रस्किन बॉन्ड

रस्किन बॉन्ड
पत्तियों के पीछे पहाड़ थे
Posted on 22 Aug, 2011 05:02 PM

नींद खुली तो फैक्टरी के सायरन सरीखी वह दूरस्थ गूंज सुनाई दी, लेकिन वह वास्तव में मेरे सिरहाने मौजूद नींबू के दरख्त पर एक झींगुर की मीठी भिनभिनाहट थी। हम खुले में सो रहे थे। इस गांव में जब मैं पहली सुबह जागा था तो छोटी-छोटी चमकीली पत्तियों को देर तक निहारता रहा। पत्तियों के पीछे पहाड़ थे। आकाश के अनंत विस्तार की ओर लंबे-लंबे डग भरता हिमालय। हिंदुस्तान के अतीत की अलसभोर में एक कवि ने कहा था हजारो

धरती का उत्सव है बारिश
Posted on 25 Jul, 2011 03:32 PM

मछलियों के लिए भी पोखर में पर्याप्त पानी होगा। जल्द ही वह चकत्तेदार फोर्कटेल चिड़िया यहां लौट आ

पहाड़ी नदी की ध्वनि
Posted on 25 Jun, 2011 09:46 AM

रात भर बारिश टिन की छत को किसी ढोल या नगाड़े की तरह बजाती रही। नहीं, वह कोई आंधी नहीं थी। न ही वह कोई बवंडर था। वह तो महज मौसम की एक झड़ी थी, एक सुर में बरसती हुई। अगर हम जाग रहे हों तो इस ध्वनि को लेटे-लेटे सुनना मन को भला लगता है, लेकिन यदि हम सोना चाहें तो भी यह ध्वनि व्यवधान नहीं बनेगी। यह एक लय है, कोई कोलाहल नहीं। हम इस बारिश में बड़ी तल्लीनता से पढ़ाई भी कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि बाहर

नदी के साथ-साथ एक सफर
Posted on 24 May, 2011 12:39 PM

मैं नदी के बहते जल के इस संगीत का इतना अभ्यस्त हो गया हूं कि जब मैं उससे दूर चला जाता हूं, तो म

दोस्त से कम नहीं हैं दरख्त
Posted on 16 May, 2011 09:53 AM
दरख्तों के लिए देहरा से अच्छी जगह और क्या होगी। मेरे दादाजी का घर कई तरह के दरख्तों से घिरा हुआ था : पीपल, नीम, आम, कटहल, पपीता। वहां बरगद का एक बूढ़ा दरख्त भी था। मैं इन दरख्तों के साथ ही बड़ा हुआ। इनमें से कइयों को मेरे दादाजी ने रोपा था और उनकी व मेरी उम्र एक समान ही थी।
बरगद का पेड़
दिल में उतरती गंगाजी
Posted on 21 Sep, 2009 01:09 PM

इस बात को लेकर हमेशा एक मामूली सा विवाद रहता है कि अपने ऊपरी उद्गम स्थल में वास्तविक गंगा कौन है - अलकनंदा या भगीरथी। बेशक ये दोनों नदियां देवप्रयाग में आकर मिलती हैं और फिर दोनों ही नदियां गंगा होती हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं, जो कहते हैं कि भौगोलिक दृष्टि से अलकनंदा ही गंगा है, जबकि दूसरे लोग कहते हैं कि यह परंपरा से तय होना चाहिए और पारंपरिक रूप से भगीरथी ही गंगा है।

 

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