on 21 Dec, 2009 03:21 PMदेश में कहीं भी अगर सूखा, अकाल और भूख की चर्चा होती है, तो उसमें कालाहांडी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। उड़ीसा स्थित कालाहांडी क्षेत्र जंगलों की भारी कटाई, वर्षा की अनियमितता, पानी के तेज बहाव और मिट्टी के कटाव की मार झेलता रहा है। इन्हीं कारणों से यहां जनवरी माह से ही पानी की भारी किल्लत होने लगती है और भारी संख्या में लोग यहां से पलायन कर जाते हैं।