मयंक श्रीवास्तव
मयंक श्रीवास्तव
नदी
Posted on 30 Aug, 2015 12:35 PMआह भरती है नदीटेर उठती है नदी
और मौसम है कि उसके
दर्द को सुनता नहीं।
रेत बालू से अदावत
मान बैठे हैं किनारे
जिन्दगी कब तक बिताए
शंख सीपी के सहारे
दर्द को सहती नदी
चीखकर कहती नदी
क्या समंदर में नया
तूफान अब उठता नहीं।
मन मरूस्थल में दफन है
देह पर जंगल उगे हैं
तन बदन पर कश्तियों के
खून के धब्बे लगे हैं