स्थानीय किसान इस बात से खासे उत्साहित हैं कि एक तालाब बनाने में कमोबेश उतना ही खर्च आता है जितना एक पक्का कुआँ बनाने मेंं। और यहाँ तो सरकार तालाब बनाने के लिये आधी मदद देने को भी तैयार है। एक औसत तालाब में 12 से 15 हजार घन फीट पानी आता है। इस पानी से लगभग 10-12 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली फसल को कम-से-कम दो बार सींचा जा सकता है। महोबा के तत्कालीन कलेक्टर अनुज कुमार झा की उत्सुकता और उत्साह ने इस अभियान की नींव डाली और मौजूदा कलेक्टर वीरेश्वर सिंह ने भी राज्य सरकार को पत्र लिखकर इस मॉडल की सफलता का किस्सा उसके साथ साझा किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के बुन्देलखण्ड इलाके में 2,000 तालाब खुदवाने की घोषणा की है। शासकीय मदद से होने वाले इस काम को अपना तालाब अभियान का भी सहयोग हासिल है।
कमजोर मानसून ने यूँ तो पूरे देश को किसी-न-किसी तरह प्रभावित किया है लेकिन पारम्परिक रूप से सूखा पीड़ित बुन्देलखण्ड इलाके पर इसकी मार बाकी क्षेत्रों की तुलना में कुछ ज्यादा ही पड़ती है। हालात की गम्भीरता को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने क्षेत्र में 2,000 तालाब खुदवाने की घोषणा की है। इस योजना के तहत तालाब खुदवाने में आने वाले खर्च का 50 फीसदी हिस्सा सरकार देगी जबकि बाकी खर्च खुद किसानों को वहन करना होगा।
इस योजना पर शीघ्र कार्रवाई के क्रम में ही गत 12 फरवरी को बांदा के मयूर भवन में अपना तालाब योजना को लेकर मंडलीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस आयोजन में चित्रकूट धाम मण्डल के आयुक्त एल वेंकटेश्वर लू, अपना तालाब अभियान के संयोजक पुष्पेंद्र भाई, इण्डिया वाटर पोर्टल के सम्पादक केसर, मध्य प्रदेश में पानी को लेकर अपने महत्त्वपूर्ण काम के लिये वाटरमैन की उपाधि पा चुके मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा आयुक्त उमाकान्त उमराव तथा बांदा, महोबा, हमीरपुर और चित्रकूट के जिलाधिकारियों समेत तमाम बड़े अधिकारी मौजूद थे।
इस उच्चस्तरीय प्रशासनिक आयोजन में सूखे के संकट, पानी की कमी, वर्षाजल संग्रहण के फायदों समेत तमाम विषयों पर गहन मंथन हुआ। मण्डल आयुक्त एल वेंकटेश्वर लू ने वर्षाजल संरक्षण बढ़ाने और भूजल के विवेकपूर्ण दोहन की बात कही। उन्होंने अपना तालाब अभियान को सफल बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि पानी का संरक्षण हम सबकी साझा जिम्मेदारी है और यह सबके हित की बात है।
बेल्जियम सरकार के कृषि सलाहकार जोहान डिहस्ल्टर भी इस आयोजन में मौजूद थे। वह हर वर्ष एक लम्बा समय बांदा में बिताते हैं तथा बुन्देलखण्ड की पारिस्थितिकी व कठिनाइयों से वह भली-भाँति परिचित हैं। जोहान ने भारतीय कृषि तथा पानी पर उसकी निर्भरता के अलावा बेल्जियम व भारत के कृषि के तौर-तरीकों के बारे में अपनी राय रखी।
इस बैठक का सबसे खास पहलू रहा एमपी कैडर के आईएएस अधिकारी उमाकान्त उमराव का एक प्रजेंटेशन जो उन्होंने जल संरक्षण के लिये तैयार किया है।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के देवास जिले में बतौर कलेक्टर अपनी पदस्थापना के दौरान उमराव ने किसानों को अपना तालाब बनाने के लिये प्रेरित किया था। बल्कि पहले किसान की तो उन्होंने बैंक गारंटी भी ली थी। बाद में उस किसान को पहुँचे फायदे को देखते हुए तमाम अन्य किसानों ने इस योजना को अपनाया। इसके लिये विशेष सरकारी योजना तैयार कर बाकायदा रियायत देनी शुरू की गई।
उस वक्त देवास जिले में पानी की स्थिति इतनी भयावह थी कि क्या कहा जाये। औद्योगिक इकाइयों ने पूरे भूजल का दोहन कर लिया था और मानसूनी पानी लम्बे समय तक टिक नहीं सकता था। यही वजह थी कि सन 1989 में सरकार के इंदौर से ट्रेन के जरिए पीने का पानी देवास भेजना पड़ा। लेकिन उमाकान्त उमराव के आने के बाद हालात बदल गए। न केवल पानी उपलब्ध हुआ बल्कि खेतों में उत्पादन भी काफी बढ़ गया।
उमराव ने लाभ कमाने की मानवीय कमजोरी को ही ताकत बनाने की बात भी की। उन्होंने कहा कि पानी को जीवन से जोड़ने वाले नारे अब लोगों को अपील नहीं करते हैं। अब वक्त आ गया है कि पानी के बचाव को लाभ कमाने से जोड़ा जाये। अगर लोगों को यह समझ में आ गया कि पानी बचाकर लाभ कमाया जा सकता है तो वे झटपट इसके लिये तैयार हो जाएँगे।
ठीक यही वक्त था जब महोबा जिले में पुष्पेंद्र भाई और उनके साथी पुराने तालाबों की महत्ता उनको बता रहे थे और उनका जीर्णोंद्धार करा रहे थे। आखिरकार पुष्पेंद्र भाई और उनके साथियों को अपना तालाब के देवास मॉडल के बारे में जानकारी मिली और उन्होंने मौका मुआयना करने के बाद उसे अपनाने का निश्चय किया। इस प्रकार अपना तालाब अभियान अस्तित्त्व में आया। यह अभियान न केवल तालाब खुदवाने में मदद करता है बल्कि जरूरत पड़ने पर तमाम तकनीकी जानकारियाँ भी झट मुहैया करा देता है।
प्रजेंटेशन के प्रमुख बिन्दु
1. बाँध या नहर बनाने पर हर 100 लीटर में से केवल 10-20 लीटर पानी ही खेतों तक पहुँचता है।
2. खेती के लिये पानी इतना महत्त्वपूर्ण है कि कुल पानी खपत का 80-85 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई में लगता है जबकि 10-20 प्रतिशत घरेलू और औद्योगिक काम में।
3. बेहतर ढंग से बनाया गया तालाब हर 100 लीटर पानी में से 40 लीटर पानी सिंचाई के लिये उपलब्ध करा सकता है।
4. लोगों को तालाब बनाने के लिये प्रेरित करने के लिये उनको यह समझाना आवश्यक कि इससे उनको क्या फायदा होगा?
