Posted on 25 Jun, 2012 05:23 PMइस बार यहां रियो में ओबामा नहीं आए। न यूरोपीय संघ की धुरी बनी जर्मनी की चांसलर, न ब्रिटेन के प्रधानमंत्री। सब कुछ ठंडे-ठंडे निपट गया। इसकी वजह यही है कि भारत-चीन जैसे विकासशील देश अब विपक्षी ताकत नहीं रहे। वे खुद विकास के उसी रास्ते पर हैं। कोई नया मॉडल उनके सामने नहीं है। विकसित देशों का ज्यादा विरोध करना एक अर्थ में खुद अपना विरोध करने जैसा ही हो सकता है। थोड़ा विरोध किया जाता है तो लोक-लाज क