पूजा सिंह

पूजा सिंह
फ्लोराइड से जंग में खामोश जीत
Posted on 01 Apr, 2016 11:30 AM


मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में एक संगठन अकेले दम पर फ्लोराइड के खिलाफ जंग छेड़े हुये है और उसे इसमें खासी सफलता भी मिल रही है।

कालीबाईमध्य प्रदेश के झाबुआ जिले का जिक्र आते ही दिमाग में एक छवि कौंधती है। तीर कमान थामे अल्पवस्त्रों में आधुनिक संस्कृति से दूर रहने वाले भील और भिलाला जनजाति के लोग। लेकिन झाबुआ जिला मुख्यालय पहुँचकर यह छवि काफी हद तक ध्वस्त हो चुकी होती है। आधुनिक संस्कृति अब इन दूरदराज गाँवों तक पहुँच चुकी है। लोगों की नैसर्गिक निश्छलता के सिवा कमोबेश सभी चीजें बदल चुकी हैं। नहीं बदली है तो स्वास्थ्य के मोर्चे पर बदहाली। सरकारी प्रयासों से संचार के साधन तो विकसित हो गये हैं लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर जागरूकता की कमी ने राह रोक रखी है। खासतौर पर पानी में फ्लोराइड की अधिकता व उससे होने वाले नुकसान जैसी अपेक्षाकृत वैज्ञानिक समस्याओं को लेकर जागरूकता पैदा करना तो अवश्य टेढ़ी खीर रही होगी।

वर्ल्ड कल्चर फेस्ट से यमुना को होगा नुकसान : एनजीटी की एक्सपर्ट कमेटी
Posted on 29 Feb, 2016 10:10 AM


आर्ट ऑफ लिविंग के आयोजन से यमुना और उसके पर्यावास को होने वाले सम्भावित नुकसान के मद्देनजर 100 करोड़ रुपए से अधिक के जुर्माने की अनुशंसा एनजीटी की एक्सपर्ट कमेटी ने की है। और एक्सपर्ट कमेटी ने यह भी कहा कि एनजीटी के पूर्व के आदेशों के उल्लंघन के लिए डीडीए के खिलाफ भी सख्त कार्यवाही की जाये।


.आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर का दिल्ली में यमुना किनारे होने वाला ‘वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल’ अब गम्भीर संकट में फँस गया है। यह आयोजन दिल्ली में यमुना नदी के उस तटीय इलाके में होना है, जो बाढ़ आने के दिनों में डूब जाता है अन्यथा खाली रहता है। इसे यमुना का फ्लड प्लेन कहा जाता है। राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) ने यह आशंका जताई है कि इस आयोजन के चलते यमुना नदी के क्षेत्र को गम्भीर क्षति पहुँच सकती है।

सबका सपना - अपना तालाब
Posted on 18 Feb, 2016 12:12 PM

स्थानीय किसान इस बात से खासे उत्साहित हैं कि एक तालाब बनाने में कमोबेश उतना ही खर्च आता है जितना एक पक्का कुआँ बनाने मेंं। और यहाँ तो सरकार तालाब बनाने के लिये आधी मदद देने को भी तैयार है। एक औसत तालाब में 12 से 15 हजार घन फीट पानी आता है। इस पानी से लगभग 10-12 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली फसल को कम-से-कम दो बार सींचा जा सकता है। महोबा के तत्कालीन कलेक्टर अनुज कुमार झा की उत्सुकता और उत्साह ने इस अभियान की नींव डाली और मौजूदा कलेक्टर वीरेश्वर सिंह ने भी राज्य सरकार को पत्र लिखकर इस मॉडल की सफलता का किस्सा उसके साथ साझा किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के बुन्देलखण्ड इलाके में 2,000 तालाब खुदवाने की घोषणा की है। शासकीय मदद से होने वाले इस काम को अपना तालाब अभियान का भी सहयोग हासिल है।

कमजोर मानसून ने यूँ तो पूरे देश को किसी-न-किसी तरह प्रभावित किया है लेकिन पारम्परिक रूप से सूखा पीड़ित बुन्देलखण्ड इलाके पर इसकी मार बाकी क्षेत्रों की तुलना में कुछ ज्यादा ही पड़ती है। हालात की गम्भीरता को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने क्षेत्र में 2,000 तालाब खुदवाने की घोषणा की है। इस योजना के तहत तालाब खुदवाने में आने वाले खर्च का 50 फीसदी हिस्सा सरकार देगी जबकि बाकी खर्च खुद किसानों को वहन करना होगा।

इस योजना पर शीघ्र कार्रवाई के क्रम में ही गत 12 फरवरी को बांदा के मयूर भवन में अपना तालाब योजना को लेकर मंडलीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
तालाब एक उम्मीद का नाम भी है
Posted on 18 Feb, 2016 11:53 AM

