रमेशचंद्र शाह

रमेशचंद्र शाह
कहा नदी ने
Posted on 04 Oct, 2013 04:03 PM
चट्टानों से चूर-चूर होने का नाटक
चट्टानों को बहलाने के लिए नहीं है

पाला पड़ा
जनम लेते ही
चट्टानों से

पानी की चट्टानें भी
चट्टाने ही हैं

फिर आते गिरि-गह्वर, समतल
और विषम भी

आएगी फिर कोख
कंदरा-मग्न कपिल भी
फिर आएँगे सगर-पुत्र
फिर पछताएगी
पूरी वंशावली...और फिर
दुहराएगी वही कथा

फिर?
ऋषियों की घाटी में
Posted on 20 Mar, 2013 01:18 PM
कृष्णमूर्ति फाउंडेशन ने आंध्र प्रदेश में प्रकृति के बीच शिक्षा-दीक्षा की अद्भुत दुनिया रची है। भारत के महान दार्शनिक जिद्दू कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन की छाया वहां पग-पग पर देखी जा सकती है। ‘जितनी शाखाएं, उतने वृक्ष’ उक्ति चरितार्थ होती है। वहां से लौटकर कवि और कथाकार रमेशचंद्र शाह का यात्रा-संस्मरण।
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