रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’
माँझी
Posted on 16 Sep, 2013 03:07 PM
माँझी! जल का छोर न आता
अब भी तट आँखों से ओझल माँझी! जल का छोर न आता
भरी नदी बरसाती धारा
घन-गर्जन अंबर अँधियारा
काली-काली मेघ घटाएँ आ पहुँची रजनी अज्ञाता
माँझी! जल का छोर न आता
क्षुब्ध पवन वन-पथ में रोता दुर्दिन को उन्मत्त बनाता
नभ अश्रांत गाढ़ी तम छाया
मन वियोगिनी का भर आया
प्राणों की आशा बादल पर खींच रही जो मौन सुजाता
माँझी! जल का छोर न आता
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