नरेश मेहता

नरेश मेहता
चाहता मन
Posted on 19 Sep, 2013 04:22 PM
गोमती तट
दूर पेंसिल-रेख-सा
वह बाँस झुरमुट
शरद दुपहर के कपोलों पर उड़ी वह
धूप की लट।
जल के नग्न ठंडे बदन पर का
झुका कुहरा
लहर पीना चाहता है।
सामने के शीत नभ में आइरन-ब्रिज की कमानी
बाँह मस्जिद की
बिछी है।
धोबियों की हाँक
वट की डालियाँ दुहरा रही हैं।
अभी उड़कर गया है वह
छतर-मंजिल का कबूतर झुंड।

तुम यहाँ
सूखी नदी का दुःख
Posted on 19 Sep, 2013 04:19 PM
जलकांक्षिणी
Sयह नदी की दुःख रेखा
अभी भी सागरप्रिया।

सब बह गया कल
जो भी बना था जल
नदी के देह में।
रेत की ही साक्षियाँ
अब तप रही है
सूर्यS
एकांत में।

नदी वाग्दता है सिंधु की।
पहुंचना ही है-इसे
कल
इसी का तो दुःख है
नदी का दुःख-
जल नहीं
यात्रा है।

शतमुखी होS
कल जन्म लेगा जल
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