पंकज अपनी जमीन पर एक तालाब खुदवा रहे हैं उनको यकीन है कि यह तालाब न केवल उनकी तकदीर बदलेगा बल्कि गाँव के लोगों को नई राह भी दिखाएगा। तालाब खुदाई के वक्त आयोजित समारोह में जब उमाकान्त उमराव ने पंकज को इस क्षेत्र का भगीरथ बनने की प्रेरणा दी तो दरअसल इसमें एक गहरा निहितार्थ छिपा था। भगीरथ जहाँ गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाये थे वहीं पंकज के सामने चुनौती है दशकों से सूखे की मार झेल रहे इस क्षेत्र को हरियाली से आच्छादित करने की। बुन्देलखण्ड का एक इलाका ऐसा भी है जिसे बुन्देलखण्ड के बुन्देलखण्ड का नाम दिया जा सकता है। यहाँ पानी का संकट कल्पना से परे है। यहाँ के लोगों की सारी उम्मीदें एक तालाब की सफलता पर टिकी हैं। पिछले दिनों बांदा के जिलाधिकारी सुरेश कुमार और मध्य प्रदेश के वाटरमैन के नाम से जाने जाने वाले आईएएस उमाकान्त उमराव ने जब यहाँ तालाब की खुदाई के लिये कुदाल चलाई तो दरअसल एक साथ कई उम्मीदों के बीजों ने अंकुरित होने के लिये अंगड़ाई भरी।

यह गाँव है बुन्देलखण्ड के बांदा जिले के बड़ोखर खुर्द विकासखण्ड का खहरा गाँव। खहरा के रहने वाले पंकज सिंह भारतीय रेल में सहायक प्रबन्धक की नौकरी छोड़कर वापस गाँव लौट आये हैं।

देश भर में ऐसे लोगों के नाम अंगुलियों पर गिने जा सकते हैं जो जमी-जमाई तय आय वाली नौकरी छोड़कर दोबारा गाँव लौटते हैं। जो अपने खेत, अपने गाँव और अपने पूरे इलाके के लिये कुछ करने की मंशा रखते हैं।
खेती + लाभ + खुशहाली = प्रेमसिंह
Posted on 06 Feb, 2016 12:22 PM

जल संकट, अल्प वर्षा, सूखा और तमाम प्राकृतिक तथा मानव जनित समस्याओं से ग्रस्त बुन्देलखण्ड में कुछ चेहरे ऐसे भी हैं जिनको देखकर भविष्य को लेकर आश्वस्ति होती है। ऐसे ही एक शख्स हैं बुन्देलखण्ड के बांदा जिले के बड़ोखर खुर्द गाँव के 51 वर्षीय किसान प्रेम सिंह।
पर्यावरण और जल संरक्षण को धार देता कुल्हार
Posted on 01 Feb, 2016 03:14 PM

 

भोपाल-बीना रेल लाइन पर स्थित कुल्हार गाँव में इसकी शुरुआत सन 1983 में हुई जब तत्कालीन सरपंच वीरेंद्र मोहन शर्मा ने क्रमश: 14 हेक्टेयर, 26 हेक्टेयर, 05 हेक्टेयर और 10 हेक्टेयर शासकीय भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया और भूमि, जल एवं वन प्रबन्धन की आधुनिक सोच के साथ इस जमीन का विकास किया। यह काम पढ़ने में जितना आसान प्रतीत हो रहा है हकीक़त में उतना ही मुश्किल था। दबंगों के कब्जे से अतिक्रमित भूमि को मुक्त कराना, गाँव वालों के उसके सार्वजनिक उपयोग के लिये समझाना तथा उससे जुड़े लाभों को उनके समक्ष पेश करना कतई आसान नहीं था।

विदिशा जिले के गंज बासोदा तहसील में पहुँचते-पहुँचते हमें पानी के संकट का अन्दाजा होने लगा था। आम लोगों से बातचीत में पता चला कि तहसील के 90 प्रतिशत बोरवेल विफल हो चुके हैं यानी उनमें पानी नहीं रहा, वहीं जलस्तर 300 फीट से भी नीचे जा चुका है। हमारी इस यात्रा का मकसद भी पानी और पर्यावरण से जुड़ा हुआ था लेकिन कहीं सकारात्मक अर्थों में।

गंज बासोदा तहसील का कुल्हार गाँव, ग्रामीण भारत के लिये स्थायी विकास का एक अनुकरणीय मॉडल पेश करता है। एक ऐसा मॉडल जिसमें ग्राम पंचायत, गाँववासियों, किसानों, पर्यावरण और जल सब एक दूसरे पर आश्रित हैं और एक दूसरे के काम आते हैं।

कुल्हार मॉडल के निर्माण का श्रेय जाता है गाँव के पूर्व सरपंच वीरेंद्र मोहन शर्मा को।

बुन्देलखण्ड : किसान के कुओं और सरकार की आँख का सूखा पानी
Posted on 22 Jan, 2016 03:47 PM


