राहुल कोटियाल
राहुल कोटियाल
आपदा के अवशेष पर केदारनाथ यात्रा
Posted on 01 Jun, 2014 02:35 PMपिछले वर्ष 16-17 जून को उत्तराखंड के पहाड़ों पर पानी कहर बनके बरसाएक पहेली मानसून
Posted on 07 Feb, 2013 02:43 PMभारत में मानसून समय पर हो, यह यहां पर खेती व्यापार सबके लिए जरूरी है। भारत के मौसम विभाग के ऊपर सालाना तीन सौ करोड़ रुपये खर्च किये जाते हैं और आये दिन उनके किये जाने वाले मौसम के अनुमान गलत साबित होते हैं। हालांकि मौसम विभाग का काम ‘मौसम प्रभावित होने वाली कृषि और सिंचाई जैसी गतिविधियों के लिए मौसम संबंधी पूर्वानुमान तथा जानकारी मुहैया कराना’ है। पर देखा ये गया है कि उनके पूर्वानुमान और भविष्यपरंपरा का पुनः प्रयोग
Posted on 23 Aug, 2013 10:58 AMसूखे से पस्त बुंदेलखंड जैसे इलाकों को वित्तीय पैकेज की नहीं बल्कि परंपरा से उपजे उस प्रयोग की जरूरत है जो देवास का कायाकल्प करके महोबा पहुंच चुका है..देवास के हर गांव में आज सफलताओं की ऐसी कई छोटी-बड़ी कहानियां मौजूद हैं। पानी और चारा होने के कारण लोगों ने दोबारा गाय-भैंस पालना शुरू कर दिया है और अकेले धतूरिया गांव से ही एक हजार लीटर दूध प्रतिदिन बेचा जा रहा है। पर्यावरण पर भी इन तालाबों का सकारात्मक असर हुआ है। आज विदेशी पक्षियों और हिरनों के झुंड इन तालाबों के पास आसानी से देखे जा सकते हैं। किसानों ने भी पक्षियों की चिंता करते हुए अपने तालाबों के बीच में टापू बनाए हैं। इन टापुओं पर पक्षी अपने घोंसलें बनाते हैं और चारों तरफ से पानी से घिरे रहने के कारण अन्य जानवर इन घोंसलों को नुकसान भी नहीं पहुंचा पाते।
किस्सा 17वीं शताब्दी का है बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल के बेटे जगतराज को एक गड़े हुए खज़ाने की खबर मिली जगतराज ने यह ख़ज़ाना खुदवा कर निकाल लिया। छत्रसाल इस पर बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने इस खज़ाने को जन हित में खर्च करने के आदेश दिए, जगतराज को आदेश मिला कि इस खज़ाने से पुराने तालाबों की मरम्मत की जाए और नए तालाब बनवाए जाएं, उस दौर में बनाए गए कई विशालकाय तालाब आज भी बुंदेलखंड में मौजूद हैं, सदियों तक ये तालाब किसानों के साथी रहे। कहा जाता है कि बुंदेलखंड में जातीय पंचायतें भी अपने किसी सदस्य को गलती करने पर दंड के रूप में तालाब बनाने को ही कहती थीं। सिंचाई से लेकर पानी की हर आवश्यकता को पूरा करने की ज़िम्मेदारी तालाबों की होती थी।