राजीव वोरा

राजीव वोरा
अमीरी की गरीबी
Posted on 26 Jun, 2010 04:20 PM
देश छोटा-सा है, आबादी भी हम जैसे देशों की तुलना में बहुत ही कम है। लेकिन दूध, डेयरी और मांस का उत्पादन बहुत ही ज्यादा है। इसलिए पशुओं की संख्या भी खूब है। यहां एक व्यक्ति पर आठ पशुओं का औसत आता है। और इस कारण पशुओं का गोबर भी खूब है। हमारे देश में वरदान माना गया गोबर यहां के पर्यावरण के लिए अभिशाप बन चुका है। यहां इसे ‘राष्ट्रीय’ समस्या माना जा रहा है।अपरिग्रह, जरूरत से ज्यादा चीजों का संग्रह न करने की ठीक सीख सभी पर लागू होती है। सभी पर यानी सभी समय, सभी जगह, सभी देशों में और सभी चीजों पर। ऐसा नहीं कि साधारण चीजों पर ही यह लागू होती हो। अमृत भी जरूरत से ज्यादा किसी काम का नहीं। गोबर को हमारे यहां अमृत जैसा ही तो माना गया है। पर यही गोबर यूरोप के एक देश नीदरलैंड में जरूरत से ज्यादा हो गया तो उसने वहां कैसी तबाही मचाई- इसे बता रहे हैं श्री राजीव वोरा। चीजों के संग्रह, बेतहाशा आमदनी-खर्च पर टिका आज का अर्थशास्त्र हर कभी हर कहीं गिर रहा है। दो बरस पहले अमेरिका में गिरा तो इस समय यह यूरोप में ग्रीस को हिला गया है। कई देशों पर यह संकट छा रहा है। कुछ बरस पहले नीदरलैंड ने अपने अर्थशास्त्र में छिपे अनर्थ को समझने के लिए भारत, इंडोनेसिया, ब्राजील और तंजानिया से चार मित्रो को बुलाकर लगभग पूरा देश घुमाया था, अपने समाज के विभिन्न पदों, क्षेत्रों
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