सिद्धांत सारंग

सिद्धांत सारंग
प्रवासी पक्षियों के लिए तरसती बिहार की प्यासी झीलें
Posted on 19 Mar, 2015 11:24 AM

पर्यावरणविद अनुपम मिश्र कहते हैं कि जब हमारे देश में अंग्रेज आये थे, तब उन्हें कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक करीब 20 लाख छोटे-बड़े तालाब व झीलें थीं। तब देश में इंजीनियरिंग सिखानेवाला कोई काॅलेज नहीं था। सरकारी स्तर पर सिंचाई की भी अच्छी व्यवस्था नहीं थी। फिर भी पूरे देश में सिंचाई पर अच्छा काम होता था। तब जनता अपनी जिम्मेदारियाँ खुद निभाती थीं। पर आज हम ऐसा नहीं कर रहे हैं।

धरती पर वनस्पति एवं जन्तुओं का निवास है। पृथ्वी पर इसके वास के लिए जल का स्थान अतिमहत्त्वपूर्ण है। इसलिए जल को मानव व अन्य जन्तुओं के लिए आधारभूत आवश्यकता माना गया है। यह एक जीवनदायी तत्व है। वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी पर 14 अरब घन किमी जल है। जिसमें से 97 प्रतिशत खारा पानी है। 1.8 प्रतिशत पानी बर्फ के रूप में ग्रीनलैण्ड जैसे ठण्डे प्रदेशों में स्थित है। सिर्फ 1.2 प्रतिशत भाग पानी हमारे उपयोग के लिए है। विभिन्न जलस्त्रोतों जैसे-नदी, झील, पोखर आदि में उपस्थित है। जिसे हम विभिन्न कार्यों में प्रयोग करते हैं।

हमारे यहाँ तालाबों का लम्बा इतिहास रहा है। यह हमारी सभ्यता का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रही है। पर जैसे-जैसे हम विकास की ओर बढ़ रहे हैं, उसी तरह हम अपनी संस्कृति व सभ्यता को भी भूलते जा रहे हैं। इसका प्रमाण है बिहार के वैशाली जिले के हजरत जन्दाहा के पूरब में स्थित बरैला झील। इसका इतिहास बड़ा गौरवमय रहा है। यह झील करीब 12 हजार एकड़ में फैली है। यह तकरीबन 250 साल पुरानी झील है।
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