5. तालाब बनाने के लिये सही जगह, सही आकार और सही गहराई तय करना आवश्यक।
6. देवास में तालाब का काम शुरू होने के पहले 80 प्रतिशत सिंचाई ट्यूबवेल से होती थी। बड़े किसानों के पास अधिकांश कुओं और ट्यूबवेल का मालिकाना हक था। भूजल स्तर 300 से 1000 फीट तक गिर गया था।
बहरहाल इन हालात के बीच देवास में तालाब का काम शुरू हुआ और वहाँ के किसानों की तकदीर ही बदल गई। देवास के किसानों के अपना तालाब मॉडल के कुछ प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं :
1. अकेले देवास में 10,000 से अधिक तालाबों का निर्माण
2. भूजल स्तर में 6 से 40 फीट का सुधार
3. सिंचाई क्षमता बढ़कर 50,000 हेक्टेयर हुई
4. किसानों ने 1,000 करोड़ रुपए का निवेश किया
5. फसल उत्पादन तथा दूध के उत्पादन में कई गुना का इजाफा हुआ।
उत्तर प्रदेश सरकार की इस योजना के मूल में जो पहल है उसका नाम है अपना तालाब अभियान। इस अभियान के तहत बुन्देलखण्ड के सूखाग्रस्त इलाकों में कई किसान अपने-अपने खेतों पर तालाब खोदकर न केवल जलस्तर बढ़ाने में कामयाब रहे हैं बल्कि उन्हें बेहतर फसल हासिल करने में भी मदद मिली है।
हम वापस लौटते हैं अपना तालाब अभियान पर। पुष्पेंद्र भाई बताते हैं कि अपना तालाब अभियान के तहत सबसे पहले महोबा में काम शुरू किया गया। किसानों को अपने खेतों पर तालाब खोदने के लिये प्रेरित किया गया। पिछले करीब दो साल में वहाँ 400 से अधिक तालाब खोदे गए जो वर्षाजल संचय का काम करते हैं। पिछले दो-तीन सालों के दौरान महोबा और आसपास के किसानों ने भी अपने खेतों में तालाब खोदने का लाभ महसूस किया है। यहाँ फसलों का उत्पादन चार से पाँच गुना तक बढ़ गया है। कहना नहीं होगा कि इस दौरान पूरे इलाके के भूजल स्तर में भी जबरदस्त सुधार देखने को मिला।
कम लागत का फायदा
स्थानीय किसान इस बात से खासे उत्साहित हैं कि एक तालाब बनाने में कमोबेश उतना ही खर्च आता है जितना एक पक्का कुआँ बनाने मेंं। और यहाँ तो सरकार तालाब बनाने के लिये आधी मदद देने को भी तैयार है। एक औसत तालाब में 12 से 15 हजार घन फीट पानी आता है। इस पानी से लगभग 10-12 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली फसल को कम-से-कम दो बार सींचा जा सकता है।
महोबा के तत्कालीन कलेक्टर अनुज कुमार झा की उत्सुकता और उत्साह ने इस अभियान की नींव डाली और मौजूदा कलेक्टर वीरेश्वर सिंह ने भी राज्य सरकार को पत्र लिखकर इस मॉडल की सफलता का किस्सा उसके साथ साझा किया।
गौरतलब है कि इन तालाबों में सिंचाई के अलावा मछली पालन भी हो सकता है कई स्थानों पर परम्परा के खिलाफ होने के कारण ऐसा नहीं किया जाता है लेकिन दरअसल यह एक लाभ का धंधा है।
स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश शासन के आदेश के बाद अब बुन्देलखण्ड के सभी इलाकों में इन तालाबों का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। अपना तालाब अभियान के तहत खोदे जाने वाले ये तालाब न केवल किसानों को आत्मनिर्भर बनाएँगे बल्कि उनकी फसल, उत्पादन और आसपास के परिवेश में सुधार लाने में भी मदद करेंगे।
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Post By: RuralWater