बुन्देलखण्ड के जुड़वा गाँव खिसनी बुजुर्ग और खिसनी खुर्द इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि प्रशासनिक लापरवाही किस तरह मौसम की मार के असर को कई गुना बढ़ा सकती है।

इतिहास की किताबों में जब हम पढ़ते कि अंग्रेजों ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र की पूरी आबादी को कहीं और स्थानान्तरित करने की सिफारिश की थी तो हमें उनकी समझ पर रश्क होता है।

अगर कल्पना साथ नहीं दे तो एक बार बुन्देलखण्ड होकर आइए। पहले से ही भीषण जलसंकट का शिकार बुन्देलखण्ड इलाक़ा साल-दर-साल नई त्रासदियों का शिकार होता जा रहा है।

जल चौपाल में जाना उप्र में पानी का हाल
Posted on 14 Jan, 2016 11:59 AM

उत्तर प्रदेश, देश के उन राज्यों में शामिल है जहाँ पेयजल का संकट भीषण रूप लेता जा रहा है। पानी की उपलब्धता मात्र समस्या नहीं है क्योंकि अगर पानी उपलब्ध है भी तो उसमें जहरीले रसायनों की मौजूदगी उसे प्रयोग के लिये बेकार बना देती है। राज्य के कई जिलों के पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड, क्रोमियम समेत तमाम खतरनाक रसायनों की मौजूदगी ने गाँव-के-गाँव विकलांग कर दिये हैं। पहले जहाँ लोग इस समस्या से अनजान थे वहीं अब सरकार और सामाजिक संगठनों की अथक कोशिशों के बाद लोगों में इस बारे में चेतना का काफी विस्तार हुआ है। उत्तर प्रदेश में पानी की लगातार खराब होती गुणवत्ता और उसमें फ्लोराइड, आर्सेनिक, क्रोमियम आदि विषाक्त तत्त्वों की मौजूदगी और उसके दुष्प्रभावों पर चर्चा कोई नई बात नहीं है। प्रश्न अब इस जानकारी से आगे बढ़कर इससे निजात पर सामूहिक विमर्श का है। राजधानी लखनऊ में आयोजित जल चौपाल ने सभी सम्बन्धित पक्षकारों को यह अवसर मुहैया कराया।

उत्तर प्रदेश, देश के उन राज्यों में शामिल है जहाँ पेयजल का संकट भीषण रूप लेता जा रहा है। पानी की उपलब्धता मात्र समस्या नहीं है क्योंकि अगर पानी उपलब्ध है भी तो उसमें जहरीले रसायनों की मौजूदगी उसे प्रयोग के लिये बेकार बना देती है।

राज्य के कई जिलों के पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड, क्रोमियम समेत तमाम खतरनाक रसायनों की मौजूदगी ने गाँव-के-गाँव विकलांग कर दिये हैं। पहले जहाँ लोग इस समस्या से अनजान थे वहीं अब सरकार और सामाजिक संगठनों की अथक कोशिशों के बाद लोगों में इस बारे में चेतना का काफी विस्तार हुआ है।
उनके लिये चाँद छूने जैसा ही है पीने का पानी लाना
Posted on 08 Jan, 2016 04:04 PM

अपनी वनौषधियों और सुरम्य प्राकृतिक नजारों के लिये विश्व प्रसिद्ध पातालकोट के मूल निवासी जीवन की सबसे मूलभूत आवश्यकता 'पानी' के लिये संघर्ष कर रहे हैं।


. जिन लोगों को लगता है कि मोबाइल पर इंटरनेट का धीमा चलना या फेसबुक की फ्रीबेसिक्स जैसी पहल ही हमारे समय की सबसे बड़ी समस्या हैं, उनको एक बार मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले स्थित पातालकोट क्षेत्र में अवश्य जाना चाहिए।

समुद्र तल से औसतन 3,000 फीट की ऊँचाई पर बसा पातालकोट अपनी खूबसूरत घाटियों और मेहराबदार पहाड़ियों के चलते पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र भले ही है लेकिन स्थानीय लोगों के लिये वहाँ जिन्दगी काटना लगातार मुश्किल बना हुआ है।

सरकार ने वहाँ स्कूल, चिकित्सालय आदि सब बनवा दिये लेकिन जीवन की सबसे मूलभूत आवश्यकताओं में से एक पानी की कमी सही मायनों में इन सब पर 'पानी फेर' रही है।

सूखे पर सर्वोच्च न्यायालय सख्त, माँगा राहत योजना का ब्यौरा
Posted on 25 Dec, 2015 12:27 PM

सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र व सूखाग्रस्त राज्य सरकारों से कहा है कि वे उसे जल्द-से-जल्द उन उपायों के बारे में बताएँ जो सूखा राहत के लिये अपनाए जा रहे हैं।

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