रामचंद्र शुक्ल

रामचंद्र शुक्ल
आमंत्रण
Posted on 19 Jul, 2013 11:31 AM
दृग के प्रतिरूप सरोज हमारे उन्हें जग ज्योति जगाती जहाँ,
जल बीच कलंव-करंवित कूल से दूर छटा छहराती जहाँ,
घन अंजन वर्ण खड़े तृण जाल की झाईं पड़ी दरसाती जहाँ,
बिखरे बक के निखरे सित पंख बिलोक बकी बिक जाती जहाँ,
द्रुम अंकित, दूब भरी, जलखंड-जड़ी धरती छवि छाती जहाँ,
हर सीरक-हेम-मरक्त-प्रजा, ढल चंद्रकला है चढ़ाती जहाँ,
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