मोहनजी

मोहनजी
अपूर्व छटा छिटकाती हुई
Posted on 08 Dec, 2013 10:31 AM
अचला वृत्त है अचला जिसपै बनराजि छटा दिखला रही है।
विटपावलि पुष्पित हो करके निज सौरभ पुंज लुटा रही है।।
द्रुम पल्लवों में छिपी श्यामा जहां मन-मोहन गान-सुना रही है।
सिखला रही राग-विहाग भरा अनुराग का पाठ पढ़ा रही है।।
गिरि बिन्ध्य की गोद सजाती हुई सुख प्राणियों में सरसाती हुई।
गुण गाती हुई मनभावन के इठलाती हुई बलखाती हुई।।
×